#1232KMs
ऐसा नहीं है कि हम इन्हें जानते नहीं,पहचानते नहीं, यहीं हमारे आस-पास ही तो रहते हैं, कहीं मजदूरी करते हैं, कहीं रिक्शा चलाते हैं, मां रोटी लाती है पत्थर तोड़कर, बच्चे खाते और सो जाते हैं जमीन बिछा,आसमान ओढ़कर।... 1/7
बड़े-बड़े शहरों में जिन ऊंची-ऊंची इमारतों को इन्होंने अपने पसीने के घोल से बनाया, उन्हीं इमारतों के किसी लिजलिजे तहखानों पड़े रहते हैं, बिल्कुल चुपचाप दीन-हीन-मलीन, कभी दिखते हैं, कभी हम देखना नहीं चाहते। मुफलिसी के हाथों हमेशा से मजबूर थे और जब
अचानक से लॉकडाउन लगा तो इनकी दो वक्त की रोटी पर भी कर्फ्यू लग गया।सरकार ने दर्जनों ऐलान किए लेकिन ये कहते राशनकार्ड तो गांव में है, खाता तो गांव में है। तो ऐसे डर बैठ गया कि शहरों कैसे रहेंगे, क्या खाएंगे और तब हमारे चमकते-दमकते शहरों में इन्हें भविष्य का अंधेरा ही अंधेरा
दिखने लगा। ये जानते हुए कि गांवों में ज्यादा कुछ है नहीं उनके पास लेकिन इन्हें वहां अपनी छोटी सी झोपड़ी के आगोश में ही जिंदगी का आफताब नजर आने लगा है।
यहीं मानिए बुलंद भारत की सबसे बदनसीब तस्वीर थी वो,इंडिया-भारत के विभाजन की डरावनी ताबीर थी वो।उन तस्वीरों ने हिन्दुस्तान के...
नेताओं के ऐनक से देखे और दिखाए गए विकास की बात और समृद्धि की आस को सरेराह नंगा खड़ा कर दिया था। सच बताऊं तो शासन-प्रशासन की कल्पना से परे कहीं ज्यादा गरीबी गड़ी है हमारे हिंदुस्तान की माटी में, जिसका कोई भी मोल नहीं। यूं तो पेट की पीड़ा मिटाने
ही शहरों में आए हैं लेकिन उस वक्त दो दिन में ही भूख ने इनकी अंतड़ियों तक मरोड़ कर रख दिया,अंदर ही अंदर झकझोर कर रख दिया। और तब सबने एक सुर में कहा- 'मरेंगे तो वहीं जाकर' कम से कम गांव की माटी और चार कंधे तो नसीब होंगे।
एक साल पहले जो पीड़ा हमने सड़कों पर देखी थी..
उसी पीड़ा को @vinodkapri सर ने मात्र 2 घंटे में #1232KMs के माध्यम से फिर आंखों के सामने जीवंत कर दिया। Hotstar पर मूवी है, एक बार देखना ही आपकी मानसिक और सामाजिक चेतना को हिला जाएगा। जरूर देखनी चाहिए।
तस्वीर क्रेडिट- रवि चौधरी, PTI
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आरोप लगाया जाता है कि पं. नेहरू ने जम्मू कश्मीर को जानबूझ कर अतिरिक्त छूट दी(370),जबकि सरदार पटेल इसके खिलाफ थे। तो आइए सच्चाई जान लेते हैं #इति_श्री_इतिहास
पहली बात तो लोगों को ये समझना चाहिए कि जब आज के गृहमंत्री 370 को निष्प्रभावी करने का प्रस्ताव संसद में पेश करते हैं 1/19
तो तब के गृहमंत्री पटेल 370 लागू करने से भला कैसे दूर रहें होंगे। कॉमन सेंस की बात है। अब इतिहास में आते हैं
बात तब कि है जब जम्मू कश्मीर का विलय भारत में हो चुका था, शेख अब्दुल्ला वहां के प्रीमीयर बन चुके थे, उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और जो कहा...
