आरोप लगाया जाता है कि पं. नेहरू ने जम्मू कश्मीर को जानबूझ कर अतिरिक्त छूट दी(370),जबकि सरदार पटेल इसके खिलाफ थे। तो आइए सच्चाई जान लेते हैं
#इति_श्री_इतिहास
पहली बात तो लोगों को ये समझना चाहिए कि जब आज के गृहमंत्री 370 को निष्प्रभावी करने का प्रस्ताव संसद में पेश करते हैं 1/19
तो तब के गृहमंत्री पटेल 370 लागू करने से भला कैसे दूर रहें होंगे। कॉमन सेंस की बात है। अब इतिहास में आते हैं
बात तब कि है जब जम्मू कश्मीर का विलय भारत में हो चुका था, शेख अब्दुल्ला वहां के प्रीमीयर बन चुके थे, उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और जो कहा...
वो बहुत महत्वपूर्ण था ''हमने भारत के साथ काम करने और जीने-मरने का निश्चय किया है लेकिन भारत के साथ काम करने और जीने-मरने के इरादे के साथ-साथ कश्मीरियों की अपनी स्वायत्तता और अपनी आकांक्षाओं के अनुरूप शासन का स्वप्न भी उनके लिए उतना ही महत्वपूर्ण है'
और यही वो बिंदु था जहां से..
कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच अंतर्विरोधों की शुरुआत हुई। दूसरी बात ये कि जब 28 अक्टूबर 1947 को विलय हुआ तभी हरि सिंह स्पष्ट कहा था कि ''इस वियल पत्र में ऐसा कुछ भी नहीं है कि जिसे भारत के किसी भावी संविधान को स्वीकार के लिए मेरी वचनबद्धता माना जाए''

मतलब महाराजा...
हरि सिंह शुरू से ही जम्मू कश्मीर के लिए विशेष स्वायत्तता चाहते थे जो आगे चलकर शेख अब्दुल्ला की भी चाहत बनी। चुंकि मुस्लिम बाहुल्य होने के बावजूद भारत में शामिल हुआ था इसलिए वक्त की मांग थी कि उसके साथ नजाकत से पेश आया जाए, क्योंकि पाकिस्तान की गिद्ध दृष्टि हमेशा से बनी हुई थी..
इस बीच 18 मई 1949 को शेख अब्दुल्ला को पं. नेहरू पत्र लिखकर कहते हैं कि '' जम्मू कश्मीर विदेशी मामलों, सुरक्षा तथा संचार क्षेत्र में भारत के साथ जुड़ गया है। यह राज्य की संविधान सभा, जब बुलाई जाएगी तो वो तय करेगी कि और किन मामलों में राज्य भारत से जुड़ सकता है।''

इसके लिए...
भारत की संविधान सभा में जम्मू और कश्मीर राज्य के लिए 4 सीटें रखी गई। 16 जून 1949 को शेख अब्दुल्ला, मिर्जा मोहम्मद अफजल बेग,मौलाना मोहम्मद सईद मसूदी और मोती राम बागड़ा संविधान सभा में शामिल हुए। अगले 3 महीने तक अनुच्छेद 370 को लेकर गोपालस्वामी आयंगर, सरदार पटेल, शेख अब्दुल्ला..
और उनके साथियों के साथ तीखी बहस हुई।12oct 1949 को सरदार पटेल ने इसकी जरूरत को स्वीकार करते हुए संविधान सभा में कहा- '' उन विशेष समस्याओं को ध्यान में रखते हुए जिनका सामना J&K सरकार कर रही है,हमने केंद्र के साथ राज्य के संवैधानिक संबंधों को लेकर वर्तमान आधार पर विशिष्ठ व्यवस्था..
(अनुच्छेद 370) की है। मतलब ये कि जो अनुच्छेद 370 लंबे समय से अकेले नेहरू के माथे मढ़ी जाती है, असल में वो सरदार पटेल की उपलब्धि थी, उसे असल में सरदार पटेल ने बनाया था। जिसे पं.नेहरू का इसके लिए पूर्ण समर्थन था और एक सच्चाई ये भी जो बहुत कम लोग जानते हैं कि...
जब भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 जुड़वाया गया तब पं.नेहरू भारत में थे ही नहीं, वो अमेरिका के दौरे पर थे।सरदार पटेल का रोल और अहम तब हो जाता है जब कांग्रेस पार्टी ने संविधान सभा में 370 का पुरजोर विरोध किया, कांग्रेस पार्टी चाहती थी कि कश्मीर भी मूलभूत शर्तों के साथ भारत में..
शामिल हो, गोपालस्वामी आयंगर पार्टी को 370 का महत्व नहीं समझा सके, तब सरदार पटेल ने कमान संभाली और
पार्टी के नेताओं को समझाने का काम बड़ी ही सफलता के साथ किया।फिर 16 Oct 1949 को 370 के मसौदे पर सहमति बनी लेकिन बड़ी ही चालाकी से संचालक गोपालस्वामी आयंगर ने बिना शेख अब्दुल्ला...
को विश्वास में लिए इसकी उपधारा 1 के दूसरे बिंदु को परिवर्तित कर पास करा लिया। शेख अब्दुल्ला ने इसका विरोध किया और तब सरदार पटेल ने भी कहा
''शेख साहब की हाजिरी में सारी व्यवस्था को स्वीकार कर लिया है तो उसके बाद उसमें परिवर्तन करना मुझे बिलकुल पसंद नहीं है''

