कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है।
वैसे ही किसान हैं,वैसा ही आंदोलन और वही देशद्रोह की धारा।इतिहास को पढ़ते हुए वर्तमान को याद रखिए,सबकुछ आंखों के सामने से गुजरता जाएगा #इति_श्री_इतिहास
बात 17 Mar 1907 की है।शहीद भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह लाहौर के एक मंच पर चढ़े...1/12
और बोलना शुरू किया 'भाइयों !हमें फिरंगियों को आज ही इस प्लेटफॉर्म से चुनौती देना है।इसके लिए माझा और मालवा के ताकतवर सरदारों की मंजूरी हमारे पास है।हमारी मांग है कि किसानों के खिलाफ आए काले कानून न्यू कॉलोनी एक्ट को सरकार रद्द कर दे।दो माह में ऐसा ना हुआ तो कोई टैक्स नहीं देंगे'
तब किसान आंदोलन के चेहरा बने सरदार अजीत सिंह उस कानून का विरोध कर रहे थे जो किसानों की जमीन उनसे छीन रहा था। दरअसल 1906 में न्यू कॉलोनी एक्ट में किसानों का आस्तित्व मिटा देने का उपाय था। कानून कहता था कि किसान की जमीन का वारिस सिर्फ उसका बड़ा बेटा हो सकता है। छोटा बेटा नहीं..
कानून में प्रावधान था कि किसान का बड़ा बेटा मर जाए तो किसान की सारी जमीन अंग्रेज सरकार की हो जाएगी, परिवार को कुछ नहीं मिलेगा। इसी कानून के खिलाफ जब सरदार अजीत सिंह लाहौर में गरजे तो अंग्रेजी हुकूमत हिल गई उसने कानून में कुछ संशोधन कर, किसानों से आंदोलन शांत करने को कहा...
इस पर लाला लाजपत राय जी ने 22 मार्च 1907 को अजीत सिंह से पूछा, 'अब आगे क्या करना है, कॉलोनी एक्ट में जो संशोधन हुआ है उस पर अंग्रेजों को धन्यवाद और बाकी कानून रद्द करने की मांग की जाए ?' अजीत सिंह ने जवाब दिया 'धन्यवाद देने का तो सवाल ही नहीं, पूरा कानून रद्द कराकर दम लेंगे'...
इसके बाद 22 मार्च को लायलपुर में लालजी ने विशाल जुलूस निकाला। फिर अजीत सिंह ने जबरदस्त भाषण दिया। उस वक्त ढाई हाथ का एक डंडा किसानों के हाथों में था,सरदार अजीत सिंह ने भाषण में कहा- इसी डंडे से मार-मार के अंग्रेजों को भगाएंगे'
भाषण बहुत उग्र था, जुलूस तब और ज्वलंत बन गया..
जब वहीं पर कवि बांके दयाल ने प्रसिद्ध कविता 'पगड़ी संभाल जट्टा' पढ़ दी। कविता कुछ यूं है
'पगड़ी संभाल जट्टा, पगड़ी संभाल ओये
लुट लिया भारत मेरा हाल बेहाल ओये
तारियां दी लौ उठदा एं तूं..
मिट्टी विच, मिट्टी वी होंवदा एं तूं
फिर भी न पुछता कोई तेरा हाल ओए
पगड़ी संभाल जट्टा...'
कविता किसानों के दिल में घर कर गई,आंदोलन का नाम ही 'पगड़ी संभाल जट्टा' पड़ गया। अजीत सिंह का भाषण ब्रिटिश संसद तक पहुंच गया, खूब अंतर्राष्ट्रीय ख्याति मिली
मगर यहीं से शुरू हुआ अंग्रेजों का दमनचक्र। लायलपुर के डी.सी ने सभा का निष्कर्ष सरकार विरोधी षणयंत्र से रूप में निकाला..
सरदार अजीत सिंह और लाला जी को नजरबंद कर दिया गया। किसानों और उनके समर्थकों पर देशद्रोह की धारा 124 लगाकर गिरफ्तारी होने लगी।
5 मई 1907 को आंदोलन पर रिपोर्ट पेश हुई। जिसमें कहा गया- 'अजीत सिंह 2 महीने से किसान मीटिंग कर राजद्रोह फैला रहे हैं' मतलब देशद्रोही घोषित कर दिया गया...
