आइए एक किस्सा सुनाता हूं, WhatsApp University की दुनिया समझने में आसानी होगी..
एक आदमी ने 1995 में अमेरिका में दो बैंक लूटे।दोनों जगह वह बिना चेहरा ढके गया और बैंक से पैसा लूटने के बाद मुस्कराता हुआ सिक्योरिटी कैमरा के सामने जाकर खड़ा हो गया। कैमरे के सामने बड़े आराम से काफी..
देर उसको मुंह चिंढ़ाता रहा, फिर वह भाग गया। पर रात होते तक पुलिस ने उसकी पहचान कर के उसको गिरफ्तार कर लिया।
लुटेरा अपनी गिरफ्तारी पर स्तब्ध था। उसको समझ नहीं आ रहा था कि उसकी पहचान कैसे हुई। पुलिस वालों ने उसको बताया कि भइया, हमें पहचान करने में कोई दिक्कत नहीं आई थी...
क्योंकि तुम नकाब नहीं पहने थे और उसके ऊपर तुम खुद ही सिक्योरिटी कैमरा के सामने आकर अपना वीडियो बना गए थे।
अब यहां से कहानी में खेल है
लुटरे को उनकी बात पर यकीन नहीं हो रहा था। वह हैरान था कि कैमरे ने उसकी तस्वीर ले कैसे ली, जबकि वह अपने चेहरे पर नीबू का रस लगा कर गया था।
उसको विश्वास था कि नीबू का रस आदमी को अदृश्य कर देता है और पुलिस वाले जो कैमरे पर लिया जो वीडियो दिखा रहे हैं,वह फर्जी है।
उसकी दलील थी कि नीबू का रस अदृश्य स्याही बनाने के लिए उपयोग किया जाता है, चूंकि उसके उपयोग से लिखा हुआ गायब हो जाता है, तो उसका चेहरा भी गायब हो गया होगा...
इसलिए उसके मुताबिक उसके सामने जो वीडियो साक्ष्य प्रस्तुत किए जा रहे थे, वे सब नकली थे। पुलिस ने उसे बहुत समझाया, पर वह नहीं माना और अंत तक अपनी बात पर अड़ा रहा कि वास्तव में नीबू की वजह से वह अदृश्य था और पुलिस बकवास कर रही थी। वैसे यह बैंक चोर न तो पागल था और न ही उसने मादक...
पदार्थों का सेवन किया हुआ था।बस,उसे अपने ज्ञान पर इतना आत्मविश्वास था कि उसके आगे उसे सारे साक्ष्य बेतुके और झूठे लग रहे थे।
घटना से प्रेरित होकर कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के दो विद्वान-डेविड डनिंग,जस्टिन क्रुगर ने एक शोध शुरू किया,जिसकी परिणति डनिंग-क्रुगर सिद्धांत के रूप में हुई।..
व्यंग्य शिरोमणि हरिशंकर परसाई ने उनके निष्कर्ष को पहले ही शब्द दे दिए थे। परसाई ने कहा था, आत्मविश्वास कई तरीके का होता है- धन का, सत्ता का या फिर ज्ञान का। पर सबसे प्रचंड आत्मविश्वास मूर्ख का होता है। बैंक चोर ने परसाई की हंसाई को गंभीर रूप दे दिया था।
बैंक चोर की मूर्खता से..
प्रभावित होकर डनिंग और क्रुगर ने जो अध्ययन किया,उसमें पाया कि अमूमन जिन लोगों के पास कम जानकारी होती है और जिनमें जानकारी जमा करने की क्षमता भी कम होती है,वे अपने सीमित ज्ञान को लेकर बेहद आक्रामक होते हैं।क्षमता के अभाव में उनके पास साक्ष्य को अस्वीकार कर देने की प्रतिभा होती है
और वे बहस किए जाते हैं कि जो वे कह रहे हैं वही सही है और स्वयं में साक्ष्य भी है। बैंक चोर की तरह वे भी नीबू का रस लगा कर गायब हो जाने वाली बात कर पूरे आत्मविश्वास से अड़े रहते हैं। आखिरकार, वे तर्क करते हैं कि जब नीबू से लिखावट गायब हो सकती है, तो आदमी क्यों नहीं ?...
