ancient.bharat The world credited Sir Issac Newton, the English astronomer, mathematician and physicist, for discovering Gravity. In 1687 he published a book called - Philosophiae Naturalis Principia Mathematica - In which he presented a theory of Universal Gravitation.
But Gravity is a concept that Ancient Indians have known for Longer The concept was so prevalent and revered that references abound. For instance, the Rig Veda-1-103-2 explains: "The gravitational effect of Solar System keeps the earth stable."
Rishi Pippalada in the text, Prashnopanishad states, "The mother divinity in the earth helps the apana by supporting it." As per Ayurveda, apana is the force equivalent to gravity, present in the middle of the body. In all living beings, it aids the bodily functions of:
Ingestion - taking in of food Digestion - process of moving and breaking down food into absorbable nutrients Excretion - discarding body wastes such. as defecation Micturition - Urination Parturition - Giving birth And Adi Shankaracharya who lived around 460 BCE, wrote in his
commentary on the Upanishads: "If the divinity of the earth would not pull down this body by supporting apana*, this body would have floated anywhere in space." The ancient Indian scholar Varahamihira said: "
Planet earth being surrounded by various stellar bodies situated in space, is similar to an iron sphere remaining suspended between two magnets." Gravity is a concept that can be traced to the Sanskrit words of Gurutva and Gurutvakarshana from ancient Indian history.
The root word Guru denotes heavy, big and influencing and Akarshana, means, "the power of attraction." The power to attract, Gurutuva, is present in all the natural bodies. Indians not only knew of the concept of gravitational pull and had given the word Gurutva to it, as a
precursor to the English word "gravity", but also understood the effect of gravity on earth and its
residents. We know today from modern science that astronauts have difficulty as gravity is very low or nil in space.
• • •
Missing some Tweet in this thread? You can try to
force a refresh
भीमराव अंबेडकर महार जाती से थे जो कि एक बहिष्कृत समाज था अब सवाल ये उठता है कि महारो का बहिष्कार क्यों किया गया था।
ज्यादातर महारो का बहिष्कार दलितों ने ही किया हुआ था ना महारो को बेल गाड़ी मैं बिठाया जाता और ना ही उन्हें कोई पानी पीने देता ओर नाही कोई उन्हें अपने पास बिठाता।
जैसा कि आप फ़ोटो मैं देख सकते है भीमराव अंबेडकर खुद बहिष्कृत परिषद का आयोजन कर रहे है और जागरूकता फैलाते है कि महारो की गलतियों को अनदेखा किया जाए और सभी उन्हें अपनाने लगे।
तो चलिए सुरू करते है कि महारो का बहिष्कार क्यों किया गया था
1857 की क्रांति के बाद आम नागरिकों ने अंग्रेजो के वफादार रहे सैनिकों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया था।
यहां पे एक चीज गौर करने योग्य है कि अंग्रेजो की सेना में ज्यादातर था कौन। जैसा कि #अम्बेडकर लिखते है कि अंग्रेजो की सेना में सभी #अछूत थे ये वो लोग थे जो भारत को अंग्रेजो
Brothers! I must have been very angry after reading that title. Now pay attention
First, the parents of the house gave permission to the women to go out, then after some time the men gave approval for the speech, then the phone was also.
stopped. Then the ban was removed from coming and going with the great men. Now by being naked in the phone, wearing lingerie, giving permission to dance and becoming a whore to get likes/shares. The Western Mlechho's plan was successful.
The parents have already prepared the girls to be raped, now after some time it will not stop till they become rape victims and sit at home. After this, the parents will start to understand rape as simple, then the women of the house will sell the youth.
