कवयित्री जी..
सादर प्रणाम..
उत्तेजित क्यों कर ये कविता?
क्या होती है स्वास्थ्य शुचिता?

उस युग की बात करें जब ये नियम बने थे..
पुराने समय के समाज में महिलाओं और पुरुषों के लिए कई नियम बने थे जिन्हें रिवाज या परंपरा कहा गया।
प्राचीन भारतीय समाज में स्वास्थ्य एवं शुचिता की दृष्टि से इन नियमों का पालन आवश्यक था।
कालांतर में यही रिवाज कुरीतियों में बदल गए..
रजस्वला होने के समय रसोई अथवा मंदिर न जाना, अलग कक्ष में सोना आमोद-प्रमोद से दूर रहना, प्रसव के उपरान्त 30-40 दिन प्रसूति कक्ष में पुरुष का प्रवेश वर्जित होना उतना ही वैज्ञानिक था जितना आज शल्य चिकित्सा के बाद गहन चिकित्सा इकाई में रहना..
उस समय की कल्पना कीजिए जब कीटाणुनाशक सेनिटाइजर,डिटाॅल और सेनेटरी नैपकिन तो दूर की बात है साबुन भी नहीं हुआ करते थे,बिजली नहीं थी और स्त्री का जीवन बहुत ही श्रमसाध्य था।
लकड़ियाँ तोड़-बीन कर लाना,हाथ चक्की से अनाज पीसना और फिर खाना बनाना तो सामान्य दिनों में भी कठिन रहा होगा..
क्या एक रजस्वला स्त्री के लिए ये सहज रहा होगा?
जब किचिन में नल खोलते ही पानी की सुविधा नहीं थी,स्नान आदि के लिए दूर नदी अथवा तालाब तक जाना होता था.
आप कर पातीं यह सब?
स्त्री होने के नाते आप जानती होंगी कि उन दिनों में महिला का शरीर किस तरह की पीड़ा सहता है,कितनी असुविधा होती है..
इसी प्रकार शुचिता की दृष्टि से स्त्रियों को उन दिनों में अलग कक्ष में रखा जाता था। इसलिए नहीं कि वे अस्पृश्य थीं
बल्कि इसलिए कि उन्हें इस समय अनावश्यक कष्ट न सहना पड़े..
कालांतर में हम जैसे ही कुछ लोगों ने इन्हें स्त्री शोषण का साधन बना लिया।
यही बात माहवारी के समय पूजाघर अथवा मंदिर में स्त्रियों के प्रवेश पर लागू होती है..पूजन करने के लिए हम सभी स्वच्छ और शुद्ध हो कर ईश्वर के पास जाते हैं..आप भी ऐसा ही करती होंगी..
माहवारी एक शारीरिक प्रक्रिया भर है जिसके माध्यम से गर्भाशय का अशुद्द रक्त शरीर से बाहर निकलता है।
तो ऐसे संवेदनशील समय में जब आपके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता न्यून हो और आप शारीरिक रूप से असहज हो तो क्या आप ईश्वर की पूजा शांत चित्त से कर पाएंगी..?
ऐसा नहीं है कि सभी मंदिरों में स्त्रियों का प्रवेश मासिक धर्म के समय और अन्यथा वर्जित है..
आप संभवतया इस तथ्य से अवगत होंगी कि प्रत्येक पूजा के लिए विधि और विधान अलग-अलग हैं..कुछ अर्चनाएं केवल महिलाओं द्वारा की जाती हैं, कुछ केवल पुरुषों द्वारा ..अधिकांश पूजा विधियों में पति-पत्नी दोनों को साथ बैठना होता है..ये एक प्रकार के नियम हैं उनके लिए जो इनमें विश्वास करते हैं..
आप नहीं मानतीं तो आप स्वतंत्र हैं।अपने घर में अपने ईश्वर का ध्यान कीजिए,जैसे चाहे रहिए किंतु मंदिर उनका होता है जो ईश्वर में विश्वास रखते हैं,उसकी सेवा-पूजा सच्ची श्रद्धा से करते हैं।मंदिर कोई नेहरू उद्यान अथवा गाँधी मैदान नहीं है,सार्वजनिक स्थल भी नहीं,इतना तो मानना ही होगा..
क्या आप जानती हैं कि ग्रहण के सूतक को विज्ञान भी मानता है क्योंकि इस समय वातावरण में अनेक हानिकारक विकिरण होते हैं जो हमारी आँखों, खाद्य पदार्थों, गर्भस्थ शिशु आदि के लिए सही नहीं है..
इसीलिए ग्रहण के आस-पास खानपान नहीं होता और बाहर निकलना वर्जित होता है..
हमें गर्व है कि हमारा धर्म एक वैज्ञानिक धर्म है जिसकी प्रत्येक परंपरा और नियम के पीछे एक वैज्ञानिक तथ्य है।
सोचिएगा..न समझे तो हम से संपर्क करें..

🙏

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15 Feb
#प्रसंगवश..
दिशा रवि की आयु 21, 22 या 24 कुछ भी हो सकती है..किंतु उसके विचारों से परिलक्षित उसकी सोच हमें यह सोचने पर बाध्य करती है कि हम कहाँ चूके हैं..
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27 Nov 20
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9 Nov 20
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