" There is no reason to believe that any historical figure was the incarnation of God or God as a historical figure was born in human or any other form".
That's the end of Vaishnavism.
Who are these "Hindu reformists"? you mean Brahmos and Arya samajis?
Remember that Avatara Siddhanta is a corollary of Upanishdic Siddhanta that ब्रह्म is both, the instrument (Nimitta) as well as the material (Upadana) cause of creation.
You reject Avatara, you reject Veda. Gandhi does exactly that.
That is संतमत (hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8…) and it's not considered part of Vedic (ie Sanatan Dharma).
Less said about their "reformist" label (created by Sekoolar-Savarna Commies sponsored by Nehru-Gandhi dynasty post-1947) the better. 1/
Remember that Gandhi lemon was sold as Sanatani mango to the Hindu masses. Gandhi was never a Sanatani other than his mindless babbling which many of his ilks do today eg Kejriwal, Mamta, Pappu etc.
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I did a thread on the सैद्धांतिक पक्ष of Vedic Nirgun Upasana. If you are interested you may go through it.
Probably Guru Nanak can be accepted as Nirguni Vedic Sant but the rest eg Kabir etc can't.
This review of a book on Hindu Astronomy (by a Gora) published in Nature magazine published in the year 1896.
cc @jayasartn@Koenraad_Elst
Two things to note: 1) Astronomical data in Hindu texts contradicts AIT and it makes the book reviewer uncomfortable.
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2) Hindus had a more accurate estimate of the rate of precession than Ptolemy but check any book on astronomy and its section on Precession, it simply ignores Hindu contribution (which IMO is original, Greeks borrowed from us) with proud mention of Hipparchus and Ptolemy.
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"He begins by a discussion of the ancient zodiac, and its general correspondence amongst the Indians, Chinese, Chaldæans, Arabians, and Egyptians;
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Pushtimarg Vaishnavism mein aisa maante hain kya ki Bhagwan Ka Avatar nahin hota, Ishwar Avatar leta hai yah human mind ki imagination hai aur Ram Ravana se bade Rakashas the?
पहले गाँवो में बियाह-कटवा होते थे जो लड़के या लड़की के बारे में कुछ झूठ लड़की या लड़के वाले को बताकर शादी कटवा देते थे। मेरे गाँव एक चाचा की बारात जब गयी तो वहाँ लड़की के घर वाले बिना द्वार-पूजा हुये ही दूल्हे को घर के अन्दर ले गये यह कहकर उनके यहाँ ऐसी ही परम्परा है।
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उनको एक कमरे में ले जाकर बैठा दिया गया। फिर नाउन (नाई की स्त्री) आयी और उनका नाडा़ खोलने लगी। वो हड़बडा़ गये और बोले ये क्या कर रही हो? तब वो बोली की आप के बारे में खबर आयी है कि आपके पास बन्दूक नही है और आप हिजडे़ हैं। तो अगर आप जाँचने नहीं देंगे तो यह विवाह नहीं हो पायेगा☺️
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तब उन्होने कहा कि जब ये बात है तो अच्छी तरह से जाँच कर लो और अपना पाजामा खोल दिया।
तो वैसा ही कुछ सिस्टम यहाँ भी होना चाहिये। 3/
In fact, it's exactly the opposite. Here superiority of Gyankanda (Upanishad) over Upasana Kanda and Karmakanda is being stated as a Siddhanta of Smarta-Sharuata parampara.
What Tulsidas saying in that poem from Gitavali is very subtle and profound Vedic Siddhanta that one has to leave the means (in the form of Karma Kanda and Upasana Kanda) to realize the goal of Gyanakanda (Upanishads).
Let me do some quoting.
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अगर धर्म और भगवान में से एक चुनना पडे़ तो किसको चुनेंगे? इसपर गीतावली से गोस्वामी तुलसीदास का यह पद:
सुनहु राम मेरे प्रानपियारे।
वारों सत्य बचन श्रुति-सम्मत, जाते हौं बिछुरत चरन तिहारे ॥१॥
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भावार्थ: [भगवान् रामके मुखसे वनगमनका प्रस्ताव सुन माता कौसल्या कहने लगीं-] "मेरे प्राणधार राम ! सुनो, जिनके कारण तुम्हारे चरणोंका वियोग होता हो, उन श्रुतिसम्मत सत्य वचनोंको मैं तुम्हारे ऊपर निछावर करती हूँ॥१॥
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बिनु प्रयास सब साधनको फल प्रभु पायो, सो तो नाहिं संभारे।
हरि तजि घरमसील भयो चाहत, नृपति नारि बस सरबस हारे ॥२॥
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भगवान श्रीराम इतने सीधे और सरल हैं कि बार-बार परीक्षा देते रहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ऐसा कभी नहीं करेंगे। ☺️
विश्वामित्रजी जानते थे कि दशरथ के पुत्र के रुप में भगवान ही हैं इसीलिये उनको लेने गये थे।
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गाधितनय मन चिंता ब्यापी। हरि बिनु मरहिं न निसिचर पापी॥
तब मुनिबर मन कीन्ह बिचारा। प्रभु अवतरेउ हरन महि भारा॥
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भावार्थ:-गाधि के पुत्र विश्वामित्रजी के मन में चिन्ता छा गई कि ये पापी राक्षस भगवान के (मारे) बिना न मरेंगे। तब श्रेष्ठ मुनि ने मन में विचार किया कि प्रभु ने पृथ्वी का भार हरने के लिए अवतार लिया है।
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