दुर्गा भाभी..
अद्वितीय देशभक्ति की एक अनूठी मिसाल..@Sheshapatangi
नारी शक्ति का पर्याय दुर्गा भाभी जो जतिन्द्र नाथ दास की पार्थिव देह के साथ लाहौर से कलकत्ता आईं..जतीन्द्र नाथ जिनकी मृत्यु लाहौर कारागार में लगातार 63 दिनों के अनशन के कारण हुई,पूरे रास्ते लोग स्वतंत्रता के इस दीवाने को श्रृद्धांजलि देने के लिए जुड़ते रहे.
वे अपने घर में अकेली थी,उनके पति श्री भगवती चरण वोहरा 17/12/1928 को आयोजित काँग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए कलकत्ता गए थे..
लाला लाजपतराय की मृत्यु के लिए उत्तरदायी अंग्रेज पुलिस अधिकारी जाॅन सांडर्स मारा गया था और अंग्रेजी सरकार ने लाहौर में कड़ी पाबंदियां लगाई हुई थी।
रात को अचानक दस्तक सुन द्वार खोला तो भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव से सामना हुआ..भगत सिंह ने अपनी पहचान छुपाने के लिए दाढ़ी और बाल कटवा लिए थे..दुर्गा भाभी उन्हें पहचान नहीं पाई जब तक राजगुरु ने उनका परिचय नहीं दिया..
राजगुरु ने सोचा कि वे उन्हें लाहौर से निकलने में सहायक हो सकती हैं..
और अपनी जान के खतरे की परवाह किए बगैर वे इसके लिए मान गईं..उन्होंने घर में रखी धनराशि भी उन्हें दी..और अंग्रेजी गुप्तचर पुलिस को धोखा देने के लिए भगत सिंह की पत्नी बन साथ चलने को तैयार हो गईं..
स्वतंत्रता संग्राम में इन तीनों क्रांतिकारियों के महत्व को देखते हुए उन्होंने अपने तीन वर्षीय बालक को साथ लिया..राजगुरु घर के नौकर बन साथ चले..और ब्रितानी बंदोबस्त की आँखों में धूल झोंक लखनऊ की गाड़ी में बैठ गए..
आपको याद होगा..चन्द्रशेखर आजाद भी सुखदेव की माताजी और बहन के साथ साधु के वेश में तीर्थ यात्रा के बहाने ऐसे ही लाहौर से भाग निकले थे..
लखनऊ पहुँचते ही भगतसिँह ने भगवती चरण जी को तार भेजा कि वे दुर्गावती के साथ कलकत्ता आ रहे हैं..और राजगुरु बनारस की ओर..
कलकत्ता पहुँचने पर दुर्गावती के साहस पर भगवती चरण अत्यधिक प्रसन्न हुए.
इसी छद्मवेश में भगतसिंह ने काँग्रेस के अधिवेशन में हिस्सा लिया।
और इसी समय भगतसिंह का तिरछी टोपी वाला मशहूर छविचित्र लिया गया।
दुर्गावती का जन्म 7/10/1907 को हुआ और ग्यारह वर्ष की उम्र में उनका विवाह पंद्रह वर्षीय भगवतीचरण जी के साथ हुआ जिनके पिता शिवचरण दास को रायसाहब की उपाधि से बड़ा प्यार था किंतु भगवतीचरणजी अंग्रेजों से कोई लगाव नहीं रखते थे।वे अक्सर भगतसिंह और अन्य क्रांतिकारियों से मिलते रहते थे।
भगतसिंह ने मार्च 1926 में नौजवान भारत सभा की स्थापना की।
भगवती चरण जी बम बनाने में सिद्धहस्त थे।
उनकी और दुर्गावती की जोड़ी राष्ट्र के प्रति समर्पित थी।क्रांतिकारी उन्हें दुर्गाभाभी कह कर बुलाते थे।वे क्रांति की समर्थक ही नहीं बल्कि एक सक्रिय सदस्य थीं।
भगवतीचरण जी ने उन्हें बंदूक चलाना भी सिखाया।
स्वतंत्रता सेनानी,अनुशीलन समिति सदस्य योगेश चंद्र चटर्जी के अनुसार
दिल्ली की केन्द्रीय सभा में बम फेंकने की योजना कलकत्ता में ही बनाई गई।
8/4/1929 को भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने गिरफ्तारी से पहले सभा में बम और क्रांति के परचे फेंके।
लाहौर मामले में कार्रवाई के समय इन आरोपों को भी साथ में जोड़ा गया जिसमें HSRA, हिंदुस्तानी सोशलिस्ट रिवोल्यूशनरी ऐसोसिएशन के युवा क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी हुई.भगतसिंह,सुखदेव और राजगुरु को मृत्युदंड दिया गया।
भगवती चरण भगतसिंह को छुड़ाने के लिए कारागार में बम फेंकने की योजना बना रहे थे किंतु रावी तट पर परीक्षण के दौरान हुए बम विस्फोट ने उनके प्राण ले लिए।
अपने पति की मृत्यु से आहत दुर्गावती पूरी तरह से आजादी की लड़ाई में कूद पड़ी।
जुलाई1929 में भगतसिंह के समर्थन में एक जुलूस निकाला..