वो बहुत महत्वपूर्ण था ''हमने भारत के साथ काम करने और जीने-मरने का निश्चय किया है लेकिन भारत के साथ काम करने और जीने-मरने के इरादे के साथ-साथ कश्मीरियों की अपनी स्वायत्तता और अपनी आकांक्षाओं के अनुरूप शासन का स्वप्न भी उनके लिए उतना ही महत्वपूर्ण है'
और यही वो बिंदु था जहां से..
कॉमरेड ओगिलवी ने 3 साल की उम्र में तीन को छोड़कर सारे खिलौने तोड़ डाले।जो खिलौने उन्होंने रखे वो थे..ढोल,छोटी मशीनग और हेलिकॉप्टर।
6 वर्ष की आयु में वो बाल जासूसों के सरदार बन गए।9 की उम्र में अपने राष्ट्रदोही चाचा को उन्होंने पुलिस के हवाले कर दिया 1/7
17 साल की उम्र में कॉमरेड ओगिलवी सेक्स विरोधी लीग के जिला संयोजक बन गए। 19 की उम्र में उन्होंने ऐसा हथगोला बनाया जिसे शांति मंत्रालय (जो कि अशांति फैलाता था) ने देशहित में उपयोग के लिए स्वीकार कर लिया। जब उन हथगोलों का पहली बार प्रयोग किया तो उससे 31 यूरेशियन सैनिक मारे गए...
23साल की उम्र में वो जब हिंद महासागर के ऊपर हवाई जहाज से यात्रा कर रहे थे तब शत्रु के जेट विमानों ने उनका पीछा किया,उनके पास महत्वपूर्ण कागज थे,चुंकि कॉमरेड बचपन से बहादुर थे तो अपनी मशीन गन के साथ कागज जेब में रखकर समुद्र में कूद गए।23 साल की उम्र में वीरगति को प्राप्त हो गए..
जिज्ञासा हमेशा पढ़ने के लिए प्रेरित करती है।
एक किताब मिल गई जिसमें 1971 में पीएम मोदी के जेल जाने का जिक्र है। मगर यहां जिक्र थोड़ा अलहदा है।
ऐंडी मरीनो लिखते हैं कि 1971 में RSS के लोग सेना में शामिल होने का अधिकार मांग रहे जबकि तब RSS पर बैन था...
लेकिन युद्ध के मोर्चे पर भेजने के बजाय सरकार ने हमें गिरफ्तार कर लिया। ऐसा ऐंडी मरीनो से पीएम मोदी कहते हैं।
अबतक जनसंघ के प्रदर्शन की बात आई थी, मगर ये नई और रोचक बात है।
मरीनो लिखते हैं कि उनकी कैद चंद दिनों की थी और नरेंद्र को जल्द ही रिहा कर दिया गया। जिससे यह संकेत साफ..
मिलता है कि यह घटना सिर्फ इसलिए हुई क्योंकि अधिकारी सड़कों को साफ करना चाहते थे। संघ आगे भी युद्ध शामिल होने की बात करता रहा है। मगर बिना प्रशिक्षण युद्ध में नहीं भेजा जाता।
कई और किताब के पन्ने ट्वीट कर रहे हैं जिसमें बांग्लादेश को मान्यता देने पर जनसंघ के प्रदर्शन में...