इसे पढ़कर हंसी आए चाहे ना आए, कईयों का चेहरा जरूर सामने आ गया होगा।
क्योंकि हमारे आस-पास भी कई लोग नींबू का रस लगाए टहल रहे हैं और उन्हें लगता है हम पहचान नहीं पाएंगे।
ये सब बताते हुए @nripendra1784 भइया कहते हैं मूर्खों से भिड़ना भी मूर्खता है।बीमारी से लड़ो,बीमार से नहीं।
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जिज्ञासा हमेशा पढ़ने के लिए प्रेरित करती है।
एक किताब मिल गई जिसमें 1971 में पीएम मोदी के जेल जाने का जिक्र है। मगर यहां जिक्र थोड़ा अलहदा है।
ऐंडी मरीनो लिखते हैं कि 1971 में RSS के लोग सेना में शामिल होने का अधिकार मांग रहे जबकि तब RSS पर बैन था...
लेकिन युद्ध के मोर्चे पर भेजने के बजाय सरकार ने हमें गिरफ्तार कर लिया। ऐसा ऐंडी मरीनो से पीएम मोदी कहते हैं।
अबतक जनसंघ के प्रदर्शन की बात आई थी, मगर ये नई और रोचक बात है।
मरीनो लिखते हैं कि उनकी कैद चंद दिनों की थी और नरेंद्र को जल्द ही रिहा कर दिया गया। जिससे यह संकेत साफ..
मिलता है कि यह घटना सिर्फ इसलिए हुई क्योंकि अधिकारी सड़कों को साफ करना चाहते थे। संघ आगे भी युद्ध शामिल होने की बात करता रहा है। मगर बिना प्रशिक्षण युद्ध में नहीं भेजा जाता।
कई और किताब के पन्ने ट्वीट कर रहे हैं जिसमें बांग्लादेश को मान्यता देने पर जनसंघ के प्रदर्शन में...
मैं ये नहीं कहता कि पीएम संघर्ष में जेल नहीं गए होंगे। मगर ये 1000% दावे के साथ कह सकता हूं कि आपने गुजराती में लिखी 'संघर्षमां गुजरात' नहीं पढ़ी होगी।
मगर मैंने 227 पन्नों का हिंदी अनुवाद दो बार पढ़ी।पूरी किताब 1975 की इमरजेंसी पर है,इसमें कहीं भी 1971 का जिक्र नहीं है
मैं ये दावे के साथ कह सकता हूं BJP के तमाम नेता और तमाम प्रबुद्ध लोग इस किताब को खोल के देखे तक नहीं होंगे। देखे होते तो ये इस किताब को 'टूल किट' की तरह ना इस्तेमाल करते। दुर्भाग्य से आप भी इस 'टूल किट' का शिकार हो।पढ़ता-लिखता रहता हूं, लजाने की जरूरत मुझे नहीं पड़ेगी। 🙏🙏
मेरी रीच कम है, फॉलोअर्स कम हैं,इसलिए कम लोग पढ़ेंगे।आपको ज्यादा पढ़ते हैं,आप जो कहेंगी WhatsApp University और Twitter University में सच माना जाएगा।फिर भी सच यही है कि पीएम मोदी ने 1971 का जिक्र कहीं भी नहीं किया है।
माफ करिएगा जवाब देने में देर हुई क्योंकि किताब ही पढ़ रहा था
शहीद-ए-आजम भगतसिंह की फांसी के लिए गांधी जी को ना जाने क्या कुछ कहा जाता है, आजकल तो सावरकर से भी संबंध जोड़े जाने लगे हैं तो ऐसे #इति_श्री_इतिहास क्या कहता है?
बात 28 अक्टूबर 1928 की,साइमन कमीशन का लाहौर में तगड़ा विरोध हुआ,बौखलाए अंग्रेजों ने क्रूरता की लाठियां चलवा दी 1/40
उप निरीक्षक सांडर्स ने लाला लाजपत राय जी पर सीधी लाठी चलाई, एक सीने पर, दूसरी कंधे और तीसरी सिर पर लगी। बुजुर्ग लाला जी लाठियों की मार से पूरे 18 दिन लड़े
और 17 नवंबर को देह त्याग दिया। लाला जी की नीतियों से भगतसिंह भले ही खिलाफ हो गए थे, मगर लाला जी पर पड़ी लाठियों ने...
उन्हें हिलाकर रख दिया। 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में अंग्रेज सुप्रीटेंडट स्कॉट को मारने का प्लान बना।स्कॉट को पहचानने की जिम्मेदारी जयगोपाल की थी, जिसने आगे चलकर
भगतसिंह से गद्दारी की, जयचंद बना और सरकारी गवाह बन गया। खैर! स्कॉट की जगह सामने 21 साल का सांडर्स आ गया...