जिसका नेतृत्व दुर्गा भाभी ने किया और
भगतसिंह की रिहाई की मांग की।
8अक्टूबर 1929 को उन्होंने दक्षिण मुंबई की लैमिंग्टन रोड पर खड़े अंग्रेज सिपाही और उसकी पत्नी को गोली मार दी।
बाद में इसे महिला क्रांतिकारी गतिविधि की शुरुआत कहा गया।
इसके लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और तीन साल का कारावास दिया गया।
छद्म इतिहासकारों ने ये बात छुपाई कि उन्हें सावरकर का आशीर्वाद प्राप्त था और इसके बाद सावरकर की नजरबंदी बढ़ा दी गई।
जेल से छूटने पर दुर्गावती का नया संघर्ष शुरू हुआ। साथी क्रांतिकारी या तो मार दिए गए थे या जेल में बंद थे।वे अकेली रह गईं और गाजियाबाद आ कर अध्यापन करने लगीं।
1939 में मांटेसरी प्रशिक्षण के लिए मद्रास गईं ..
एक साल बाद उन्होंने उत्तर भारत का पहला मांटेसरी स्कूल लखनऊ में आरंभ किया..पाँच गरीब बच्चों के साथ..
आजादी के बाद गुमनामी का शांत जीवन जीते हुए उन्होंने 15 अक्टूबर 1999 को 92 वर्ष की उम्र में अंतिम साँस ली और एक साधारण महिला की तरह इस संसार से चली गईं।
हमें नहीं मालूम कि उन्हें पद्मश्री का सम्मान मिला या किसी तरह की पेंशन राशि..
चमचों के चरखों में बंदूक के चरचे हो भी तो क्यों?
बस इतना ही।
विनम्र श्रद्धांजलि।
वंदेमातरम।
🙏
• • •
Missing some Tweet in this thread? You can try to
force a refresh
आज ग्यारह सितम्बर है..
भारतीय इतिहास का एक बहुत बड़ा दिन..
आज ही के दिन स्वामी विवेकानंद ने
शिकागो में विश्व हिंदू सम्मेलन में वह ऐतिहासिक भाषण दिया था जिसके बारे में सोच कर आज भी हमारा ह्रदय अपने धार्मिक वैभव और थाती पर गर्व से आल्हादित हो उठता है..
आज का दिन हमारी गौरवशाली परंपरा के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि ये दिन देश की एक और महान विभूति से जुड़ा है।
आइए आज बात करते हैं कविवर सुब्रह्मण्यम भारती की जिनके गीत हम गाते हैं, जिनका देवलोक गमन आज ही के दिन हुआ..
और जिनके अंतिम संस्कार में केवल चौदह व्यक्ति सम्मिलित हुए थे..
है ना आश्चर्य की बात..?
कहते हैं कि ऐसा तो किसी शत्रु के साथ भी न हो..किंतु बिल्कुल ऐसा ही हुआ तमिलनाडु के सबसे लोकप्रिय स्वातंत्र्यवीर 'भारतीयार' के साथ.. @Sheshapatangi
जलियाँवाला बाग सुनते ही आज भी हर सच्चे भारतीय की आत्मा सिहर उठती है और लहू खौल उठता है..
