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प्राचीन इंका, इजिप्शियन, भारतीय और चीनी संस्कृति में अनेक स्थानों पर नागसंदर्भ हमें देखने मिलते हैं। विशेषतः प्राचीन भारतीय संस्कृति में ऋग्वेद, जैन तथा बौद्ध संस्कृति से प्राप्त नागसंदर्भ महत्वपूर्ण हैं।
डाॅ बाबासाहेब आंबेडकर के महत्वपूर्ण शोधग्रंथ 'अछूत कौन थे
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और वे अछूत कैसे बने 'में लिखा है कि महाभारत में अर्जुन के नाती 'परीक्षित' के पुत्र 'जनमेजय 'ने आर्य -अनार्य युद्ध में जो 'सर्पसत्र' आरंभ किया था उस समय अस्तिक मुनि ने एक नाग को बचा लिया था। इस 'तक्षक 'नाग से उत्पन्न वंश के हम नागवंशीय बौद्ध लोग हैं।
2)
इन नागवंशियों के प्राचीन भारत में अनेक राज्य थे। उनकी शासन व्यवस्था लोकनियुक्त 'गणराज्य पद्धति 'की थीं। तथागत बुद्ध के लोककल्याणकारी सतधम्म को स्वीकार कर अनेक नागराजा उनके अनुयायी बने। बौद्ध साहित्य में तथागत चरित् से संबंधित कालनाग, मुचलिंद, नंद -उपनंद का उल्लेख हमें
3)
मिलता है। एक स्थान पर तथागत विरूपाक्ष, छब्यापुत्र, एरापथ व कृष्णगौतम इन नागवंशियों से अपनी घनिष्ठ मैत्री और अपनत्व का ज़िक्र करते हैं।
तथागत के 'धम्म' का प्रचार प्रसार पाँच प्रमुख नाग राजाओं ने किया था। उन्हें नागस पंचनिकायस कहा जाता था।
4)
इनमें नागराजा अनंत का अधिकार क्षेत्र बहुत विशाल था। जम्मू कश्मीर का शहर 'अनंतनाग' उनकी स्मृति की साक्ष्य देता है।
उसके पश्चात दूसरा नागराजा 'वासुकी 'कैलाश मानसरोवर क्षेत्र का प्रमुख था।
तीसरा नागराजा तक्षक था, जिसने तक्षशिला विश्वविद्यालय
5)
की स्थापना की। जो अब पाकिस्तान में है।
चौथा नागराजा 'कारकोटक 'था। वह हिमालय के नेपाल प्रदेश के उत्तर में तिब्बत तक के भूभाग पर राज कर रहा था।
पाँचवा नागराजा 'ऐरावत' था। वह पंजाब में रावी नदी के प्रदेश का स्वामी था।
6)
इन पाँच नागराजाओं के गणराज्य एक दूसरे के राज्य से सटे हुए थे और इस प्रदेश के लोग श्रावण महिने का पाँचवा दिन 'नागपंचमी 'के रूप में उत्साहपूर्वक
एक उत्सव के रूप में मनाते थे।
ये नागराजा अपना कुलचिह्न (टोटेम) अपने मुकुट पर धारण करते थे। जिसका जितना बड़ा
7)
राज्य और अधिकार क्षेत्र वह उतनी अधिक नागप्रतिमाएं अपने मुकुट पर धारण करता था। अजंता, कार्ला, कान्हेरी औरंगाबाद तथा एलोरा की प्राचीन बौद्ध लेणियों में, वैसे ही साँची, भरहुत, पवनी, अमरावती के बौद्ध स्तूपों पर नागशिल्प में 'चक्रवाक ''मुचलिंद ''ऐरावत 'आदि उस समय के
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नागराजा बुद्धमूर्ति अथवा बुद्ध स्तूपों की अपने कुटुंब सहित वंदना करते हुए दिखाये गये हैं। इन नागराजाओं के राजमुकुट पर अथवा मुकुट के आसपास सात, पाँच या तीन फण के नागशिल्प हम देख सकते हैं।
यहाँ की नागरानी के राजमुकुट पर मात्र एक ही फण दिखाई पड़ता है। नागानिका, कुबेरनागा
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इत्यादि नाग स्त्रियाँ भी राज्यकर्ता (शासक) हुआ करती थीं। इतिहास इस ख्यात तथ्य की साक्षी देता है।
'शून्यवाद के प्रणेता व 'प्रमाण विघटन ',
'युक्तिषष्ठिका', 'चतुस्तव 'तथा ''सुहृल्लेखग्रंथ 'के रचयिता और 'रससिद्धि 'प्राप्त दुनिया के पहले रसायनशास्त्री,
10)
सातवाहन व इक्ष्वाकु राजवंश के 'राजकुलगुरू' व 'प्रतिबुद्ध' कहे जाने वाले महान् बौद्ध आचार्य नागार्जुन का जन्म भी 1870 वर्ष पूर्व, ईसा पूर्व 150 में 'नागपंचमी' के दिन हुआ था।
11)
तब से नागपंचमी को 'नागार्जुन पंचमी' भी कहा जाता है।
12)

-----अशोक नगरे
हमारी संस्कृति -हमारा इतिहास

हिंदी रूपान्तरण :
#राजेंद्र_गायकवाड़
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