विनायक दामोदर सावरकर का किरदार जितना विवादित रहा है,उतना ही रहस्यमयी भी
#इति_श्री_इतिहास
अंग्रेजों से माफी मांगी
गोडसे के साथी रहे
दोनों के परिवार में रिश्तेदारी रही
महात्मा गांधी के हत्या के आरोपी
क्या सावरकर सिर्फ इतने थे या इससे भी ज्यादा?
पहली कहानी कहां से शुरू ?1/6
दिसंबर का सर्द महीना था। तारीख थी 19। साल 1919। नासिक के कलेक्टर जैक्सन के शरीर में 4 गोलियां उतार दी गई, प्राण निकलने में पल भर ना लगा। गोली मारने वाले 18 साल के युवा क्रांतिकारी अनंत लक्ष्मण कान्हरे थे। 1910 में कान्हरे को फांसी हुई। सावरकर भी इसी मामले में लंदन से गिरफ्तार..
क्योंकि आरोप था कि जिस पिस्तौल से गोली चली,वो सावरकर ने लंदन से भेजी थी। सावरकर को गिरफ्तार कर लंदन से भारत लाया जा रहा था, एक बंदरगाह के नजदीक उन्होंने दुबले शरीर का फायदा उठाया और शौचालय के पॉटहोल से समंदर में कूद गए। 15 मिनट तैरकर वो किनारे पर पहुंच गए।मगर किनारे पर ही फिर..
पकड़ लिए गए।25-25 साल की दो अलग सजाएं हुईं। सजा के लिए काला पानी भेजा गया। 4 जुलाई 1911 को सेल्युलर जेल ले जाया गया। कोठरी नंबर 52 में सावरकर को रखा गया।सेल्युलर जेल की यातनाएं किसी भी जेल से ज्यादा थी। अंग्रेजी अफसर ठीक बग्घी खिंचवाते, ना ठीक से खाने को मिलता ना,ना पीने को,
शौचालय ठीक ना होने की वजह से कई बार तो कोठरी के कोने में ही मल त्यागना पड़ता। ऊपर से हर महीने 3-4 कैदियों को फांसी दी जा रही थी, ये सब देख सावरकर का आत्मबल बुरी तरह से टूट गया। और 29 अगस्त को मात्र दो महीने बाद ही अंग्रेजों को पहला माफीनामा लिख दिया...
सावरकर करीब 10 साल सेल्युलर जेल में रहे और यहां से सावरकर का किरदार पूरी तरह बदल गया।गांधी,नेहरू,नेताजी,भगत सिंह जैसे लाखों क्रांतिकारी जहां अंग्रेजों की आखों में आंखें डालकर खड़े रहे। माफी का विकल्प होने के बाद भी शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने कभी माफी नहीं मांगी।
तो वहीं सावरकर ने अंग्रेजों के आगे पूरी तरह घुटने टेक दिए।जेल में रहकर कुल 6 माफीनामे लिख डाले।माफीनामे में यहां तक लिखा कि वो अंग्रेजी हुकूमत के लिए किसी भी परिस्थिति में काम करने को तैयार हैं।माफीनामा काम आया है,1921 में अंडमान से महाराष्ट्र के रत्नागिरी शिफ्ट कर दिया गया।
कुछ लोग माफीनामे को उनकी रणनीति बताते थे। मगर वो कौन सी रणनीति थी, जिसके तहत अंग्रेजों ने उन्हें रहने के लिए बंगला दिया, 60 रुपये पेंशन भी देते थे।
मेरे परदादा स्व.कमला प्रसाद पाण्डेय भी फ्रीडम फाइटर थे,उन्हें भी पेंशन मिली, मगर आजादी के बाद।अंग्रेजों ने तो सिर्फ यातनाएं दी थी।
करेक्शन- 1919 नहीं साल 1909
दूसरे ट्वीट में 1919 को साल 1909 पढ़ें, टाइपिंग मिस्टेक समझ कर माफ करें 🙏🙏
एक बात और दिलचस्प है। सेल्युलर जेल में इतनी यातनाएं दी जाती थीं आदमी का शरीर अधमरा हो जाता। मगर सावरकर 11 जुलाई 1911 को जब जेल गए तो उनका वजन 112 पाउंड था और तीन साल बाद जब चौथा माफीनामा लिखा तब उनका वजन 126 पाउंड था। मतलब 14 पाउंड जवन बढ़ गया था।
कई लोग सोर्स पूछ रहे हैं। उन्हें नीलांजन मुखोपाध्याय The RSS: Icons of the Indian Right किताब और सावरकर पर शोध करने वाले वरिष्ठ पत्रकार निरंजन तकले से बातचीत के आधार पर लिखे वरिष्ठ पत्रकार रेहान फ़ज़ल का लेख पढ़ना चाहिए।
सर्च करिए, मिल जाएगा।

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10 Mar
कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है।
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#इति_श्री_इतिहास
बात 17 Mar 1907 की है।शहीद भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह लाहौर के एक मंच पर चढ़े...1/12
और बोलना शुरू किया 'भाइयों !हमें फिरंगियों को आज ही इस प्लेटफॉर्म से चुनौती देना है।इसके लिए माझा और मालवा के ताकतवर सरदारों की मंजूरी हमारे पास है।हमारी मांग है कि किसानों के खिलाफ आए काले कानून न्यू कॉलोनी एक्ट को सरकार रद्द कर दे।दो माह में ऐसा ना हुआ तो कोई टैक्स नहीं देंगे'
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मगर इंदिरा जी भी अडिग थीं। इस बीच अप्रैल 1971 में चीनी प्रधानमंत्री ने पाकिस्तानी राष्ट्रपति याह्या खान को चिट्ठी लिखी और साफ शब्दों में कहा-"हिंदुस्तान अगर पाकिस्तान पर हमला करने का दुस्साहस करता है तो पाकिस्तान की संप्रभुता और स्वतंत्रता के लिए हर मुमकिन मदद चीन करेगा"
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मेरा पास पूरा वीडियो,इतना दर्दनाक है कि साझा नहीं कर सकता। बेचारी तड़प रही है, कलथ रही है। पूरे शरीर पर मौत की मक्खियां भिनभिना रही हैं। उसका चीरा हुआ पेट देख दिमाग हिल गया। तस्वीरें देखते ही परिवार को मैंने फोन किया तो पता लगा थोड़ी देर पहले उसकी मौत हो गई।
अब परिवार के पास ठीक से क्रिया-कर्म करने तक के पैसे नहीं हैं।कहने को तो आयुष्मान योजना से लेकर तमाम योजनाएं हैं,मगर वक्त पर इस गरीब के लिए कोई योजना काम ना आई।
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#इति_श्री_इतिहास
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