ईद का दिन था
सुबह-सुबह किसी ने टोका,“ईद मुबारक हो!”
मैंने कहा, “आपको भी ईद मुबारक हो!”
सवाल हुआ, “नमाज़ पढ़ने नहीं गए, “लेकिन स्वीमिंग करने जा रहे हो!”
मैंने कहा, “हां, मैं नहीं गया”
क्यूंकि मैं नाराज़ हूं उस ख़ुदासे जो ये दुनिया बना के भूल गया है
जो कहीं खो गया है या शायद सो गया है
या जिसकी आंखें फूट गई हैं
जिसे कुछ दिखा नहीं देता
कि उसकी बनाई हुई इस दुनिया में क्या-क्या हो रहा है
हां, मैं नाराज़ हूं
और तब तक मस्जिद में क़दम नहीं रखूंगा
जब तक गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में मरे
उन तीस बच्चों की सांसें फिर से चलने नहीं लगतीं
जिनकी मौत अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से हुई थी
जब तक आयलन कुर्दी फिर से ज़िन्दा नहीं होता
जब तक दिल्ली की वो दो लड़कियां
सही सलामत वापस नहीं आतीं
जिन्हें जलते हुए तारकोल के ड्रम में
सिर्फ़ इसलिए डाला गया था
क्यूंकि वो मुसलमान थीं
और हां, मुझे उनके चेहरे पे कोई दाग़ नहीं चाहिए
मैं नाराज़ हूं
और तबतक मस्जिद में क़दम न रखूंगा
जब तक हरप्रीत कौर और हर पंजाबन औरत और बच्ची
बिना ख़ंजर लिए सुकून से नहीं सोती
जब तक दंगों में गुम मंटो की शरीफ़न
अपने बाप क़ासिम को मिल नहीं जाती
तब तक मैं नमाज़ नहीं पढ़ूंगा
मुझे तुम्हारे क़ुरआन पे पूरा भरोसा है
बस उसमें से ये जहन्नुम का डर निकाल दो
डर की इबादत भी भला कोई इबादत है?
कैसा होता कि मैं अपनी ख़ुशी से
जब चाहे मस्जिद में आता
और एक रकअत में ही गहरी नींद
और तेरी गोद में सो जाता!
मुझे तुमसे शिकायत है
एक सेब खाने की आदम को इतनी बड़ी सज़ा?
तुम्हें शरम नहीं आती?
तुम्हारा कलेजा नहीं पसीजता?
यहां तुम्हारे मौलवी
मस्जिद की तामीर के लिए
कमीशन पे चन्दा इकट्ठा कर रहे हैं
जहां ग़रीबों को दो रोटी नसीब नहीं
वहां मूर्तियों पे करोड़ों रुपए पानी की तरह बह रहे हैं
तुम्हारे नाम पे यहां रोज़
जाने कितने मर रहे हैं
तुम्हें पता भी है कुछ?
लोग पाकिस्तान को इस्लामिक देश कहते हैं
तुम्हें हंसी नहीं आती?
और तुम्हें शरम भी नहीं आती?
तुम्हारी मासूम बच्चियों को पढ़ने से रोका जाता है
कोई सर उठाए तो उन्हें गोली भी मार देते हैं
तुमने एक मलाला को बचा लिया तो ज़्यादा ख़ुश न होओ
तुम्हारे आंसू नहीं बहते?
जब किसी बोहरी लड़की का
ज़बर्दस्ती ख़तना किया जाता है!
क्या तुम्हें उन मासूम लड़कियों की चीख़ सुनाई नहीं देती?
या तो तुम बहरे हो गए हो
या तुम्हारे कान ही नहीं हैं
या फिर तुम ही नहीं हो
तुम तो कहते हो तुम ज़र्रे-ज़र्रे में हो!
फिर जब कोई मंसूर अनल-हक़ कहता है
तब उसकी ज़बान काट क्यूं ली जाती है?