रिपोर्ट के आधार पर 7 मई 1907 को अजीत सिंह और लाला जी को गिरफ्तार कर मांडले भेज दिया गया। मगर किसान कहां मानने वाले थे, प्रचंड गर्मी में भी आंदोलन जारी रहा और अब महिलाएं भी शामिल हो गईं।शहीद-ए-आजम भगत सिंह की दादी तो अंग्रेजों की लाठियों से टूटी हड्डियां भी जोड़ना सीख गईं थी...
पूरे 9 महीने चला वो आंदोलन। सर्वसत्तावान हुकूमत ने घुटने टेकने पड़े,नंवबर 1907 में कानून को रद्द हुआ।
नोट- तब आंदोलन की अगुवाई पंजाब के सरदार कर रहे थे,अब उनकी पुश्तें आंदोलन कर रही हैं। मगर एक फर्क है।तब सिर्फ अंग्रेज खिलाफ थे,खालिस्तानी कहने वाले देसी बददिमाग नहीं होते थे
सोर्स- 'भगत सिंह: एक ज्वलंत इतिहास'
हंसराज रहबर की ये किताब पढ़ेंगे तो पन्ना नंबर 30 से ही आपको इसकी गवाही मिलने लगेगी।
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विनायक दामोदर सावरकर का किरदार जितना विवादित रहा है,उतना ही रहस्यमयी भी #इति_श्री_इतिहास
अंग्रेजों से माफी मांगी
गोडसे के साथी रहे
दोनों के परिवार में रिश्तेदारी रही
महात्मा गांधी के हत्या के आरोपी
क्या सावरकर सिर्फ इतने थे या इससे भी ज्यादा?
पहली कहानी कहां से शुरू ?1/6
दिसंबर का सर्द महीना था। तारीख थी 19। साल 1919। नासिक के कलेक्टर जैक्सन के शरीर में 4 गोलियां उतार दी गई, प्राण निकलने में पल भर ना लगा। गोली मारने वाले 18 साल के युवा क्रांतिकारी अनंत लक्ष्मण कान्हरे थे। 1910 में कान्हरे को फांसी हुई। सावरकर भी इसी मामले में लंदन से गिरफ्तार..
क्योंकि आरोप था कि जिस पिस्तौल से गोली चली,वो सावरकर ने लंदन से भेजी थी। सावरकर को गिरफ्तार कर लंदन से भारत लाया जा रहा था, एक बंदरगाह के नजदीक उन्होंने दुबले शरीर का फायदा उठाया और शौचालय के पॉटहोल से समंदर में कूद गए। 15 मिनट तैरकर वो किनारे पर पहुंच गए।मगर किनारे पर ही फिर..
महिला दिवस के मौके पर #इति_श्री_इतिहास उस महिला की अदम्य कूटनीति पर।जिसने दिमाग की धार से दुनिया के मानचित्र को बदल कर रख दिया।कहानी बड़ी है मगर1971 के असल राष्ट्रवाद को बताते हुए रोंगटे खड़े कर देगी। एक पल भी बोझिल नहीं होने दूंगा।इंदिरा गांधी क्या हस्ती थीं,आज जान ही लीजिए1/22
अप्रैल 1971 में पाकिस्तानी सितम के मारे 5 लाख बांग्लादेशी शरणार्थी हिंदुस्तान में शरण ले चुके थे।युद्ध साफ नजर आ रहा था। मगर यहां सिर्फ भारतीय सेना को पाकिस्तान से नहीं लड़ना था बल्कि लड़ाई अमेरिका-चीन जैसी दो महाशक्तियों से भी होनी थी। दोनों खुलकर पाकिस्तान के साथ खड़े थे...