3 नवंबर को..
नेहरू जब लौटे तो पटेल ने उन्हें इसकी सूचना दी, मगर अंतत: आयंगर द्वारा संशोधित 306 Aही 370 के रूप में संविधान में शामिल हुई।इस पर 25 जुलाई 1952 को पं.नेहरू ने मुख्यमंत्रियों के लिखे पत्र में कहा- '' जब नवंबर 1949 में हम भारत के संविधान का अंतिम रूप दे रहे थे, तब...
सरदार पटेल ने इस मामले को देखा, तब उन्होंने जम्मू कश्मीर को हमारे संविधान में एक विशेष किंतु संक्रमणकालीन दर्जा दिया। इस दर्जे को संविधान में आर्टिकल 370 के रूप में दर्ज किया गया''

370 के अस्थाई दर्जे का मतलब ये था कि इसका भविष्य कश्मीर की जनता तय करेगी। अगर कश्मीर में...
जनमत संग्रह हुआ होता और वहां की जनता स्पष्ट मत से भारत के साथ आ जाती तो 370 का स्वरूप वहीं बदल जाता या उसकी आवश्यकता ही खत्म हो जाती। मगर ऐसा नहीं हुआ।

तो अंत में ये जान लेना चाहिए कि पटेल के करीब वी.शंकर भी अनुच्छेद 370 को सरदार पटेल की सिद्धि मानते थे। दूसरी बात ये कि जब..
अनुच्छेद 370 संविधान में जोड़ा गया तब नेहरू देश में नहीं थे, तीसरी ये कि नेहरू के समर्थन के बावजूद कांग्रेस का बड़ा हिस्सा 370 के खिलाफ था और चौथी ये कि पटेल ने विरोध करने वाले कांग्रेसी हिस्से को अपनी सूझबूझ से ना सिर्फ मनाने का काम किया था बल्कि संविधान सभा से पास भी कराया।..
तो बराय मेहरबानी व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी (WU) के चक्कर में आकर अंड-बंड बोलने से बेहतर है किताब पढ़िए। नेहरू-पटेल को लड़ाने से बेहतर राष्ट्रनिर्माण में उनके योगदान को समझिए। इसके बावजूद सिर्फ नेहरू से नफरत की वजह से उन्हें आरोपी बनाना है तो बनाते रहिए, क्योंकि...
क्योंकि हमारे जिस संविधान ने 370 जैसा अनुच्छेद दिया,वही संविधान अभिव्यक्ति की आजादी भी देता है।

सोर्स-100 से ज्यादा किताबों को समेटने वाली @Ashok_Kashmir जी की 'कश्मीरनामा' और @BabelePiyush जी की 'नेहरू मिथक और सत्य'

नोट- यहां सबकुछ समेटना संभव नहीं,डीटेल के लिए किताब पढ़िए

• • •

Missing some Tweet in this thread? You can try to force a refresh
 

Keep Current with Abhinav Pandey

Abhinav Pandey Profile picture

Stay in touch and get notified when new unrolls are available from this author!

Read all threads

This Thread may be Removed Anytime!

PDF

Twitter may remove this content at anytime! Save it as PDF for later use!

Try unrolling a thread yourself!

how to unroll video
  1. Follow @ThreadReaderApp to mention us!

  2. From a Twitter thread mention us with a keyword "unroll"
@threadreaderapp unroll

Practice here first or read more on our help page!