क्या उस कटी ज़बान से टपके ख़ून में तुम नहीं थे?
क्या मंसूर की उन चमकती आंखों में
तुम उस वक़्त मौजूद नहीं थे?
जो तुम्हारी आंखों के सामने फोड़ दी गईं?
क्या मंसूर के उन हाथों में तुम नहीं थे, जो काट दिए गए?
क्या मंसूर के पैर कटते ही
तुम भी अपाहिज हो गए?
आओ, आके देखो अपनी दुनिया का हाल
आबादी बहुत बढ़ चुकी है
अब सिर्फ़ एक मुहम्मद से काम नहीं चलेगा
तुम्हें पैग़म्बरों की पूरी फ़ौज भेजनी होगी
क्यूंकि मूसा तो यहूदियों के हो गए
और ईसा को ईसाइयों ने हथिया लिया
दाऊद बोहरी हो गए
बुद्ध का अपना ही एक संघ है
महावीर, जो एक चींटी भी मारने से डरते थे
उस देश में इन्सान की लाश के टुकड़े
काग़ज़ की तरह बिखरे मिलते हैं
जाने कितने दीन धरम मनगढ़ंत हैं
श्वेताम्बर, दिगम्बर, जाने कितने पंथ हैं
आदम की औलाद सब, जाने कैसे बिखर गए
तुम्हारे सब पैग़म्बरों के टुकड़े-टुकड़े हो गए
तुम तो मुहम्मद की
इबादत में बहे आंसुओं से ख़ुश हो लिए
मगर क्या तुम्हें ये सूखी धरती दिखाई नहीं देती?
ये किसान दिखाई नहीं देते?
तेरी दुनिया में आज
अनाज पैदा करने वाले ही भूखे मरते हैं
मुझे हंसी आती है तेरे निज़ाम पर
और तू मुझे जहन्नुम का डर दिखाता है?
जा, मैं नहीं डरता तेरी दोज़ख़ की आग से
यहां ज़िन्दगी कौन सी जहन्नुम से कम है?
पीने का पानी तक तो पैसे में बिकता है!
तू पहले हिन्दुस्तान की औरतों को
मस्जिद में जाने की इजाज़त दिला
तू पहले अपने मुल्ला-मौलवियों को समझा
कि लोगों को इस तरह गुमराह न करें
तीन बार तलाक़ कह देने से ही तलाक़ नहीं होता!
तू आके देख
मदरसों में मासूम बच्चों को क़ुरआन
पढ़ाया नहीं, रटाया जाता है
फिर इन्हीं रटंतु तोतों को हाफ़िज़ बनाया जाता है
जो तेरी बा-कमाल आयतों को तोड़-मरोड़ कर
अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करते हैं
मैं किस मस्जिद में जाऊं?
तू तो मुझे वहां मिलता नहीं!
और तेरे दर, काबा आने के इतने पैसे लगते हैं!
जहां हर साल भगदड़ होती है
और न जाने कितने ही बेवक़ूफ़ मरते हैं!
मैं कहता हूं, इतनी भीड़ में जाने की ज़रूरत क्या है?
कितना अच्छा होता कि मैं मक्का पैदल आता!
और तू मुझे वहां अकेला मिलता
तू पहले ये सरहदें हटा दे
ये क्या बात हुई
कि तेरे काबा पे अब सिर्फ़ कुछ शेख़ों का हक़ है?
तू पहले समझा उन पागलों को
कि तुझे सोने के तारों से बुनी चादर नहीं चाहिए!
मैं तब आऊंगा वहां
अभी तेरी मस्जिद में आने का दिल नहीं करता!
जानता है क्यूं?
अंधेरी ईस्ट की साईं गली वाली मस्जिद के बाहर
एक मासूम सी लड़की
आंखों में उम्मीद लिए और हाथ फैलाए हुए
भीख मांगती है
मैं उसे पांच रुपये देने से पहले सोचता हूं
कि इसकी आदत ख़राब हो जाएगी!