#इति_श्री_इतिहास
अंग्रेजी यातना सहकर एक चाचा स्वर्णसिंह की मौत हो चुकी थी, दूसरे चाचा अजीत सिंह अंग्रेजों से बचने के लिए विदेश में फरारी
काट रहे थे।घर में एक चाची विधवा थीं,दूसरी ना विधवा,ना सधवा। वो गोद में लेकर 3 साल के भगत सिंह को प्यार करती और नजरें मिलते ही रो पड़तीं 1/13
कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं, तो भगत के भी दिखने लगे थे। दुधमुहे दातों वाले 3 साल के भगत सिंह बड़ी चाची के गले में बाहें डालकर कहते
'रोओ मत , मैं अंग्रेजों को मार भगाऊंगा और चाचा जल्द लौट आएंगे। दूसरी चाची से कहते- मैं अंग्रेजों से बदला लूंगा।...
एक दिन बाग की जमीन तैयार कर आम के पौधे रोपे जा रहे थे, पिता सरदार किशन सिंह अपने मित्र मेहता नंदकिशोर को बाग दिखाने आए तो भगतसिंह को भी साथ
लाए। बेटा पिता की उंगली छोड़ खेत में जा बैठा और पौधों की तरह तिनके रोपने लगा। पिता ने पूछा- क्या कर रहे हो ?
जवाब आया- बंदूकें बो रहा हूं..
आरोप लगता है कि नेहरू की वजह से कश्मीर समस्या है,पटेल की जगह नेहरू ने इसे अकेले हैंडल किया इसलिए सब गुड़गोबर हो गया, UN जाकर सत्यानाश किया।सच क्या है? #इति_श्री_इतिहास में लाल चौक पर झंडा फहराकर भीड़ के बीच खड़े पं.नेहरू की तस्वीर देखते हुए आज थोड़ा धैर्य पढ़िएगा
अब तथ्य 1/30
सितंबर का महीना,1949। कश्मीर घाटी में एक बेहद खास सैलानी पहुंचते हैं, नाम था पंडित जवाहर लाल नेहरू। झेलम नदी इस बात की गवाह है कि पं.नेहरू और शेख अब्दुला उसकी गोद
में थे। दोनों ने करीब 2 घंटे तक खुले आसमान के नीचे नौकाविहार किया।आगे-पीछे खचाखच भरे शिकारों की कतार थी...
हर कोई प.नेहरू को एक नजर निहार लेना चाहता था। नेहरू पर फूलों की वर्षा हो रही थी, नदी के किनारे आतिशबाजी हो रही थी, स्कूली बच्चे नेहरू-अब्दुला जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। इस पर टाइम मैग्जीन ने लिखा- ''सारे लक्षण ऐसे हैं कि हिंदुस्तान ने कश्मीर की जंग फतह कर ली है'' मगर ये...
WhatsApp University (WU) के झूठ का साम्राज्य कितना बड़ा है, उसे मात्र एक मेरे व्यक्तिगत वाकये से समझ लीजिए। आश्चर्य से मुंह खुला रह जाएगा
2019 के अगस्त महीने की बात है। मेरे परदादा की हार्ट सर्जरी AIIMS में हुई। इत्तेफाक देखिए डॉक्टरों की जो टीम अरुण जेटली जी का इलाज.. 1/9
कर रही थी,उन्हीं में एक बड़े हार्ट सर्जन मेरे परदादा का इलाज कर रहे थे।जेटली जी ग्राउंड फ्लोर पर थे,परदादा 4thफ्लोर पर।
नौकरी का सवाल है इसलिए डॉक्टर साहब नाम नहीं लिखूंगा, बस वाकया सुनते चलिए। सर्जरी के बाद एक दिन डॉक्टर साहब रुटीन चेकअप के लिए दादा के पास आए तो मैं वहीं था...
मेरे परदादा पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर रहे हैं तो बातों-बातों में डॉ.साहब इतिहास-भूगोल की बातें होने लगी। इत्ते में डॉक्टर साहब मेरी तरफ उंगली कर एक ऐसी लाइन बोल गए, जिसे मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकता, कहते हैं
"Do You Know ? Nehru, Jinna And Sheikh Abdullah Was Cousin Brother"