बेमेल शादियों और उनके दुष्प्रभावों से भारत का इतिहास भरा पड़ा है। मैं आज केवल दो इतिहासों की बात करूंगा जिनके बारे में देश का बच्चा बच्चा जानता है।
पहले हम रामायण पर आते हैं। राम और सीता के 36 में से 36 गुण मिलने वाली कहानी सबने सुनी है। राम और सीता एक आदर्श दंपत्ति थे। लेकिन रामायण में और भी विवाह हुए। पहले तो दशरथ का ही विवाह हुआ।
दशरथ को राम के पिता और अयोध्या के राजा के रूप में भले ही पूजा जाता हो मगर नैतिक रूप से वे एक कमजोर और विलासी व्यक्ति रहे। ना केवल उन्होंने कभी कौशल्या को पटरानी का सम्मान और प्रेम दिया, बल्कि काम वासना के वशीभूत होकर अपने से कहीं छोटी उम्र की कैकेयी
और आधी से भी कम उम्र की सुमित्रा से विवाह किया। सुमित्रा व्यवहार से तेज थीं और कौशल्या से सहानुभूति रखती थी (दोनों ही राजनीतिक संधियों के तहत बिना मर्जी के ब्याह के लायी गयीं थी)। इतनी तेज कि दशरथ भी उनके पास जाने से डरते थे। तो दशरथ के पास बची कैकेयी।
बाद में क्या हुआ वो तो सबको पता ही है। अब आते हैं महाभारत पर। महाभारत में तो बेमेल जोड़ियों के बहुत से उदाहरण हैं। शांतनु से शुरू करते हैं। शांतनु की वासना के किस्से सब जानते हैं। पहले गंगा से विवाह किया, बावजूद इसके कि गंगा ने अपने पुत्रों को नदी में बहा देने की शर्त रखी थी।
जब गंगा चली गयी तब अधेड़ उम्र के शांतनु एक मतस्याखेटी की षोडशी पुत्री पर मोहित हो गए। इतने मोहित कि घर आकर बीमार पड़ गए। देवव्रत (भीष्म) को पता चला तो सत्यवती के पिता को कभी विवाह न करने का और कभी राजगद्दी पर नहीं बैठने का वचन देकर अपने पिता के लिए सत्यवती को ले आये।
यहां देवव्रत ने अपने सामाजिक कर्त्तव्य को दरकिनार करते हुए पिता की वासना को प्राथमिकता दी। जहां उनको स्वयं विवाह करके अपने वृद्ध पिता को राजनीतिक उत्तरदायित्व से मुक्त कर, अपने गुरु की शिक्षा को सार्थक करते हुए राज्य का भरण पोषण करना चाहिए था
वहाँ उन्होंने अपने पिता को समझाने कि बजाय उनकी जिद पूरी करना उचित समझा। ये पूरी तरह से बेमेल विवाह था, उम्र बेमेल, सामाजिक स्तर बेमेल, संस्कृति बेमेल, मानस बेमेल। बाद में वही हुआ जो अपेक्षित था। शांतनु सत्यवती को दो पुत्र (चित्रांगद और विचित्रवीर्य) देकर जल्दी ही चल बसे।
सत्यवती हमेशा ही भीष्म कि तरफ से आशंकित रहती थी क्योंकि भीष्म परशुराम के शिष्य, भीषण योद्धा, जनता में प्रिय और उम्र में बड़े थे। अगर भीष्म अपनी प्रतिज्ञा तोड़ देते तो सत्यवती क्या ही कर लेती। यही बात सत्यवती को अंदर ही अंदर खाती रहती थी।
इसीलिए सत्यवती ने अपने दोनों पुत्रों को कभी पढ़ने नहीं भेजा। बल्कि सत्यवती चाहती थी कि उसके पुत्र सत्ता का पूरा आनंद लें। चित्रांगद सत्ता के नशे में चूर होकर गंधर्वों के हाथों मारा गया। तो सत्यवती ने भीष्म को विचित्रवीर्य के लिए पत्नी लाने का काम सौंपा।
