मैं आवश्यक एक कृषि सुधार,
तुम जबरन एक प्रोटेस्ट प्रिये,
मैं सकल राष्ट्र में व्याप्त शांति,
तुम दिल्ली का अनरेस्ट प्रिये,
मैं मेहनत पर निर्भर किसान,
तुम काश्तकार एम एस पी पर,
मैं परेशान एक लोकतंत्र,
तुम पोषित कोई पेस्ट प्रिये!
मैं यू एस ए की प्रोफ़ेसर,
तुम राडिया कन्सल्टेंट प्रिये,
मेरी निधि पर भारी फिसिंग,
इक “एरर ऑफ़ जज्मेंट प्रिये,”
तुम दिल्ली की कैबिनेट मेकर,
मैं हॉर्वर्ड तक फ़ॉर्वर्ड,
मैं पत्रकारिता की मशाल,
तुम उसका अटेनमेंट प्रिये!
मैं कृषक फ़्रेंडली गौरमिंट,
तुम कोई चक्का जाम प्रिये,
मैं फ़िक्स्ड रेट एम एस पी का,
औ तुम मंडी का दाम प्रिये,
मैं खटनी-रत कोई किसान,
तुम मिया ख़लीफ़ा फ़ॉर्मिंग की,
मैं थनबर्गित एक गूगल-शीट,
तुम ट्वीटित कोई ईनाम प्रिये!
मैं ट्विटर की ट्विस्टेड परिभाषा,
तुम उसमें हेट- स्पीच प्रिये,
मैं कॉमी हूँ एक उच्च-कुलीन
तुम राइट विंगर नीच प्रिये,
मेरे विधि औ सिद्धांत सभी,
केवल तुम पर लागू होते,
जब चाहूँ कोई ट्वीट पकड़,
तुमको कर दूँ इम्पीच प्रिये!
मैं ट्विटर की बोरिंग पॉलिटिक्स,
तुम क्लब हाउस का तान प्रिये,
मैं लाइकजीवी फेसबुकी,
तुम कोरा-जानित ज्ञान प्रिये,
मैं कू का उलझा फ़ीड कोई,
तुम इंस्टाग्रामित हैशटैग,
मैं परित्यक्त गूगल प्लस सा,
तुम यूट्यूबी सम्मान प्रिये!
मैं मंदिर विज़िट प्रियंका का,
तुम राहुल जी के ऐब प्रिये,
मैं कांग्रेसी ट्रायल एरर,
और तुम स्काई-लैब प्रिये,
मैं माला-फूल लपेट चलूँ,
तुम गोताखोरी करके ख़ुश,
मैं चायनीज़ कोई लैपटॉप,
तुम पाकिस्तानी टैब प्रिये!
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आज शनिवार है और अरुणाचल के एक छोटे से ब्लॉक में पोस्टेड हमारे मित्र ADO साहब साढ़े नौ बजे अपनी बाइक पर असिस्टेंट को लेकर निकल गए हैं खेतों की Geo Tagging करने ताकि Farm Traceability ensure की जा सके और आप सरकार को गाली देते हुए देश की राजधानी बंद करना चाहते हैं।
आपको नींद से जागने की आवश्यकता है। ये जो पचास वर्षों से लगातार एक ही बात सुनाई जा रही है कि देश के एक दो राज्य ही देश का भोजन उत्पादन करते हैं उस धारणा में दरार पड़ चुकी है। संभलने की आवश्यकता आपको है।
बाक़ी राज्यों में किसान की किसानी बहुत मज़बूत हुई है, बस उन्हें स्पेस नहीं मिलता कि वे बता सकें कि क्या कर रहे हैं क्योंकि वे बेचारे दिल्ली से दूर रहते हैं।
यह कैसा तर्क है कि; एक भी श्लोक रामायण में दिखा सकते हो जो साबित कर दे कि श्रीराम के अयोध्या लौटने पर पटाखे जलाए गए थे?
कोई यह साबित कर सकता है कि इस पृथ्वी पर पहले शुभ कार्य में नारियल या फूल का प्रयोग किया गया था? पहले पूजन में ही दीपक का प्रयोग किया गया था?
क्या हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता के धार्मिक, सांस्कृतिक अनुष्ठान या पूजा पद्धति के नियम पहले ही दिन तय हो गए होंगे? क्या किसी ने पहले ही दिन लिख कर नियम बना दिए थे कि बस इतना ही करना है और इससे बाहर कुछ नहीं करना है?
