भारत की प्रथम महिला टीचर माता #सावित्रीबाई_फुले ने महिलाओं और शूद्रों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया था.
ऐसा करने के लिए उन्होंने अपनी जान की बाजी तक लगा दी थी. जब भी वे पढ़ाने जाती थीं तो ब्राह्मणवादी लोग उनपर गोबर और पत्थर फेंकते थे. मनुवादियों को लगता था कि ऐसा करने से (1/1)
सावित्री बाई फुले पढ़ाना छोड़ देंगी. लेकिन प्रथम महिला टीचर ब्राह्मणवादियों के आगे नहीं झूकीं. वे जब भी पढ़ाने जातीं तो 2 साड़ी साथ लेकर जाती. रास्ते में गोबर फेंकने वाले ब्राह्मणों का मानना था कि शूद्रों और महिलाओं को पढ़ने का अधिकार नहीं, यह पाप है, मनु के विधान के खिलाफ है 1/2
सावित्री बाई फुले घर से जो साड़ी पहनकर निकलती थीं वो दुर्गंध से भर जाती थी. स्कूल पहुंच कर वे दूसरी साड़ी पहन लेती. फिर महिलाओं को पढ़ाने लगती थीं. सावित्री बाई फुले उस दौर में अपने पति को खत लिखा करती थीं. उन खतों में सामाजिक मुद्दों और ब्राह्मणवादी व्यवस्था का जिक्र होता. 1/3
1868 में गणेश नाम के एक ब्राह्मण को छोटी जाति की महिला से प्यार होता है, महिला 6 महीने की पेट से हो जाती है. यह बात गांव वालों को पता चलती है, सब दोनों को जान से मारने के लिए इकट्ठा होते हैं. तभी सावित्री बाई फुले वहां पहुंचती हैं और अपनी जानपर खेलकर दोनों को बचा लेती हैं. 1/4
इस घटना का उल्लेख मां सावित्री बाई फुले ने अपने खत में किया है, यह खत उन्होंने ज्योतिराव फुले को 29 अगस्त 1868 को लिखा था.
इसी तरह एक दूसरे खत में वह अपने भाई की सोच का जिक्र करती हैं. 1856 में माता सावित्री बाई फुले का छोटा भाई कहता है, 'आप पती-पत्नी शूद्रों के लिए काम कर 1/5
रहे हो.' तब ज्योतिराव फुले को लिखे एक खत में मां सावित्री बाई लिखती हैं, 'मैंने उसकी बात को काटते हुए कहा, तुम्हारी बुद्धि ब्राह्मणों की सीख से दुर्बल हो गई है. तुम बकरी, गाय इन को प्यार से पाल लेते हो, नागपंचमी पर नाग को दूध पिलाते हो. महार-मांग (दलित) तुम्हारे जैसे मानव हैं 1/6
उनको तुम अछूत समझते हो इसकी वजह बताओ, ऐसा सवाल मैंने उससे किया.'
देश की मेरी प्यारी महिलाओं जिन राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले की वजह से आज आप पढ़, लिख और बोल पा रही हैं उनके सम्मान में कलम न रूकने देना. उनके विचारों को पढ़ना, घर-घर जाकर उनके बारे में बताना. जो दुष्ट मनु 1/7
महिलाओं और शूद्रों को जानवर समझता था, उन्हें दासता से मुक्ति दिलवाने में सावित्री बाई फुले का बड़ा योगदान है. उन्होंने तब बलात्कार से पीड़ित विधवा महिलाओं की प्रसूति के लिए शेल्टर खोले थे. अकाल और महामारी के दौरान जान हथेली पर लेकर लोगों की सेवा की. 1/8
इतना ही नहीं उस दौर में अपने पति महात्मा ज्योतिराव फुले के अर्थी को कंधा दिया था.
केरल में यह दलित लड़का अपने माता-पिता के लिए कब्र खोद रहा है, वह पुलिसवालों से कह रहा है, 'तुम लोगों ने मेरे मां-बाप की जान ले ली, अब बोलते हो कि मैं इनका अंतिम संस्कार भी नहीं कर सकता.'
तिरुवनंतपुरम के एक गांव में दलित लड़के के पिता खाना खा रहे होते हैं, तभी पुलिस आती है और 1/1
कहती है कि घर खाली करो. राहुल राज के पिता कहते हैं कि खाना खाकर हमलोग चले जाएंगे लेकिन पुलिस नहीं मानती है. इस अपमान और पीड़ा से व्यथित होकर राहुल के पिता खुद पर पेट्रोल डाल आग लगाने की धमकी देते हैं. जिसके बाद पुलिस के साथ लाइटर की छीना-झपटी में लाइटर जमीन पर गिर पड़ती है और 1/2
राहुल के माता पिता की जलकर मौत हो जाती है. आप जानते हैं कि कितनी जमीन के लिए राहुल राज के माता-पिता को अपनी जान गंवानी पड़ी? 1 एकड़ के 33वें हिस्से की खातिर राहुल की सिर से माता-पिता का हाथ हट गया. यह दलित लड़का बेसहारा हो चुका है, राहुल गुस्से और बेइंतहां गम में है लेकिन 1/3
पेशवा साम्राज्य के वक्त दलितों को थूकने के लिए अपने गले में हांडी लटकाना पड़ता था, कमर पर झाड़ू बांधना पड़ता था ताकि जब वे चले तो झाड़ू उनके पैरों के निशान मिटाता चले. पेशवा और उनके पूर्वज दलितों के साथ जानवरों जैसा व्यवहार करते थे (1/1)
दलित सवर्णों के तालाब से पानी निकालने की सोच भी नहीं सकते थे, इसलिए महार जाति के लोग पेशवाओं के ब्राह्मणवादी व्यवस्था से लड़ने के लिए ब्रिटिश सेना में शामिल हुए.
1 जनवरी 1818 को महार जाति (दलित) के 500 जाबांज लड़ाकों ने पेशवाओं की विशाल सेना को भीमा कोरेगांव में धूल चटा दिया 1/2
सदियों से अपमान झेल रहे दलितों ने पेशवाओं से बदला लिया, उन्होंने ब्राह्मणवादी व्यवस्था में कील ठोंक दिया. यह लड़ाई थी गरिमा और सम्मान वापस पाने की, यह लड़ाई थी हक छीनने की. सदियों की दासता की बेड़ियों को महारों ने तलवार से काट दिया था 1/3