More from @Abhinav_Pan

1 Apr
#1232KMs
ऐसा नहीं है कि हम इन्हें जानते नहीं,पहचानते नहीं, यहीं हमारे आस-पास ही तो रहते हैं, कहीं मजदूरी करते हैं, कहीं रिक्शा चलाते हैं, मां रोटी लाती है पत्थर तोड़कर, बच्चे खाते और सो जाते हैं जमीन बिछा,आसमान ओढ़कर।... 1/7
बड़े-बड़े शहरों में जिन ऊंची-ऊंची इमारतों को इन्होंने अपने पसीने के घोल से बनाया, उन्हीं इमारतों के किसी लिजलिजे तहखानों पड़े रहते हैं, बिल्कुल चुपचाप दीन-हीन-मलीन, कभी दिखते हैं, कभी हम देखना नहीं चाहते। मुफलिसी के हाथों हमेशा से मजबूर थे और जब
अचानक से लॉकडाउन लगा तो इनकी दो वक्त की रोटी पर भी कर्फ्यू लग गया।सरकार ने दर्जनों ऐलान किए लेकिन ये कहते राशनकार्ड तो गांव में है, खाता तो गांव में है। तो ऐसे डर बैठ गया कि शहरों कैसे रहेंगे, क्या खाएंगे और तब हमारे चमकते-दमकते शहरों में इन्हें भविष्य का अंधेरा ही अंधेरा
Read 7 tweets
28 Mar
सीधे रोमांच पर आते हैं

कॉमरेड ओगिलवी ने 3 साल की उम्र में तीन को छोड़कर सारे खिलौने तोड़ डाले।जो खिलौने उन्होंने रखे वो थे..ढोल,छोटी मशीनग और हेलिकॉप्टर।
6 वर्ष की आयु में वो बाल जासूसों के सरदार बन गए।9 की उम्र में अपने राष्ट्रदोही चाचा को उन्होंने पुलिस के हवाले कर दिया 1/7
17 साल की उम्र में कॉमरेड ओगिलवी सेक्स विरोधी लीग के जिला संयोजक बन गए। 19 की उम्र में उन्होंने ऐसा हथगोला बनाया जिसे शांति मंत्रालय (जो कि अशांति फैलाता था) ने देशहित में उपयोग के लिए स्वीकार कर लिया। जब उन हथगोलों का पहली बार प्रयोग किया तो उससे 31 यूरेशियन सैनिक मारे गए...
23साल की उम्र में वो जब हिंद महासागर के ऊपर हवाई जहाज से यात्रा कर रहे थे तब शत्रु के जेट विमानों ने उनका पीछा किया,उनके पास महत्वपूर्ण कागज थे,चुंकि कॉमरेड बचपन से बहादुर थे तो अपनी मशीन गन के साथ कागज जेब में रखकर समुद्र में कूद गए।23 साल की उम्र में वीरगति को प्राप्त हो गए..
Read 7 tweets
27 Mar
जिज्ञासा हमेशा पढ़ने के लिए प्रेरित करती है।
एक किताब मिल गई जिसमें 1971 में पीएम मोदी के जेल जाने का जिक्र है। मगर यहां जिक्र थोड़ा अलहदा है।

ऐंडी मरीनो लिखते हैं कि 1971 में RSS के लोग सेना में शामिल होने का अधिकार मांग रहे जबकि तब RSS पर बैन था...
लेकिन युद्ध के मोर्चे पर भेजने के बजाय सरकार ने हमें गिरफ्तार कर लिया। ऐसा ऐंडी मरीनो से पीएम मोदी कहते हैं।
अबतक जनसंघ के प्रदर्शन की बात आई थी, मगर ये नई और रोचक बात है।

मरीनो लिखते हैं कि उनकी कैद चंद दिनों की थी और नरेंद्र को जल्द ही रिहा कर दिया गया। जिससे यह संकेत साफ..
मिलता है कि यह घटना सिर्फ इसलिए हुई क्योंकि अधिकारी सड़कों को साफ करना चाहते थे। संघ आगे भी युद्ध शामिल होने की बात करता रहा है। मगर बिना प्रशिक्षण युद्ध में नहीं भेजा जाता।

