आजकल हमारे देश का एक धड़ा बहुत खुश है, इतना ज्यादा कि खुशी छुपाए नही छुप रही, उनकी खुशी एकदम फुदक फुदक कर बाहर जंहा देखो ज्ञान के रूप में गिर रही है...
उनकी इस खुशी का कारण है "अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा"
"देखो तालिबान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की है"
"देखो बिना खून बहाए पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया"
"देखो तालिबान ने दुनिया की सारी शक्तियों के कब्रगाह बना दिये"
"तालिबान तो इस सरकार से कई गुना अच्छा है"
अरे अक्ल के दुश्मनों, या तो तुम इतने मूर्ख हो कि तालिबान के बारे में कुछ जानते नही और या फिर तुम इतने दुष्ट हो कि तुम्हे आतंकवाद प्रिय लग रहा है...
आपको तालिबान सिर्फ इसलिए अच्छा लगता है कि इसकी विचारधारा इस सरकार की विचारधारा की विरोधी विचारधारा है तो आप महामूर्ख हो...
सबसे पहले तो देश की सरकार लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई है... और ये इसलिए चुनी हुई है क्योंकि इसका विरोध करने वाले लोग तुम जैसे है, "जो जानबूझकर मजबूर करते है लोगो को की वो तमाम परेशानियों के बाद भी इसी सरकार को चुने"
महंगाई चरम पर है, बेरोजगारी चरम पर है... अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है... देश की सम्पतियों को बेचा जा रहा है, लेकिन तुमको ये सब बातें नही दिखती... तुमको जान बुझकर ऐसी जगह अंगुली करनी है कि हर सामान्य आदमी की भावनाये सरकार के समर्थन में हो जाये...
तुम एक मंझे हुए राजनेता को उस जगह घेरने की कोशिस करते हो जिस जगह का वो चेम्पियन है और हर बार मुंह की खा कर आते हो... तालिबान तालिबान बोलकर नाचने से लोग तुमसे दूर ही जायेंगे...
तुम्हारा असली चेहरा देख कर लोग यही सोचते है कि इतने घटिया लोगो से तो दिन प्रति दिन की ये परेशानिया ही अच्छी....
तुम्हारा पाखंड, अहंकार और नफरत सम्मिलित होकर तुम्हे इतना दुर्गंधित कर देती है कि कोई भी तुम्हारे पास फटकना नही चाहता....
देश मे इतनी ज्यादा समस्याएं है लेकिन तुम बाहर से मुद्दे उठा उठा कर ला रहे हो... ऐसे तो अगले 50 साल तक भी तुम इस सरकार को सत्ता से नही हिला पाओगे।।। 🤐
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हर मनुष्य के साथ ऐसा होता है कि जब वो शवयात्रा को देखता है तो कुछ क्षणों के लिए संसार से अरुचि या विरक्ति हो जाती है... जीवन की वास्तविकता का हमे अंदाजा उन कुछ क्षणों के लिए लग जाता है कि जीवन क्षणभंगुर है... लेकिन कुछ ही समय मे हम सब भूलकर सामान्य हो जाते है..
रोज अपने आस पास, सोशल मीडिया पर और समाचारों में इतने लोगो को मरते हुए देख कर मेरे साथ वो श्मशान वैराग्य वाली स्थिति स्थायी जैसी हो गई है... जीवन अब असार सा लगने लगा है... क्या फायदा किसी के साथ लगाव रखने का जब वो आपको किसी भी क्षण छोड़कर जा सकता है...?
"मैं क्या कर रहा हूँ"
"क्यों कर रहा हूँ"
जैसे सवाल बार बार मन मे आते है... जीवन मे कितनी ही सफलता अर्जित करे, मृत्यु एक वास्तविकता है, एक अटल सत्य है...
इसके सामने मेने बहुत गुरुर से भरे लोगो को भी गिड़गिड़ाते हुए देखा है...