आइए बात करते हैं उस अमर बलिदानी की जिसने इस जघन्य हत्याकांड का प्रतिशोध लेने के लिए 21साल प्रतीक्षा की.. #उधम_सिंह
आगे बढ़ने से पहले जानने योग्य बात यह है कि उधम सिंह द्वारा प्रतिशोध की कार्यवाही पर चाचा जी और बापू जी की प्रतिक्रिया क्या रही..
उधमसिंह के इस कार्रवाई को अधिकांश भारतीयों ने अंग्रेजों के अत्याचारों पर एक प्रतिक्रिया ही माना किंतु भारत के तथाकथित कर्ताधर्ताओं ने इसकी भर्त्सना की।
बापू ने इसे पागलपन बताते हुए कहा कि"इस अतिरेक से मुझे बहुत कष्ट पहुँचा है और मैं इसे पागलपन समझता हूँ।"
"बहरों को सुनाने के लिए धमाकों की आवश्यकता पड़ती है.."
कितने लोगों को ये संवाद याद है?
8 अप्रैल 1929 को दिल्ली की केन्द्रीय विधान सभा में हुए धमाके की गूँज सात समंदर पार ब्रितानी सरकार के कानों तक सुनाई दी थी..
बात करते हैं बटुकेश्वर दत्त की जो इस साहसिक कारनामे में भगत सिंह के साथ थे..
क्या कहें उन्हें ?
एक मुख्यमंत्री, एक हत्यारा.. या एक हत्यारा मुख्यमंत्री..?
आइए बात करते हैं ज्योति बासु की..आज उनके जन्मदिन पर..
ज्योति बासु ने पूरे 23 साल, 4 महीने और 17 दिन पश्चिम बंगाल पर एकछत्र राज किया 1977 से 2000 तक मुख्यमंत्री के रूप में..
एक कम्युनिस्ट आतंकी जो अपने कार्यकाल में हर रोज कम से कम
5 हत्याओं के लिए उत्तरदायी रहे.. लोगों की और उद्योगों की..
1977 में सत्ता में आने से बहुत पहले ही मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने हत्या को राजनैतिक अस्त्र की तरह काम में लेना शुरू कर दिया था।
1970 से जब उन्होंने बर्धवान के सेन परिवार से सम्बंधित कांग्रेस के दो प्रमुख नेताओं का वध किया।
रे चीन..बाकी सब तो ठीक है..
तू मन्नै ये बता के 800 भेड़ां ताईं पेट ना भरो के थारो..?
ये 800 भेड़ों की कहानी बड़ी मजेदार है..
1972 के युद्ध के तीन साल बाद चीन ने भारत पर सीमा अतिक्रमण के साथ भारतीय सेना पर चीन की 800 भेड़ें और 59 याक चुराने का आरोप भी लगाया..
1965 की बात है..तब भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे..
चीन की तरफ से घुसपैठ के प्रयास तो होते ही रहते हैं और उल्टा चोर कोतवाल डाँटे की तर्ज़ पर फिर वो अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत पर अनर्गल आरोप लगाता है..
इस बार भी ऐसा ही हुआ..
आज पाँच जुलाई है..
आज उसका जन्मदिन है जो हम सभी भारतीयों के ह्रदय में देशप्रेम का प्रतीक रही है..
जो जगाती आई है बच्चे-बच्चे के मन में मातृभूमि के प्रति समर्पण की उत्कंठा ..
जो सशरीर नहीं होते हुए भी सजीव रही है,
संपूर्ण भारत की आत्मा में रची बसी है..
उसका जन्म पाँच जुलाई 1921 को बिलासपुर के केन्द्रीय कारागार की बैरक नंबर 9 में हुआ।
जेल में जन्मी थी तो स्वतंत्रता की चाह तो अवश्यंभावी रही होगी..
आजादी के दीवानों की ही नहीं यह हम सब की भी प्रिय है..आज भी..
हम बात कर रहे हैं..
"पुष्प की अभिलाषा" की..
जो आज से ठीक सौ साल पहले महान राष्ट्र भक्त कवि पं. माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा युवाओं में आजादी की अलख जगाने के लिए लिखी गई।
चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ ..