1739 के "कत्लेआम" में नादिरशाह दुर्रानी ने करीब एक लाख बीस हजार लोगों को मौत के घाट उतार दिया था और तब से दिल्ली "मुर्दों का शहर" बन गई.
यूँ भी ऐबक,लोधी,खिलजी,तुगलक, सयैद आदि इत्यादि के अधीन रही दिल्ली के कोने-कोने में तो कब्रें और कब्रगाहें बनी पड़ी हैं ज़िंदगी आती भी कहाँ से..?
फिर मुगल स्थापत्य कला तो जानी ही मुर्दों की स्थापत्यकला के रूप में जाती है।
"जीतों को ज़िंदा जलाते थे आखिर
मैयत की मिट्टी सजाते थे आखिर"
दिल्ली के कोने-कोने में कब्रें तो थीं ही तो क्या आश्चर्य कि आजादी के बाद हमारे महान राष्ट्रीय खानदान यानि नेगाँधी वंश ने भी वैसा ही किया?
और दिल्ली के लोगों को पहले ही इस
की आदत थी तो जब शहर के बीच हजारों एकड़ कीमती जमीन पर नेगाँधी परिवार की समाधियाँ बनाई गई तो सब ने स्वाभाविक ही समझा..सहज ही स्वीकार कर लिया..
और आज..इस भयानक महामारी के दौर में जब हमारे जीवन का हर हाल बेहाल है, अर्थव्यवस्था के कदम डगमगा रहे हैं तो हमारे देश की महान ऐतिहासिक परिकथा के सौदागर अँगड़ाइयाँ ले पुनः उठ खड़े हुए हैं सवाल उठाने के लिए..
वे सवाल कर रहे हैं..।
किंतु सारे के सारे सवाल गलत..!
वैक्सीन, ऑक्सीजन की उपलब्धता और अस्पतालों की कमी को नये संंसद भवन के निर्माण से जोड़ना बजट प्रावधानों की प्रक्रिया से उनकी अनभिज्ञता दर्शाता है।
या उनकी गलत सोच , गलत इरादों का प्रदर्शन..
इतने विशाल आकार और आयाम वाली इस परियोजना से न केवल तंत्र में धन का प्रवाह होगा वरन् हजारों को निर्वाह का सहारा भी..
इतिहास साक्षी है कि किलों और महलों का निर्माण कार्य दुर्भिक्ष और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के समय हाथ में लिया जाता था जिससे कि लोगों को काम मिले।
To आपको याद दिला दें कि रॉकफेलर सेंटर की परिकल्पना और निर्माण वैश्विक मंदी के सबसे बुरे दिनों में हुआ था।
1930 की जबरदस्त बेरोजगारी के समय रॉकफेलर परिवार ने 75000 लोगों को रोजगार दिया था।
आज यह न्युयार्क के प्रतिष्ठित सांस्कृतिक एवं व्यापारिक केंद्र के रूप में जाना जाता है।
भविष्य में CentralVista अथवा नव संसद भवन भी भारतीयता की उस अपराजेय भावना का प्रतीक होगा जिसने इस महामारी के संकटकाल में हमारे जीवट को प्रतिष्ठित किया।
"जीवितों के लिए स्थापत्य.."
जीवितों के लिए सशक्त भारतीय
लोकतंत्र का प्रतीक..
जयहिंद।
🙏
ये कब्रों, ये मजारों का शहर,
ये उजड़े हुए दयारों का शहर..
बरबादी-ए-हिंद की निशानी है,
ये भद्दी सी मीनारों का शहर..
दिल्ली के दिल वालों से अग्रिम क्षमा..🙏
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नमस्कार मित्रों..
वैसे तो हम सभी गूगल चाची और वाट्स अप यूनिवर्सिटी के चलते कोरोना विशेषज्ञ हो गए हैं..फिर भी कुछ महत्वपूर्ण बातें बताना चाहूँगी जो डाक्टर @DNeurosx ने कुछ देर पहले ट्विटर स्पेस में बताई और मेरी मोटी बुद्धि में समझ आई।
सबसे महत्वपूर्ण बात तो ये कि अति आत्मविश्वास में ना रहें। कोरोना की किसी से रिश्तेदारी नहीं है इसलिए मास्क पहनने और सावधानियों में बिल्कुल भी ढील न दें।
इस बीमारी से बचाव ही बेहतर है। इसलिए ध्यान रखें अपना भी और अपने अपनों का भी..
वैक्सीन अवश्य लगवाएं।
अब यदि सारी सावधानियों के बावजूद भी कोरोना हो जाता है तो क्या करें।
पहली चीज..लक्षण..
बिल्कुल आम बुखार जैसा महसूस होगा..
तापमान बढ़ा हुआ और बदन दर्द।
घबराहट की कोई बात नहीं है..
हर बुखार कोरोना नहीं होता।
बुखार आते ही जाँच के लिए यहाँ - वहाँ भागने की जरूरत नहीं है।
पुराने समय के समाज में महिलाओं और पुरुषों के लिए कई नियम बने थे जिन्हें रिवाज या परंपरा कहा गया।
प्राचीन भारतीय समाज में स्वास्थ्य एवं शुचिता की दृष्टि से इन नियमों का पालन आवश्यक था।
कालांतर में यही रिवाज कुरीतियों में बदल गए..
रजस्वला होने के समय रसोई अथवा मंदिर न जाना, अलग कक्ष में सोना आमोद-प्रमोद से दूर रहना, प्रसव के उपरान्त 30-40 दिन प्रसूति कक्ष में पुरुष का प्रवेश वर्जित होना उतना ही वैज्ञानिक था जितना आज शल्य चिकित्सा के बाद गहन चिकित्सा इकाई में रहना..
#प्रसंगवश..
दिशा रवि की आयु 21, 22 या 24 कुछ भी हो सकती है..किंतु उसके विचारों से परिलक्षित उसकी सोच हमें यह सोचने पर बाध्य करती है कि हम कहाँ चूके हैं..
यदि आपका संवाद इन दिनों किसी किशोरवय के बालक या बालिका से हुआ हो तो आप जानते पाएंगे कि वामपंथी घुन कितने गहरे पैठ चुका है।
स्वाभाविक भी है..
पूर्व प्राथमिक कक्षाओं से ही छद्म धर्मनिरपेक्षता और विकृत वैश्विकता का विष घोला जाता है।
आप धार्मिक हों या न हों उससे कोई अंतर नहीं पड़ता क्योंकि आपके पास समय नहीं है और हवा में जहर घुला है..
हमारे चारों ओर का वातावरण कुछ ऐसा बना दिया गया है कि बच्चे न चाह कर भी विष पीने को बाध्य हो रहे हैं।
किशोरावस्था तक पहुँचते-पहुँचते स्थिति
आपके नियंत्रण से बाहर चली जाती है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य की बात करें?
कैसे चलता है नकली किसानों का गोरखधंधा?
कैसे लगाते हैं वो देश की अर्थव्यवस्था को चूना..?
आइए सीधे शब्दों में समझने का प्रयास करते हैं..
तो शुरुआत से शुरू करते हैं..
एक किसान 70 रुपये की अपनी उपज
80 रुपये में एक नकली किसान को बेचता है..नकद..बिना किसी आय कर के..
नकली किसान 80 रुपये की ये खरीद
सरकार को 100 रुपये में बेचता है..
आय कर विभाग के लिए कोई गुंजाइश नहीं यहाँ ..
किसने कितना कमाया..कोई हिसाब नहीं..
नया कृषि कानून खरीदने और बेचने वाले दोनों से आधार और PAN नम्बर की अनिवार्यता चाहता है जो नकली किसानों यानि दलालों के लिए परेशानी वाली बात होगी..
आइए आज बात करते हैं श्री रामचन्द्र काक की जो 1945 से 1947 तक कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे।
एक कश्मीरी पंडित होने के नाते रामचन्द्र जी अच्छी तरह जानते थे किस प्रकार सूफी समाज ने कश्मीरी संस्कृति और रिवाजों का ह्रास किया और उन्होंने महाराजा हरी सिँह से परिग्रहण संधि पर हस्ताक्षर करने से पहले कुछ वर्ष रुक कर निर्णय लेने को कहा..
सप्तॠषि वैदिक काल के सबसे महान ऋषि माने जाते हैं। अपनी योग और प्रायश्चित की शक्ति से उन्होंने बहुत लंबी आयु अर्थात् लगभग अमरत्व की सिद्धि प्राप्त की..।
सप्त ऋषियों को चारों युग में मानव प्रजाति के मार्गदर्शन का कार्य सौंपा गया ।वे आदि योगी शिव के सहयोग से पृथ्वी पर संतुलन बनाये रखते हैं..