मैं ये नहीं कहता कि पीएम संघर्ष में जेल नहीं गए होंगे। मगर ये 1000% दावे के साथ कह सकता हूं कि आपने गुजराती में लिखी 'संघर्षमां गुजरात' नहीं पढ़ी होगी।
मगर मैंने 227 पन्नों का हिंदी अनुवाद दो बार पढ़ी।पूरी किताब 1975 की इमरजेंसी पर है,इसमें कहीं भी 1971 का जिक्र नहीं है
मैं ये दावे के साथ कह सकता हूं BJP के तमाम नेता और तमाम प्रबुद्ध लोग इस किताब को खोल के देखे तक नहीं होंगे। देखे होते तो ये इस किताब को 'टूल किट' की तरह ना इस्तेमाल करते। दुर्भाग्य से आप भी इस 'टूल किट' का शिकार हो।पढ़ता-लिखता रहता हूं, लजाने की जरूरत मुझे नहीं पड़ेगी। 🙏🙏
मेरी रीच कम है, फॉलोअर्स कम हैं,इसलिए कम लोग पढ़ेंगे।आपको ज्यादा पढ़ते हैं,आप जो कहेंगी WhatsApp University और Twitter University में सच माना जाएगा।फिर भी सच यही है कि पीएम मोदी ने 1971 का जिक्र कहीं भी नहीं किया है।
माफ करिएगा जवाब देने में देर हुई क्योंकि किताब ही पढ़ रहा था
आइए एक किस्सा सुनाता हूं, WhatsApp University की दुनिया समझने में आसानी होगी..
एक आदमी ने 1995 में अमेरिका में दो बैंक लूटे।दोनों जगह वह बिना चेहरा ढके गया और बैंक से पैसा लूटने के बाद मुस्कराता हुआ सिक्योरिटी कैमरा के सामने जाकर खड़ा हो गया। कैमरे के सामने बड़े आराम से काफी..
देर उसको मुंह चिंढ़ाता रहा, फिर वह भाग गया। पर रात होते तक पुलिस ने उसकी पहचान कर के उसको गिरफ्तार कर लिया।
लुटेरा अपनी गिरफ्तारी पर स्तब्ध था। उसको समझ नहीं आ रहा था कि उसकी पहचान कैसे हुई। पुलिस वालों ने उसको बताया कि भइया, हमें पहचान करने में कोई दिक्कत नहीं आई थी...
क्योंकि तुम नकाब नहीं पहने थे और उसके ऊपर तुम खुद ही सिक्योरिटी कैमरा के सामने आकर अपना वीडियो बना गए थे।
अब यहां से कहानी में खेल है
लुटरे को उनकी बात पर यकीन नहीं हो रहा था। वह हैरान था कि कैमरे ने उसकी तस्वीर ले कैसे ली, जबकि वह अपने चेहरे पर नीबू का रस लगा कर गया था।
शहीद-ए-आजम भगतसिंह की फांसी के लिए गांधी जी को ना जाने क्या कुछ कहा जाता है, आजकल तो सावरकर से भी संबंध जोड़े जाने लगे हैं तो ऐसे #इति_श्री_इतिहास क्या कहता है?
बात 28 अक्टूबर 1928 की,साइमन कमीशन का लाहौर में तगड़ा विरोध हुआ,बौखलाए अंग्रेजों ने क्रूरता की लाठियां चलवा दी 1/40
उप निरीक्षक सांडर्स ने लाला लाजपत राय जी पर सीधी लाठी चलाई, एक सीने पर, दूसरी कंधे और तीसरी सिर पर लगी। बुजुर्ग लाला जी लाठियों की मार से पूरे 18 दिन लड़े
और 17 नवंबर को देह त्याग दिया। लाला जी की नीतियों से भगतसिंह भले ही खिलाफ हो गए थे, मगर लाला जी पर पड़ी लाठियों ने...
उन्हें हिलाकर रख दिया। 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में अंग्रेज सुप्रीटेंडट स्कॉट को मारने का प्लान बना।स्कॉट को पहचानने की जिम्मेदारी जयगोपाल की थी, जिसने आगे चलकर
भगतसिंह से गद्दारी की, जयचंद बना और सरकारी गवाह बन गया। खैर! स्कॉट की जगह सामने 21 साल का सांडर्स आ गया...