कई और किताब के पन्ने ट्वीट कर रहे हैं जिसमें बांग्लादेश को मान्यता देने पर जनसंघ के प्रदर्शन में...
Read 5 tweets
26 Mar
मैं ये नहीं कहता कि पीएम संघर्ष में जेल नहीं गए होंगे। मगर ये 1000% दावे के साथ कह सकता हूं कि आपने गुजराती में लिखी 'संघर्षमां गुजरात' नहीं पढ़ी होगी।
मगर मैंने 227 पन्नों का हिंदी अनुवाद दो बार पढ़ी।पूरी किताब 1975 की इमरजेंसी पर है,इसमें कहीं भी 1971 का जिक्र नहीं है
मैं ये दावे के साथ कह सकता हूं BJP के तमाम नेता और तमाम प्रबुद्ध लोग इस किताब को खोल के देखे तक नहीं होंगे। देखे होते तो ये इस किताब को 'टूल किट' की तरह ना इस्तेमाल करते। दुर्भाग्य से आप भी इस 'टूल किट' का शिकार हो।पढ़ता-लिखता रहता हूं, लजाने की जरूरत मुझे नहीं पड़ेगी। 🙏🙏
मेरी रीच कम है, फॉलोअर्स कम हैं,इसलिए कम लोग पढ़ेंगे।आपको ज्यादा पढ़ते हैं,आप जो कहेंगी WhatsApp University और Twitter University में सच माना जाएगा।फिर भी सच यही है कि पीएम मोदी ने 1971 का जिक्र कहीं भी नहीं किया है।

माफ करिएगा जवाब देने में देर हुई क्योंकि किताब ही पढ़ रहा था
Read 6 tweets
26 Mar
आइए एक किस्सा सुनाता हूं, WhatsApp University की दुनिया समझने में आसानी होगी..

एक आदमी ने 1995 में अमेरिका में दो बैंक लूटे।दोनों जगह वह बिना चेहरा ढके गया और बैंक से पैसा लूटने के बाद मुस्कराता हुआ सिक्योरिटी कैमरा के सामने जाकर खड़ा हो गया। कैमरे के सामने बड़े आराम से काफी..
देर उसको मुंह चिंढ़ाता रहा, फिर वह भाग गया। पर रात होते तक पुलिस ने उसकी पहचान कर के उसको गिरफ्तार कर लिया।
लुटेरा अपनी गिरफ्तारी पर स्तब्ध था। उसको समझ नहीं आ रहा था कि उसकी पहचान कैसे हुई। पुलिस वालों ने उसको बताया कि भइया, हमें पहचान करने में कोई दिक्कत नहीं आई थी...
क्योंकि तुम नकाब नहीं पहने थे और उसके ऊपर तुम खुद ही सिक्योरिटी कैमरा के सामने आकर अपना वीडियो बना गए थे।

अब यहां से कहानी में खेल है

लुटरे को उनकी बात पर यकीन नहीं हो रहा था। वह हैरान था कि कैमरे ने उसकी तस्वीर ले कैसे ली, जबकि वह अपने चेहरे पर नीबू का रस लगा कर गया था।
Read 10 tweets
24 Mar
शहीद-ए-आजम भगतसिंह की फांसी के लिए गांधी जी को ना जाने क्या कुछ कहा जाता है, आजकल तो सावरकर से भी संबंध जोड़े जाने लगे हैं तो ऐसे #इति_श्री_इतिहास क्या कहता है?

बात 28 अक्टूबर 1928 की,साइमन कमीशन का लाहौर में तगड़ा विरोध हुआ,बौखलाए अंग्रेजों ने क्रूरता की लाठियां चलवा दी 1/40
उप निरीक्षक सांडर्स ने लाला लाजपत राय जी पर सीधी लाठी चलाई, एक सीने पर, दूसरी कंधे और तीसरी सिर पर लगी। बुजुर्ग लाला जी लाठियों की मार से पूरे 18 दिन लड़े
और 17 नवंबर को देह त्याग दिया। लाला जी की नीतियों से भगतसिंह भले ही खिलाफ हो गए थे, मगर लाला जी पर पड़ी लाठियों ने...
उन्हें हिलाकर रख दिया। 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में अंग्रेज सुप्रीटेंडट स्कॉट को मारने का प्लान बना।स्कॉट को पहचानने की जिम्मेदारी जयगोपाल की थी, जिसने आगे चलकर
भगतसिंह से गद्दारी की, जयचंद बना और सरकारी गवाह बन गया। खैर! स्कॉट की जगह सामने 21 साल का सांडर्स आ गया...
Read 38 tweets

Did Thread Reader help you today?

Support us! We are indie developers!


This site is made by just two indie developers on a laptop doing marketing, support and development! Read more about the story.

Become a Premium Member ($3/month or $30/year) and get exclusive features!

Become Premium

Too expensive? Make a small donation by buying us coffee ($5) or help with server cost ($10)

Donate via Paypal Become our Patreon

Thank you for your support!

Follow Us on Twitter!