ब्राह्मण शूद्रों को अछूत मानते थे, आइये जानते हैं इसकी असलियत
जब ब्राह्मणों के घर ब्रह्मभोज होता था तो उनके यहाँ जो दोना पत्तल लगता था वो मुसहर (महादलित) लेके आता था, जो पानी भरा जाता था वो कहार भरते थे, जो मिट्टी का बर्तन यूज होता था वो कुम्हार बनाते थे।
जो आवश्यक कपड़े लगते थे वो जुलाहे के यहाँ से आते थे, जो जनेऊ होती थी उसे शूद्र कारीगर ही बनाते थे, हाथ में जो कलावा पहनते हैं ये भी शूद्र समाज ही बनाता था, नदी जब पार करते थे तो उसे मल्लाह पार करवाता था, अनाज किसानों के यहाँ से आता था और दूध अहिरों के यहाँ से आता था।
छूत अछूत वाली सारी कहानी यहीं धराशायी हो जाती है, ब्राह्मणों ने ऐसे समाज की रचना की थी जहाँ सबको बराबर काम आवंटित होता था और 90% क्षेत्रों में शूद्रों को आरक्षण दिया गया था, ब्राह्मण सिर्फ शिक्षा का काम संभालते थे और क्षत्रिय राज-काज का, जबकि वैश्य व्यापार का, मैनुफैक्चर सेक्टर
क्या था रामानुजन के ज्ञान का स्रोत और उनकी कुल देवी महान गणितज्ञ की कहानी।
जब बीमार रामानुजन ने बिस्तर पर पड़े-पड़े कहा, ये नंबर बहुत खास है
X +√y = 28
√x+y = 14
क्या आप इस दो लाइन के सवाल को बिना ग्राफ और इंडक्शन मेथड (सीधे x और y की वैल्यू रखना) के बिना हल कर सकते हैं?
अगर हां, तो कोशिश कर लीजिए हो सकता है गणित की अगली महान खोज का श्रेय आपको ही मिल जाए. वैसे मैं आपको बता दू कि इस सवाल का जवाब (x=25 और y= 9) है. इसके बाद भी मन हो तो कोशिश कर के देख सकते हैं.। दरअसल ये एक छोटी सी मिसाल है 22 दिसंबर को पैदा हुए श्रीनिवास रामानुजन की महान
प्रतिभा की. जिन्हें सिर्फ एक गणितज्ञ कह देना उनकी प्रतिभा को अंडररेट करना है।
13 साल की उम्र में रामानुजन को SL Loni की त्रिकोणमिति की किताब मिली. रामानुजन ने किताब खत्म की और कुछ अपनी नई थेओरम बना दीं.।
युधिष्ठिर को युवराज के रूप में क्यों नियुक्त किया गया था? / बलराम भीम के गुरु कैसे बने? / पांडवों ने यूनान (ग्रीस) तक अपने राज्य का विस्तार कैसे किया?
एक वर्ष बीतने के बाद, धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर को युवराज के रूप में उनके निरंतर, दयालु, सरलता, सहयोग आदि के महान गुणों के लिए नियुक्त किया, क्योंकि वे हस्तिनापुर के लिए एक सक्षम प्रशासक साबित होंगे। जल्द ही युधिष्ठिर की महिमा पांडु से अधिक हो गई।
इस बीच भीम गदा के माध्यम से युद्ध की कला और युद्ध में रथ के उपयोग की कला सीखने के लिए बलराम के पास गए। भीम इस कला में बलराम के समान हो गए। वह वापस आए और अपने भाइयों के साथ रहने लगे। विभिन्न प्रकार के बाणों को तेजी से निशाना बनाकर अर्जुन अपनी मुट्ठी से धनुष को पकड़ने की कला में
भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते है कि तुम्हे यह गीतारूप रहस्यमय उपदेश किसी भी कालमें न तो तपरहित मनुष्यसे कहना चाहिये , न भक्तिरहितसे और न बिना सुननेकी इच्छावालेसे कहना चाहिये तथा जो मुझमें दोषदृष्टि रखता है , उससे भी कभी नहीं कहना चाहिये ।
जो पुरुष मुझमें परम प्रेम करके इस परम रहस्ययुक्त गीताशास्त्रको मेरे भक्तोंमें कहेगा , वह मुझको ही प्राप्त होगा - इसमें कोई सन्देह नहीं है । मेरा उससे बढ़कर प्रिय कार्य करनेवाला मनुष्योंमें कोई भी नहीं है तथा मेरा पृथ्वीभरमें उससे बढ़कर प्रिय दूसरा कोई भविष्यमें होगा भी नहीं ।
तथा जो पुरुष इस धर्ममय हम दोनोंके संवादरूप गीताशास्त्रको पढ़ेगा , उसके द्वारा मैं ज्ञानयज्ञसे पूजित होऊँगा -ऐसा मेरा मत है जो पुरुष श्रद्धायुक्त और दोषदृष्टिसे रहित होकर इस गीताशास्त्रका श्रवण भी करेगा वह भी पापोंसे मुक्त होकर उत्तम कर्म करनेवालोंके श्रेष्ठ लोकोंको प्राप्त होगा।