अपने बाहुबल के दम पर भीष्म काशी के स्वयम्बर में से अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का हरण कर लाये। भीष्म के लिए ये केवल एक युद्ध कौशल प्रतियोगिता थी कोई स्वयम्बर नहीं। उन्होंने तीनों में से किसी से पूछना भी उचित नहीं समझा। अम्बा उम्र में बड़ी और समझदार थी।
साथ ही वे शल्यनरेश से प्रेम भी करती थी। लेकिन चूंकि मन वीर्यशुल्का था इसलिए भीष्म के पराक्रम को देखकर उनपर मोहित हो गयीं। धर्म का हवाला देतेहुए उन्होंने विचित्रवीर्य से विवाह करने से मना कर दिया और भीष्म से विवाह का प्रस्ताव रखा जिसे भीष्म ने प्रतिज्ञाका हवाला देते हए ठुकरा दिया।
क्षोभित अम्बा भीष्म की शिकायत करने परशुराम के पास पहुँच गयी और दोनों में युद्ध भी हुआ। बाद में परशुराम ने भी अम्बा का पक्ष लेने से मना कर दिया फलस्वरूप अम्बा ने आत्महत्या कर ली।
वहीँ विचित्रवीर्य, दो पत्नियों के बावजूद, बिना संतान के, विलासिता के नशे में चूर होकर बीमारियों का शिकार होकर मर गया। सत्यवती की आखें खुल चुकी थीं मगर तबतक देर हो गयी थी। उन्होंने भीष्म को सत्ता सँभालने के लिए बोला मगर भीष्म के लिए प्रतिज्ञा तोड़ने का अपयश सहना स्वीकार्य नहीं था।
सत्यवती छोटी सोच की महिला थी। उसकी इच्छा थी कि सिंहासन पर उसका ही वंशज विराजमान होना चाहिए, इसलिए नियोग के लिए अपने पहले पुत्र कृष्ण द्वैपायन (वेदव्यास) को बुलाया। केवल सम्भोग के लिए ही सही लेकिन में ये भी बेमेल ही था। फलस्वरूप पैदा हुए पीतवर्णी पाण्डु और दृष्टिहीन धृतराष्ट्र।
पाण्डु का पहला विवाह संकुचित और अपने अतीत के बोझ तले दबी कुंती से हुआ, जिसने जीवन भर सिर्फ आज्ञा लेना ही सीखा था। मगर पाण्डु कुंती से कोई संतति नहीं कर पाए। जैसा कि अक्सर होता है, कमी कुंती में मानी गयी और भीष्म पाण्डु के लिए दूसरी पत्नी के रूप में माद्री को खरीद लाये।
दरअसल मद्र देश में विवाह के समय कन्या की कीमत देने का चलन था (आज भी ये चलन कई जातियों में पाया जाता है)। एक तो भीष्म के पास हस्तिनापुर का खजाना था और दूसरा भीष्म से बैर लेने की हिम्मत मद्र नरेश में नहीं थी। फलस्वरूप माद्री एक वस्तु तरह हस्तिनापुर को बेच दी गयी।
माद्री और पाण्डु की उम्र में भी काफी अंतर था और शक्ल सूरत में भी। हुआ वही जो होना था। पाण्डु भी अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गए। पाण्डु के भाई धृतराष्ट्र आंखों से अंधे थे अंधे थे और मानसिक रूप से कुंठित। उनके दिमाग में हीनभावना बहुत अंदर तक घर कर गई थी।
कोई भी पिता धृतराष्ट्र की स्थिति जानते हुए उसे अपनी पुत्री नहीं ब्याह सकता था। सो धृतराष्ट्र के विवाह का जिम्मा भी भीष्म ने उठाया। भीष्म शक्ति और सम्पति के बलबूते पर गांधार से गांधारी को धृतराष्ट्र के लिए गांधारी को ले आये।
यहां भी गांधारी के मन की बात जानने का कोई प्रयास नहीं किया गया। गांधार नरेश ने अपने राज्य की सीमा के लिए और भीष्म ने धृतराष्ट्र की कामवासना को संतुष्ट करने के लिए गांधारी का सौदा किया था। बाद में क्या हुआ ये किसी से छुपा नहीं है।
