भीमराव अंबेडकर महार जाती से थे जो कि एक बहिष्कृत समाज था अब सवाल ये उठता है कि महारो का बहिष्कार क्यों किया गया था।

ज्यादातर महारो का बहिष्कार दलितों ने ही किया हुआ था ना महारो को बेल गाड़ी मैं बिठाया जाता और ना ही उन्हें कोई पानी पीने देता ओर नाही कोई उन्हें अपने पास बिठाता।
जैसा कि आप फ़ोटो मैं देख सकते है भीमराव अंबेडकर खुद बहिष्कृत परिषद का आयोजन कर रहे है और जागरूकता फैलाते है कि महारो की गलतियों को अनदेखा किया जाए और सभी उन्हें अपनाने लगे।

तो चलिए सुरू करते है कि महारो का बहिष्कार क्यों किया गया था
1857 की क्रांति के बाद आम नागरिकों ने अंग्रेजो के वफादार रहे सैनिकों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया था।

यहां पे एक चीज गौर करने योग्य है कि अंग्रेजो की सेना में ज्यादातर था कौन। जैसा कि #अम्बेडकर लिखते है कि अंग्रेजो की सेना में सभी #अछूत थे ये वो लोग थे जो भारत को अंग्रेजो
द्वारा गुलाम बनाने में मदद किये थे।

आम नागरिकों खास कर दलितों ने इन्हें देश द्रोही कहा 1857 के बाद इन लोगो का सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया।

#अम्बेडकर की तो तीन #पीढ़िया अंग्रेजो की #वफादार रही उनकी सेना में बाकायदा सेवा दे रहे थे।
क्या ये सोचने वाली बात नही है कि कोई नाई बाबा साहिब की सपूर्ण जाती के बाल नही काट रहा था कोई बैल गाड़ी वाला उन्हें अपने साथ नही बैठाता था कोई इन्हें रूम नही देता रहने के लिए इसका सीधा सा मतलब है महार जिन्हें अछूत कहते है उन लोगो को समाज के लोगोने अपने समाज से बहिष्कृत कर दिया था
महार बहिष्कृत समाज था out cast था।
न कि सामाजिक भेदभाव था।

आखिर बाबा के साथ ही इतना भेदभाव क्यों होता था जबकि दलित जगजीवन राम भी थे।

भीमराव अंबेडकर ने बड़ी चालाकी से महारो की कहानी को सपूर्ण दलितों की कहानी बना डाली और प्रचार करने लगे कि दलितों को पानी नही पीने देते है ।
कोई उनके पास नही बैठता है कोई उन्हें घर मे नही घुसने देता है ये दलितों के साथ छुआछूत हो रहा है भीमराव आंबेडकर की चाल कामयाब रही और सब महारो को भूल गए।

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