फिर ये इसी तरह भीख मांगती रह जाएगी
अगर मैं उससे थोड़ी हमदर्दी दिखाऊं
तो लोगों की नज़र में, मेरी नज़र ख़राब है
मैं उसे अपने घर भी ला नहीं सकता
कुछ तो घर वाले लाने नहीं देंगे
और कुछ तो उसके मालिक भी
हां, शायद तुम्हें किसी ने बताया नहीं होगा
हिन्दुस्तान में बच्चों से भीख मंगवाने का
बा-क़ाएदा कारोबार चलता है
मासूम बच्चों को पहले अगवा किया जाता है
फिर उनकी आंखें फोड़ दी जाती हैं
कुछ के हाथ काट दिए जाते हैं, कुछ के पैर!
और फिर तेरी ही बनाई हुई क़ुदरत, रहम का सहारा लेकर
तेरे ही नाम पे, उनसे भीख मंगवाया जाता है
अब मैंने तुझे सब बता दिया
अब तू कुछ कर!
तू इन बच्चों को पहले इस क़ैद से रिहा कर!
फिर मैं तेरी मस्जिद में आऊँगा
तेरे आगे सिर भी झुकाऊँगा
यहां बच्चे मर रहे हैं यार
और तुम बैठे-बैठे देख रहे हो?
तुम्हारे हाथ में कुछ नहीं है?
अगर ऐसा है तो
अभी मुझे लगता है, तू इबादत के क़ाबिल नहीं!
अभी तुझको बहुत से इम्तिहान पास करने होंगे!
हां, इम्तिहान से याद आया
ये तूने कैसी बकवास दुनिया बनाई है?
जो सिर्फ़ पैसे से चलती है
मुझे इस पैसे से नफ़रत है
ये निज़ाम बदलने की ज़रूरत है
तुम पहले कोई ढंग की रहने लायक़ दुनिया बनाओ
फिर मुझे नमाज़ के लिए बुलाओ
और तब तक
तुम यहां से दफ़ा हो जाओ!!!
- क़ैस जौनपुरी
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EIA - Environmental Impact Assessment (पर्यावरणीय प्रभाव अभ्यास)
१५ मार्च २०२० ला सरकारने EIA कायद्यात बदल करण्यासंदर्भात माहिती जाहीर केली. लोकांची मते जाणून न घेणे आणि कोरोनाचा गैरफायदा घेऊन उद्योगपतींच्या फायद्याचे कायदे बनवणे हा मुख्य हेतू.
त्यासाठी सरकारने अंतिम मुदत ३० जून दिली होती. पण कोर्टाने ही मुदत वाढवून 11 ऑगस्ट केली आहे. तर हा EIA काय आहे आणि कायद्यातील कोणते बदल पर्यावरणासाठी घातक आहेत ते जाणून घेऊया...👇🏻
देशात आजही अनेकांना दलित आरक्षण संपावे असे वाटते. पण देशात दलितांची परिस्थिती कोणी जाणून घेत नाही. त्यांच्यावर होणारे अन्याय आजही थांबलेले नाहीयेत. उच्च जातीकडून दलितांवर होत असलेले अन्याय आणि त्यांची परिस्थीती आपण पाहू शकता..👇
National Family Health Survey Data अनुसार दलित महिलांचे सरासरी मृत्यू वय ३९.५ वर्ष इतके आहे. तर उच्च जातीतील महिलांचे हेच वय ५४.१ वर्ष इतके आहे. जवळ जवळ १४ वर्षाचा फरक आहे.
रस्ता, गटारी, Manholes, संडास वगैरे साफ करणाऱ्या एकूण सरकारी कर्मचाऱ्यांपैकी ९०% कर्मचारी आजही दलितच आहेत.