यहां देखने वाली बात ये है कि जिस भीष्म ने कभी स्वयं विवाह नहीं किया उसने हस्तिनापुर के वंशजों के विवाह करवाए। भीष्म के करवाए हुए सभी विवाह असफल माने जा सकते हैं। भीष्म के लिए विवाह के लिए प्रेम कभी आधार नहीं था। भीष्म के लिए विवाह का आधार थी राजनीती और अहंकारतुष्टि।
ऐसे में महाभारत तो होनी ही थी। विवाह समाज का आधार होते हैं। विवाह में संतुलन आवश्यक है। बेमेल विवाह गृहक्लेशों को जन्म देते हैं और समाज में विकृति उत्पन्न करते हैं। शायद इसलिए समाज में विवाह को इतना अधिक महत्व दिया जाता है।
शीर्षक में केवल एक मुहावरा इस्तेमाल किया गया है। इसे किसी प्रकार की जातीय या शारीरिक टिपण्णी न समझें।
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दो दिन पहले मैंने एक थ्रेड डाली थी जिसमें मैंने रामायण और महाभारत की घटनाओं का जिक्र किया था। वैसे तो मैंने उस थ्रेड में ऐसा कुछ विवादित नहीं लिखा था मगर जैसा कि आजकल फैशन चल रहा है, कुछ लोग ऑफेंड हो गए।
कुछ लोगों ने धार्मिक विषयों को न छेड़ने की सलाह दी तो एक भाईसाहब सीधे ही गाली-गलौच पर उतर आये। लोगों को लगता है कि धार्मिक मुद्दे सम्वेदनशील होते हैं इसलिए उनपर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। क्यूंकि इससे लोगों कि भावनाएं आहत होने का डर रहता है।
ये लोग कहते हैं कि धर्म के मामले में सवाल नहीं करने चाहिए, जो कहा जाए मान लेना चाहिए, धर्म के विषय वाद-विवाद से परे होते हैं। दिलचस्प बात ये है कि इन अतिभावुक लोगों में से ज्यादातर ने धर्म के बारे में धारणाएं कोई पुस्तक पढ़कर नहीं बल्कि TV पर धार्मिक सीरियल देख कर बनायीं हैं।
सरकारी नीतियों (पॉलिसी) का उद्देश्य अर्थव्यस्था और समाज में सुधार लाना होता है। सरकार नीति बनाती है और फिर उसे लागू करती है। नीतियां लागू करने के कई तरीके हैं। इनमें से दो तरीकों के बारे में आज बात करेंगे।
पहला है कैफेटेरिया एप्रोच और दूसरा है टारगेट बेस्ड एप्रोच। जैसा कि नाम से ही समझ आता है, कैफेटेरिया एप्रोच में पब्लिक को विकल्प दिए जाते हैं और उनमें से एक विकल्प को अपनाना होता है। इस तरीके में ये माना जाता है कि जनता समझदार होती है और अपना भला बुरा समझ सकती है।
दूसरा तरीका जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, थोड़ा स्ट्रैट फॉरवर्ड है। यानी अधिकारियों को पॉलिसी इम्प्लीमेंटेशन के लिए टारगेट दे दिए जाते हैं और साथ में दे दी जाती है पावर। उन्हें किसी भी हालत में तय समय में रिजल्ट देना होता है। #StopPrivatizationOfPSBs #StopPrivatizationOfPSBs
बैंक कंपनियां नहीं हैं। बैंक पब्लिक इंस्टीटूशन (जन संस्थान) हैं। कंपनी का काम होता है प्रॉफिट कमाना। पब्लिक इंस्टीटूशन का काम होता है पब्लिक सर्विस देना। गाड़ियां बनाना कंपनी का काम है, सड़कें बनाना पब्लिक सर्विस है।
