नमस्ते आलोक जी। मनीषी-ग्रन्थों द्वारा “वाणी” के चार स्तर / अवस्थाएँ कही गई हैं। परा, पश्यन्ती, मध्यमा, और वैखरी। प्रथम “परा” हमारे अन्तर में प्रकट वाणी का “कारण” मात्र है। वहाँ न नाम है न रूप है। आगे वही विकसित होकर “पश्यन्ती” बन कर हमारे अन्तर्मन में एक मूर्त आकार लेती है।
२
अभी भी इसमें शब्द नहीं बस अनुभव है। फिर वह अनुभव हमारी बुद्धि में विचार रूपी वाणी का स्पन्दन करता है। यह वाणी मध्यमा कहलाती है। अब इसमें शब्द है पर केवल मन में।
फिर यही मानसिक शब्द प्रकट हो कर मुख से व्यक्त होते हैं।
३
जो शब्द हम मुख से प्रकट करते, कानों से सुनते हैं, उसे “वैखरी” वाणी के नाम से कहा गया।
प्रथम तीन आन्तरिक और अव्यक्त हैं। सारी प्रकट भाषाएँ, चाहे संस्कृत हो चाहे अंगरेजी, वे वैखरी (और कुछ दूर तक मध्यमा) के स्तर की ही हैं। उसके आगे की वाणी में इन शाब्दिक भाषाओं का कोई अर्थ नहीं।
४
अब देवता और देववाणी।
देवता एक आध्यात्मिक अस्तित्व का विषय हैं। यदि मनुष्य देवता से साक्षात् करे, तो वह अनुभव क्या भौतिक मुख और कान का विषय होगा? देवता की वाणी या देवता तक पहुँचने वाली वाणी क्या वैखरी / मध्यमा के स्तर की ही होगी?
५
...या परा-पश्यन्ती के स्तर की होगी? हाँ यह अवश्य है कि उस आध्यात्मिक साक्षात्कार का अनुभव कोई वैखरी में जैसे कैसे प्रकट करे। या दूसरों के कल्याणार्थ उपदेश करे। परंतु उसे भी जैसे कबीर ने कहा - कि किसी गूँगे को गुड़ खिलाकर पूछो कि कैसा लगा, कुछ ही बता पाएगा पर कितना? वैसे ही है।
६
अतः “देववाणी” इस संज्ञा का अर्थ मेरे अनुसार यह नहीं लगाना चाहिये कि एक विशेष शब्दकोश / व्याकरण की भाषा जिसमें देवता वार्तालाप करते हों वह भाषा विशेष देवभाषा है। उस परिभाषा से तो तमिल भी देवभाषा है। पाली भी देवभाषा है। हिंदी भी देवभाषा। मराठी बंगाली तेलुगु गढ़वाली सभी देवभाषा!
७
संस्कृत को विशेष रूप से देवभाषा कहना सर्वथा उचित है। किंतु मुझे लगता है उसका समुचित कारण कुछ और है।
वह यह है कि देवविज्ञान के गूढतम रहस्यों का सर्वोत्कृष्ट प्रकटीकरण विपुलता से जिस भाषा में हुआ वह निस्सन्देह संस्कृत है। अतः संस्कृत देवमार्ग की भाषा होने से “देवभाषा” है!!
८
अब देवनागरी। देवनागरी निश्चित ही संस्कृत गंन्थों की सुप्राचीनतम और सर्वाधिक प्रचलित लिपि रही है। किंतु देवनागरी से पहले भी संस्कृत लिखी गई। ब्राह्मी लिपि थी। ब्राह्मी से पूर्व भी संस्कृत की लिपियाँ रही होंगी - हमें अभी ज्ञात नहीं। परन्तु पाँचवीं शताब्दी से हम देवनागरी पाते हैं।
९
All the languages were without script once. Scripts evolved much later. Initially the scripts weren’t sophisticated enough to capture the accurate and precise nuances of sounds demanded by shruti. So naturally despite invention of lipi, shruti should must be orally transmitted
१०
ऋषि मन्त्रदृष्टा हैं। ऋषि के अन्तःकरण में साक्षात् प्रकट होने वाला अनुभव ही मन्त्र है। देवता का अनुभव मन्त्र है। “परा” के स्तर पर मन्त्र का अनुभव आयोजन से नहीं, स्वतः है, अपौरुषेय ही है। उस अनुभव का प्राकट्य जिन चमत्कारी शब्दों में हुआ वे भी देवता के मूर्त शब्दछाया रूप हैं।
११
पहले तो परम्परा बताती है कि संहिताएँ (ऋग्वेद, यजुर्वेद आदि) भिन्न भिन्न नहीं थीं। परन्तु गोत्र तब भी थे। अतः गोत्र विशेष का वेदसंहिता विशेष का जोड़ बाद का है। इसके मूल में समग्र वेद-संरक्षण का लक्ष्य है।
+ through offerings of arghyas, various adornments, fragrances, flowers, dhupa, akshata, lamps and food-offerings of many kinds, bloody bali with meat and wine. O King, Her puja with #pashubali is however prohibited for the Brahmins, they being constrained from meat and wine +
+ (and Devi puja further includes) bowing to her in salutations, offering AchamanIya jala, and fragrant sandalwood.
You had further argued that Rajan could be called to a military duty by the US government, and that made his holding a sensitive post with the Government of India less tenable.
I remind you of this, only to draw an analogy. @Swamy39
2/n
A teacher of Sanskrit Vidya Dharma Vigyan at BHU, is not just a school of learning the Sanskrit language and literature, but also the Hindu theology, practices, orthodoxy, rhetoric and to prepare Hindu religious leaders.
It includes preparing Hindu scholars who can defend
3/n
“Anti Hindu Stereotypes in the Media” - this was the topic of Dr. @Koenraad_Elst ’s talk yesterday.
He narrated with clinical precision, not only how the media -western and Indian- is hostile to Hinduism but also and more importantly - why.
He stated that whilst the general impression in the West a few decades back was quite redpectful towards Hinduism but hostile to India - now it is the other way round - India might be seen in a positive light now but Hinduism is made a sharp focus of negative impressions.
2/n
The latest issue of the Time magazine calling Modi the Divider-in-Chief was bound to came up, which it did as the chief exemplar of what is going on.
Dr @Koenraad_Elst used this as a case study to discuss at length and illustrate the anatomy of the problem.
The first chairman, elected unanimously, was Sachchidananda Sinha, in capacity of a temporary chairman.
Basis of his election was his age! Well known Jurist and Barrister from Bihar, he was the oldest member of the assembly.
1/n
Sinha appointed R Iengar (Madras) as the chairman’s secretary to help with the selection of the permanent chairman.
Rules and procedure for the permanent chairman of the Constituent Assembly were agreed upon unanimously by the Assembly members.
2/n
Within the agreed date, a total of 4 nominations were received for the Chairman of the Constituent Assembly.
The first nomination was for Dr. Rajendra Prasad (member-Bihar), proposed by J B Kriplani (member-United Province) and Seconded by Vallabhbhai Patel (member- Gujarat)
3/n