राजर्षी छत्रपती शाहू महाराज यांना जयंती निम्मित मानाचा मुजरा...🙏🙏💐
शाहू महाराज यांच्या माहितीवर आधारित मालिका सुरू केली होती त्या मालिकेची लिंक दिली आहे ज्यांना शाहू महाराज समजून घ्यायचे असतील त्यांनी सर्व थ्रेड नक्की वाचा..👇🙂
छत्रपती शाहू महाराज आणि प्रबोधनकार ठाकरे यांची शेवटची भेट...
"दीनदुबळ्यांच्या भवितव्यावरचा सर्चलाईट विझला..."
शाहू महाराजांनी सत्यशोधक समाजाला दिलेला आश्रय‚ त्यांच्या जलशांना दिलेले उत्तेजन‚ ब्राह्मणेतर पक्षाची केलेली स्थापना आणि त्या माध्यमातून घेतलेला कायदे मंडळीच्या निवडणुकीतील सहभाग‚ अस्पृश्यता निवारणाचे कायदे‚ कुलकर्णी वतन बरखास्ती अशा एक ना दोन उपक्रमांमुळे
महाराज बहुजन समाजाच्या गळ्यातील ताईत बनले होते‚ तर ब्रह्मवर्गाचे नंबर एक शत्रू झाले होते. ब्रिटिश सरकारकडे त्यांच्याविषयी खोट्यानाट्या तक्रारी करण्यापासून ते त्यांच्या चारित्र्यहननाच्या कंड्या पिकविण्यापर्यंत सर्व शस्त्रास्त्रांचा वापर हा ब्रह्मवर्ग करत होता.
"राजर्षी शाहू महाराज" आणि "डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर" यांच्या उपस्थितीत झालेली प्रसिद्ध 'अखिल महाराष्ट्र अस्पृश्य वर्णाची माणगाव परिषद...' 👇
माणगावच्या बहिष्कृत मंडळांनी
अस्पृश्य समाजातील उच्च शिक्षण घेतलेल्या तरुणाचा म्हणजे डॉ.बाबासाहेब आंबेडकरांचा सत्कार करण्याचे ठरवले. या मंडळींचे जातीभेद मोडून काढून एकीने लढण्यासाठी परिषद घ्यायची असे ठरले. या चर्चेत खुद्द नाना मास्तर, गणू मसू सनदी, नागोजी यल्लापा कांबळे,
कृष्णा तुकाराम कांबळे, कृष्णाजी देवू, यमालिंगू, दत्तू सिंघ, कासीम मास्तर आदी कार्यकर्ते होते. मानगावच्या बहिष्कृत मंडळांनी शाहू महाराजांची भेट घेतली. महाराजांना आनंदच झाला. सर्वोतोपरी मदत करण्याचे आश्वासन त्यांनी दिले.एवढेच नव्हे तर मी स्वतःच डॉ. आंबेडकराना निमंत्रण देतो म्हणाले
नागपूर येथे ‘अखिल भारतीय बहिष्कृत समाज परिषदे’च्या समारोपप्रसंगी राजर्षी शाहू महाराजांनी केलेले हे छोटेखानी भाषण
(दि ३० मे १९२०).
या पृथ्वीवर आता ब्राह्मण व शूद्र असे दोनच वर्ग अस्तित्वात आहेत‚ असे प्रतिपादणाऱ्या अहंकारी ब्राह्मण पंडितांवर महाराजांनी येथे कठोर हल्ला चढविला आहे. ब्राह्मण सोडून बाकीचे तिन्ही वर्ग जिवंत असल्याचा युक्तिवाद त्यांनी केला आहे.
मित्र हो‚
मी आज आपला अध्यक्ष झालो व नेहमी आपला कैवार घेतो म्हणून एक विवक्षित जात नेहमी माझी टवाळी‚ निर्भर्त्सना करिते. लोकमत माझ्याविरुद्ध करण्यास चिथावून देते. परंतु अशाने मला उत्साह व उत्तेजन येते. जी वर्तमानपत्रे माझी निर्भर्त्सना करतात‚ त्यांचे मी अभिनंदनच करतो.