बस बनाना कंपनी का काम है, पब्लिक ट्रांसपोर्ट पब्लिक सर्विस है। दोनों को एक ही तराजू में नहीं तोल सकते। अभी साहब ने कहा कि "Government has no business to be in business"। लेकिन ये तो बिज़नेस के नाम पर पब्लिक इंस्टीटूशन बेच रहे हैं।
कल ये फोटो देखी। ये कोई साधारण फोटो नहीं है। ये एक रोंगटे खड़े कर देने वाली, आत्मा को झकझोर देने वाली वीभत्स फोटो है। उतनी ही वीभत्स जितनी गाँधी की हत्या वाली फोटो, वियतनाम में अमरीकी नेपाम अटैक से भागती हुई छोटी सी बच्ची की फोटो,
तुर्की के समुद्र तट पर औंधे मुँह पड़ी हुई बच्चे के लाश वाली फोटो, जली हुई साबरमती ट्रेन और उसके बाद हुए गुजरात के दंगों में हाथ जोड़कर जान की भीख मांगने वाले उस आदमी की फोटो, ISIS द्वारा अमरीकी पत्रकार का गला काटने वाली फोटो,
1943 के बंगाल के अकाल में भूख से मरे लोगों की फोटो, वियतनाम कांग्रेस सदस्य की हत्या की फोटो। ये फोटो इतिहास के काले पन्नों में दर्ज की जायेगी, और सदियों तक भारत में चल रहे लोकतंत्र नमक झूठ की पोल खोलती रहेगी।
अभी सरकार ने कहा कि छोटी दूरी की रेल यात्रा के दाम इसलिए बढ़ाए जा रहे हैं ताकि लोग बेमतलब यात्रा न करें। इससे पहले खानपान पर रोक लगी थी। फिल्में और किताबें तो आये दिन बैन होती ही रहती हैं। Porn देखने पर पहले केंद्र सरकार ने पाबन्दी लगाई और अब UP सरकार पुलिस की धमकी दे रही है।
कोरोना में तो रातों रात लोगों को बिना पूर्व चेतावनी के छह महीनों के लिए घरों में कैद कर दिया था। उससे पहले लोगों को तीन घंटे का नोटिस देकर बैंकों के बाहर लाइन में लगवा दिया था। ऐसे नहीं है कि ये सब अभी शुरू हुआ है। ये माइक्रो मैनेजमेंट तो अंग्रेजों के ज़माने से चला आ रहा है।
आप अपनी मर्जी से पेड़ नहीं उगा सकते, न पानी मर्जी से पेड़ काट सकते हो। किसान को भी अगर खेत में कोई दूसरी फसल उगानी है तो पहले सरकार से परमिशन लेनी पड़ेगी। जमीन बेचनी है तो सरकार से परमिशन, जमीन पर घर बनाना है तो परमिशन, कुआँ खोदना है तो परमिशन।
कल ही सरकार ने घोषणा की कि गवर्नमेंट बिज़नेस अब प्राइवेट बैंक भी कर सकेंगे। जी नहीं, गवर्नमेंट बिज़नेस मतलब सरकारी स्कीम्स लागू करना नहीं होता। गवर्नमेंट बिज़नेस मतलब ट्रेज़री बिज़नेस।
सरकार की तरफ से टैक्स और अन्य सरकारी चालान जमा करना, रेवेन्यू रिसीप्ट जमा करना, पेंशन पेमेंट्स, ट्रेज़री की तरफ से पेमेंट करना। चेक टाइप नंबर 20 यानी स्टेट गवर्नमेंट ट्रेज़री चेक जारी करना इसी गवर्नमेंट बिज़नेस का एक भाग है।
ट्रेज़री एकाउंट्स अनलिमिटेड डेबिट अकाउंट होते हैं जिनके हर साल के अंत में क्रेडिट अकाउंट से रिकन्साइल किया जाता है और उसी के हिसाब से सरकार का आमदनी-खर्चा डिसाइड होता है। आज तक ये सारा काम सिर्फ SBI ही करती थी (दूसरी कोई और भी बैंक करती हो तो मेरी जानकारी में नहीं है)।