मगर इंदिरा जी भी अडिग थीं। इस बीच अप्रैल 1971 में चीनी प्रधानमंत्री ने पाकिस्तानी राष्ट्रपति याह्या खान को चिट्ठी लिखी और साफ शब्दों में कहा-"हिंदुस्तान अगर पाकिस्तान पर हमला करने का दुस्साहस करता है तो पाकिस्तान की संप्रभुता और स्वतंत्रता के लिए हर मुमकिन मदद चीन करेगा"
दर्दनाक है।शर्मनाक है।
यूपी के प्रयागराज में 3 साल की खुशी को पेट दर्द के बाद यूनाइटेड मेडीसिटी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया।डॉक्टरों ने ऑपरेशन किया,परिवार ने खेत बेचकर 2लाख दिए।5 लाख की डिमांड हुई।परिवार ना दे सका।निर्दयी अस्पताल ने बिना टांका लगाए फटे पेट के साथ उसे निकाल दिया
मेरा पास पूरा वीडियो,इतना दर्दनाक है कि साझा नहीं कर सकता। बेचारी तड़प रही है, कलथ रही है। पूरे शरीर पर मौत की मक्खियां भिनभिना रही हैं। उसका चीरा हुआ पेट देख दिमाग हिल गया। तस्वीरें देखते ही परिवार को मैंने फोन किया तो पता लगा थोड़ी देर पहले उसकी मौत हो गई।
अब परिवार के पास ठीक से क्रिया-कर्म करने तक के पैसे नहीं हैं।कहने को तो आयुष्मान योजना से लेकर तमाम योजनाएं हैं,मगर वक्त पर इस गरीब के लिए कोई योजना काम ना आई।
जिसको भी लगता है कि ये छोटी-मोटी घटना है, तो बताइएगा तड़पती बच्ची का वीडियो भेज दूंगा, कलेजा ना कांप उठे तो कहिएगा
पं.नेहरू पर सबसे बड़ा आरोप लगाया जाता है कि उन्होंने UN की स्थाई सीट खुद ना लेकर चीन को दे दी।इस पर ऐतिहासिक तथ्य क्या करते हैं,ध्यान से पढ़िएगा।झूठ के गुबार से निकलना आसान होगा #इति_श्री_इतिहास
बात 1949 की है।चीन में कम्यूनिस्टों की जीत हुई, माओ के हाथ चीन की सत्ता आई... 1/6
सोवियत तानाशाह स्टालिन के दिए हथियारों के दम पर माओ ने नेशनलिस्ट चांग काई शेक को हरा दिया।उन्हें भाग कर ताइवान जाना पड़ा।चांग काई शेक ने ताइवान को रिपब्लिक ऑफ चाइना नाम दिया और माओ ने मेनलैंड चाइना का नाम पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना रखा।मतलब 2-2 चीन हो गए।अब सबसे गौर करने वाली बात
चीन 1945 से ही सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य था।मगर जब दो चीन हो गए तो पं.नेहरू ने स्थाई सदस्यों से कम्यूनिस्टों के चीन को मान्यता देने की बात कही,क्योंकि छोटे से द्वीप ताइवान का स्थाई सदस्य होना ठीक नहीं लगा। इस पर अमेरिका ने पं.नेहरू से कहा चीन की जगह आप स्थाई सदस्यता ले लीजिए
#इति_श्री_इतिहास
1952 में प्रचंड बहुमत मत से जीतकर नेहरू अब देश के निर्वाचित प्रधानमंत्री थे। और नेहरू अपने उस फैसले पर ताउम्र कायम रहे जो उन्होंने खुद से वादा किया था। नेहरू ने क्या कहा था, उसे शब्दशः बड़े ध्यान से पढ़िएगा।
' नेहरू तुम्हें जूलियस सीजर नहीं बनना है...1/4
सीजर होने का मतलब है कि गणतांत्रिक तरीके से चुनकर सत्ता में आना और फिर तानाशाह की तरह काम करना। वैसे भी इतिहास बताता है कि लोकतंत्र में तानाशाह नंगी तलवार लिए घोड़े पर चढ़कर नहीं आते, जनता अपने कांधों पर उसकी पालकी उठाती है और तख्त पर बैठाती है।' नेहरू आगे कहते हैं..2/4
जब वो चुना हुआ नेता तानाशाह बनने की प्रक्रिया में होता है तो सबसे पहले संकीर्ण राष्ट्रवाद की बात करता है। जनता इस पर ताली बजाती है। फिर धीरे-धीरे वो संस्थाओं को खत्म करता है और उसकी भक्त जनता कहती है कि संस्थान राष्ट्र की प्रगति में बाधक थे। और अंत में ...