भारत और चीन के रिश्तों में कड़वाहटों के बीच भारत ने चीन के कई app प्रतिबंधित कर दिए... लेकिन चीन से आया हुआ एक ऐसा उत्पाद है जो भारत मे कोई भी प्रतिबंधित नही कर सकता वो है
"चाय"
चाय के शौकीन लोगो के लिए चाय शब्द ही ताजगी से भरने के लिए पर्याप्त है... मसलन ब्रांच में काम करते समय चाय वाले को कप में अपने लिए चाय भरते हुए देखने के वो क्षण इतना आनंद देते है जितना अपनी दुल्हन का पहली बार घूंघट उठाने वाले क्षण भी नही देते होंगे 🤐
चाय वाले को अपने लिए चाय भरते हुए देखना चाय प्रेमियों के लिए दुनिया का सबसे सुंदर दृश्य होता है...
लेकिन सर्दियों में सुबह अपने लिए खुद चाय बनाना उसी अनुपात में पीड़ादायी भी होता है.. मैं आपको समझाता हूँ कैसे...
किसी भी आंदोलन की शुरुआत एक असंतोष से होती है... उस असंतोष को धीरे धीरे बाकी लोगो तक पहुंचाना और फिर एक कारवां बनता जाना आंदोलन के उदय का चरण है...
एक टीम बनने के बाद उस टीम को "बनाये रखना" बहुत ज्यादा चुनोतिपूर्ण होता है
आप जिसके खिलाफ संघर्ष कर रहे है उसके विरुद्ध कार्ययोजना बनाने के साथ साथ ही आपकी अपनी टीम में समन्वय बिठाने की भी जिम्मेदारी होती है...
टीम भी कई तरीके से बनाई जा सकती है...
एक तो जैसेकि झुंड... उसमे किसी भी सदस्य का कोई व्यक्तिगत विचार नही होता... सब सदैव एकमत रहते है
एक होती है भीड़... जिसमे कोई भी जो मर्जी कर रहा है, अनुशासन हीनता और हुड़दंग भीड़ की निशानी है....
लेकिन आंदोलन को सफलता न तो झुंड के साथ मिल सकती है और न ही भीड़ के साथ...
सच कहूं तो तनिष्क का यह विज्ञापन देखने से पहले मैं तनिष्क को नहीं जानता था... क्योंकि मैं एक ऐसे साधारण परिवार से आता हूं जहां घड़ी पहनना भी लग्जरी माना जाता है...
लेकिन जब मैंने यह देखा तो विचारों के कई आयाम खुले और सोचा मुझे इस बारे में लिखना चाहिए...
दरअसल जिस समय मैं यह विज्ञापन देख रहा था, उसके तुरंत बाद मैंने एक खबर पढ़ी जिसमें दिल्ली में रोहित नाम के एक 19 वर्ष के लड़के को सिर्फ इसलिए मार दिया गया क्योंकि वह एक मुस्लिम लड़की से फोन पर बात करता था... यह "महत्वहीन" खबर बहुत कम अखबारों के कोने में छपी...
इसलिए यह खबर बहुत कम लोगों ने पढ़ी होगी लेकिन अगर इसका उल्टा हो जाता तो लोकतंत्र खतरे में आ जाता....
इस खबर और इस विज्ञापन ने मुझे अपने देश की सामाजिक समरसता की कहानी बहुत अच्छे से समझा दी...
दरअसल हमारे देश के विज्ञापनों, धारावाहिकों और फिल्मों में एक प्रोपेगेंडा चल रहा है...
हमारे तथाकथित "लोकतंत्र" में हमारी बेटियां सुरक्षित नही है... अब में कुछ उन देशों की बात बताता हूँ जंहा लोकतंत्र नही है या बहुत अल्प विकसित है लेकिन उनकी बेटियों की तरफ कोई आंख उठा कर भी नही देख सकता....
1- उत्तर कोरिया
इसे हम सभी एक तानाशाह देश के रुप में जानते हैं. लेकिन इस तानाशाह देश की एक खासियत ये है कि यहां रेपिस्टों के लिए रहम की कोई गुंजाइश नहीं है. यहां रेपिस्टों को अधिकारी तुरंत ही सर में गोली मारकर सजा देते हैं.
2- चीन
रेपिस्टों के लिए यहां भी कोई दया की गुंजाइश नहीं होती. अगर अपराध साबित हो गया तो अपराधी के लिए बचने का कोई रास्ता नहीं. इन्हें गर्दन और पीठ के ज्वाइंट पर गोली मारी जाती है. और अगर अपराधियों को इतनी आसान मौत ना देनी हो तो उनका बधिया (Castration) कर दिया जाता है.