जिस संस्कृति का इतिहास सहभागिता का अनुपम उदाहरण रहा हो, उसके विकास में समय समय पर नियम जुड़े न हों, इस बात की गारंटी कोई दे सकता है? यदि पहले दिन किताब लिख कर रख दी गई होती तो क्या हमारे इतने देवता होते? हमारे यहाँ पूजा की इतनी पद्धतियाँ होतीं?
जाट आंदोलन,अर्बन नक्सल,दिल्ली दंगा,तुर्की प्लान,एमपी किसान ‘आंदोलन’, शाहीन बाग, जेएनयू..... हाथरस, ऐसे षड्यंत्र तानाशाही के विरुद्ध किए जाते हैं।
नरेंद्र मोदी को वर्षों तक तानाशाह कहने का सबसे बड़ा परिणाम यह है कि विपक्ष(कांग्रेस) अपने प्रॉपगैंडा में ख़ुद ही विश्वास करने लगा है।
लोकतंत्र में विरोध के तरीक़े षड्यंत्र और मीडिया से नहीं बल्कि परोक्ष रूप से रैली, डिबेट, शासन का विकल्प और नेतृत्व देने में है। समस्या यह है कि इतने षड्यंत्र करने के बाद की बदनामी और लोकतांत्रिक तरीक़े अपनाने पर असफल होने का भय विपक्ष को केवल षड्यंत्र करने तक रोक के रखता है।
विपक्ष पोषित पत्रकार और संपादक हवाट्सऐप यूनिवर्सिटी का चाहे जितना मज़ाक़ बना लें और सच को हँसी में चाहे जितना उड़ा लें, सच यही है कि सोशल मीडिया बहुत मज़बूत है और सूचना प्रसार से देश का राजनीतिक भविष्य तय करने की क्षमता रखता है।
मैं सीधी सोच का कंज़्यू-मर,
तुम कोई ऐड-जेहाद प्रिये,
मैं रामायण की चौपाई,
तुम ट्विस्टेड इक संवाद प्रिये,
मेरा विरोध बस शब्दों तक,
पर दोष सदा मेरे माथे,
पर भूल न जाना, मुझसे ही,
बाज़ार सदा आबाद प्रिये,
मैं शरद पवार के सच जैसा,
तुम भारत भर की भ्रांति प्रिये,
मैं हूँ यूएसए की उथल-पथल,
तुम हो ईरान की शांति प्रिये,
मैं नीतिवचन शिवसेना का,
तुम तड़पन जैसे अरनब की,
मैं हूँ राहुल की लीडरशिप,
तुम कम्यूनिस्टों की क्रांति प्रिये!
मैं सहज पुरातन संस्कार,
तुम एक किताबी तर्क प्रिये,
मैं सर्वस्व समेटे द्रोणगिरि,
तुम हो बूटी का अर्क प्रिये,
मैं दर्शन बल वाला मानस,
तुम व्यक्ति-बंध वाला शरीर,
वह, जिसे मापना दुर्लभ हो,
है इतना लंबा फर्क प्रिये!
रुरल इकॉनमी में ऐग्रिकल्चरल प्रडूस के लिए कॉंट्रैक्ट फ़ॉर्मिंग में फ़ॉर्मिंग में फ़ॉर्मिंग ही महत्वपूर्ण है, कॉंट्रैक्ट नहीं। वही मॉडल काम करेगा जिसमें कम्पनी २००-३०० किसानों के परिवार अडॉप्ट कर ले और उनके और उनके परिवार के लिए सबकुछ करे।
तमाम केस देखें हैं मैंने जिसमें किसान जी ने कॉंट्रैक्ट फ़ॉर्मिंग के तहत आलू की खेती की और तैयार होने पर एक रात आलू निकाल लिया और सुबह थाने में रपट लिखा दी।
राग दरबारी के थानेदार जी वैद्यजी की ठंडाई पीकर किसान जी के प्रोटेक्शन में उतर जाते हैं।
और जहाँ कॉंट्रैक्ट फ़ॉर्मिंग नहीं है वहाँ एक ही फसल के लिए किसान जी तीन लोगों से एडवांस लेकर चौथे को माल बेंच देते हैं।
मझोले और छोटे किसानों को मज़बूत बनाना और कोर्ट कचहरी को दुरुस्त करना ही लॉंग टर्म सलूशन है।