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क्या #महाराणा_प्रताप ने जीता था 'हल्दीघाटी का युद्ध' ?

हल्दीघाटी के युद्ध को हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष के चश्मे से देखने के साथ ही हाल के कुछ वर्षों में हल्दीघाटी के युद्ध के परिणाम में राणा प्रताप को विजयी घोषित करने की अनैतिहासिक कोशिश भी देखने में आ रही है।+
#हल्दीघाटी_का_युद्ध Image
इस प्रकार की कोशिशें महाराणा प्रताप के स्वतंत्रता के लिए किए गए दीर्घकालीन संघर्ष का उपहास है। बिंदा झाला के बलिदान एवं राणा प्रताप के युद्ध क्षेत्र से पलायन का वर्णन समकालीन स्रोत एवं सभी इतिहासकार करते हैं।

इतिहासकार इस युद्ध को हिन्दू मुस्लिम संघर्ष भी नहीं मानते।+
चाहे वह जेम्स टॉड का विख्यात ग्रंथ ‘राजस्थान का पुरातत्व एवं इतिहास‘ हो या गौरीशंकर हीराचंद ओझा कृत ‘राजपूताने का प्राचीन इतिहास, डॉ. गोपीनाथ शर्मा रचित’ राजस्थान का इतिहास‘हो या हरीशचंद्र वर्मा कृत दिल्ली विश्वविद्यालय की पुस्तक’ मध्यकालीन भारत का इतिहास’भाग-2 या#
सतीश चंद्र कृत’ मध्यकालीन भारत: राजनीति, समाज और संस्कृति’ या राजस्थान के इतिहास से सम्बंधित समकालीन स्रोत या अन्य पुस्तकें।

क्या ये मुगलों और विशेषकर अकबर महान के नाम पर लगातार धर्मान्धता फैलाकर एवं इतिहास को विकृत रूप से प्रस्तुत कर लोगों को बरगलाने की कोशिश का ही हिस्सा है?+
वास्तविकता जानने के लिए हल्दीघाटी के युद्ध के सम्बंध में कुछ तथ्यात्मक एवं मूलभूत बातों से परिचित होना आवश्यक है ताकि हल्दीघाटी के युद्ध को धर्म के चश्मे से दिखाने वाले क्षुद्र प्रयासों से जनसामान्य परिचित हो सके-

“यह संघर्ष (हल्दीघाटी का युद्व) हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष की समस्या+
समस्या नहीं था बल्कि मुग़ल साम्राज्य तथा मेवाड़ के मध्य की समस्या था। अगर ऐसा न होता तो राणा प्रताप अपनी सेना के एक भाग को हाकिम खां सूर के नेतृत्व में न रखता, न ही अक़बर की सारी फ़ौज़ मानसिंह के नेतृत्व में रही होती।”

अक़बर का विजय अभियान समुद्रगुप्त की दिग्विजय के लिए किए गए+
“अश्वमेध यज्ञ” के पश्चात किये गए विजय अभियान की ही तरह था, जिसे एक बड़े इतिहासकार ने “शाही आवेग” या अन्य शब्दों में “अश्वमेधी अभियान” कहा हैं। इस शाही आवेग की चपेट में जिस तरह मालवा के बाज़बहादुर, गुजरात के मुज़फ्फर, बंगाल के दाउद, सिंध के जानीबेग तथा+
कश्मीर के युसूफ आये ठीक वैसे ही मेवाड़ ।

यदि उस समय मेवाड़ पर किसी मुस्लिम शासक का आधिपत्य होता तो भी वह अक़बर के शाही आवेश की चपेट में आने से नहीं बच सकता था। हल्दीघाटी का युद्ध पूर्णतः राजनीतिक, सामरिक और आर्थिक उद्देश्यों के साथ लड़ा गया था न कि किसी धार्मिक मंशा से।+
इतिहास अध्ययन के दौरान यह याद रखना आवश्यक है कि अतीत को वर्तमान की दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। उसे देखने के लिए हमें या इतिहासकार को उसी काल में जाकर उस समय की परिस्थितियों को समझना पड़ता है। उस समय “तलवार की शक्ति ही सब कुछ तय करती थी” जिनकी तलवार में दम नहीं था+
वह इस शाही आवेग का शिकार बने।

वस्तुतः 18 जून 1576 को हुए हल्दीघाटी के युद्ध के पश्चात हम अक़बर को उसके विजय अभियान के अगले चरण में पाते हैं।

अफगानिस्तान में हुए विद्रोह का दमन, उड़ीसा, सिंध और कंधार पर विजय, दक्कन के अधिकांश भागों में बरार, खानदेश और अहमदनगर के कुछ हिस्सों पर+
विजय एवं 1601 में असीरगढ़ की विजय तक उसका यह विजय अभियान ज़ारी रहा।
वस्तुतः हल्दीघाटी के युद्ध के पश्चात अक़बर अपने विजय अभियान में मशगूल हो गया और राणा प्रताप अपने खोए हुए क्षेत्रों की पुनः प्राप्ति में।

अतः हल्दीघाटी के युद्ध को धार्मिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए.+
अतःहल्दीघाटी के युद्ध को धार्मिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए.यह युद्ध तो अक़बर की विस्तारवादी नीति और राष्ट्रीय शासक बनने की महत्त्वाकांक्षा और राणाप्रताप के सतत संघर्ष की अद्वितीय गाथा है। इस संघर्ष में न तो अक़बर पूर्ण विजय प्राप्त कर पाया और न ही राणा प्रताप पूरी तरह पराजित हुआ।

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Jun 18
#हल्दीघाटी_का_युद्ध ' 18 जून 1576

क्या हिदू-मुस्लिम संघर्ष था हल्दीघाटी का युद्ध?

“हल्दीघाटी का युद्व हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष की समस्या नहीं था।अगर ऐसा न होता तो राणा प्रताप अपनी सेना के एक भाग को #हाकिम_खां_सूर के नेतृत्व में न रखता, न ही अक़बर की सारी फ़ौज़ मानसिंह के नेतृत्व+ ImageImage
में रही होती।
अक़बर का विजय अभियान समुद्रगुप्त द्वारा “अश्वमेध यज्ञ” के पश्चात किये गए दिग्विजय अभियान की ही तरह था, जिसे एक बड़े इतिहासकार ने “शाही आवेग” या अन्य शब्दों में “अश्वमेधी अभियान” कहा हैं। इस शाही आवेग की चपेट में जिस तरह मालवा के बाज़बहादुर, गुजरात के मुज़फ्फर,+
बंगाल के दाउद, सिंध के जानीबेग तथा कश्मीर के युसूफ आये ठीक वैसे ही मेवाड़ ।

यदि उस समय मेवाड़ पर किसी मुस्लिम शासक का आधिपत्य होता तो भी वह अक़बर के शाही आवेश की चपेट में आने से नहीं बच सकता था। हल्दीघाटी का युद्ध पूर्णतः राजनीतिक, सामरिक और आर्थिक उद्देश्यों के साथ लड़ा गया था+
Read 7 tweets
Apr 3
प्रायः ट्वीटर पर पोस्ट देखने में आती है कि हमें इतिहास में हिन्दू राजाओ के बारे में कम सुल्तानों या #मुग़लों के बारे में ज़्यादा पढ़ाया गया। ये वो लोग हैं जो धार्मिक ग्रंथों में वर्णित कपोल कल्पित बातों को तो आँख मीचकर मान लेते हैं+
#NCERT #UPBoard
#मुग़ल
#History #इतिहास
पर संदर्भो,तर्को के साथ लिखे इतिहास को अंग्रेजों और वामपंथियों द्वारा लिखा हुआ बताकर न केवल प्रश्नचिन्ह खड़े करते हैं बल्कि नकारने की हद तक चले जाते हैं. इस प्रकार की पोस्ट करने वाले लोग वो हैं जिनकी इतिहास में कोई रुचि कभी थी ही नहीं.और यदि अब है तो केवल राजनीतिक कारणों से या+
धर्मान्धता फैलाने के लिए. यदि आप ऐसी कोई ट्वीटर पर देखें तो पहले ये पूछें उससे कि क्या कक्षा 10 वीं पास करने के बाद उसने इतिहास विषय को चुना या साइंस अथवा कॉमर्स लेकर आगे का अध्धयन किया. यदि उसने साइंस या कॉमर्स चुनकर आगे की पढ़ाई की है तो उसे बताएं कि उसने 10 वीं तक इतिहास+
Read 12 tweets
Dec 4, 2022
#अमृतकाल में विष उगलने वाले मनोज #मुंतशिर के धर्मनिरपेक्ष से #धर्मान्ध बनने
की दास्ताँ-
गौरीगंज की पगडंडियों से मुंबई के राजपथ तक का सफर तय करने वाले मनोज मुंतशिर की राह इतनी आसान भी न थी. इस राह में उनके हिस्से में मुंबई के फुटपाथ भी लिखे थे किस्मत ने. इन्हीं फुटपाथों+
ने संघर्ष के दौरान उन्हें जाति और धर्म की संकीर्णताओं परे सोचना सिखाया. उसकी झलक उनके काव्य में स्पष्ट दिखाई देती है. उन्होंने सीखा कि भाषाओं को संकीर्ण दायरों में नहीं बांधा जा सकता. उनके काव्य में भारत के विभाजन की पीड़ा भी
दिखाई देती है और धर्मान्धता के विरुद्ध आक्रोश भी.+
'मंदिर-मस्जिद' के विवादों पर #मुंतशिर कबिराना अंदाज़ में अपनी बेबाक राय रखते हुए लिखते हैं कि-

माफ़ करें नादानी मेरी,मैं मूरख पढ़े-लिखैय्यों में
मुझे फरक मालूम नहीं है लड्डू और सिवैयों में

मेरे अन्दर काबिज़ है वो,मुझसे जुदा नहीं रहता
दाढ़ी टोपी और तिलक में मेरा ख़ुदा नहीं रहता+
Read 9 tweets
May 9, 2022
#Thread
#अक़बर_महान एवं मुगलों का नाम लेकर लगातार न केवल धर्मान्धता फैलाई जा रही है बल्कि इतिहास को विकृत रूप से प्रस्तुत कर लोगों को बरगलाने की कोशिश भी हो रही है।इसीलिए मैं आपको #हल्दीघाटी के युद्ध के संबंध में कुछ तथ्यात्मक एवं मूलभूत बातों से परिचित कराना चाहता हूँ+
ताकि आपके भ्रम दूर हो सकें -
" यह संघर्ष (हल्दीघाटी का युद्व) हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष की समस्या नहीं था बल्कि मुग़ल साम्राज्य तथा मेवाड़ के मध्य की समस्या था.अगर ऐसा न होता तो #राणा_प्रताप अपनी सेना के एक भाग को हाकिम खां सूर के नेतृत्व में न रखता, न ही अक़बर की सारी+
फ़ौज़ मानसिंह के नेतृत्व में रही होती."
अक़बर का विजय अभियान समुद्रगुप्त की दिग्विजय के लिए किए गए "अश्वमेध यज्ञ" के पश्चात किये गए विजय अभियान की ही तरह था. जिसे एक बड़े इतिहासकार ने "शाही आवेग" या अन्य शब्दों में "अश्वमेधी अभियान " कहा हैं . इस शाही आवेग की चपेट में जिस+
Read 6 tweets
May 8, 2022
अवश्य देखिये 😊
मैं सिर्फ़ एक बात ज़रूर कहना चाहूंगी कि हम 70 सालों से एक होके रहे हैं..
बचपन में हमको जो प्रोवोग सिखाते हैं #यूनिवर्सिटी_इन_डाइवर्सिटी' वगेरह..वो हमने जिया है.. बिलकुल.. 70 सालों तक हमने जिया है। पता नहीं पिछले 7-8 सालों में क्या हो गया है भारत को+
@baxiabhishek
कि हमारे बीच में ही अलग अलग टुकड़े हो गए हैं.. ये होना नहीं चाहिए.. आई थिंक एट द एंड ऑफ इट..हम सब एक ही मिट्टी के बने हुए हैं..सबको एक साथ.. इस देश का नागरिक बनके एक साथ भाईचारे से हम सबको रहना चाहिए।
@irfaniyat सर लाजवाब एपिसोड 🙏
.@Ashok_Kashmir .@puru_ag
.@_sayema
Currection-
1. ˈप्रॉव़ब्‌
2.यूनिटी इन डाइवर्सिटी
Read 4 tweets
Nov 21, 2021
मैकाले का 'अधोगामी निस्पंदन का सिद्धांत' और इतिहास के स्वयंभू छद्म व्याख्याता-

क्या इतिहास वर्तमान में सर्वाधिक आकर्षित करने वाला रुचिकर विषय बन गया है ?

मैकाले के'अधोगामी निस्पंदन का सिद्धांत'
(Downward Filtration Theory) जिसके तहत भारत के उच्च तथा मध्यम वर्ग के एक+
छोटे से हिस्से को शिक्षित करना था ताकि एक ऐसा वर्ग तैयार हो जो रंग और खून से भारतीय हो लेकिन विचारों, नैतिकता तथा बुद्धिमत्ता में ब्रिटिश हो.
अब इसी सिद्धांत को भारत में इतिहास विषय पर लागू किया जा रहा है. जिसके तहत इतिहास की एक छद्म शाखा विशेष से छद्म इतिहास में प्रशिक्षित+
छद्म इतिहास के नए व्याख्याता -
कंगना रनौत-@KangnaRanaut___ शैक्षणिक योग्यता 10 वीं पास,अभिनेत्री

"हमें सही इतिहास नहीं पढ़ाया गया"

"इतिहास वामपंथियों ने लिखा"

"हमें अपने हीरो सावधानी से चुनना चाहिए"

"गांधी,कांग्रेस,भारत छोड़ो आंदोलन का स्वतंत्रता दिलाने में कोई योगदान नहीं है
Read 10 tweets

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