बन्दा बैरागी जी का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 को ग्राम तच्छल किला, पुंछ में श्री रामदेव के घर में हुआ। उनका बचपन का नाम लक्ष्मणदास था। युवावस्था में शिकार खेलते समय उन्होंने एक गर्भवती हिरणी पर तीर चला दिया। इससे उसके पेट से एक
शिशु निकला और तड़पकर वहीं मर गया। यह देखकर उनका मन खिन्न हो गया। उन्होंने अपना नाम माधोदास रख लिया और घर छोड़कर तीर्थयात्रा पर चल दिये। अनेक साधुओं से योग साधना सीखी और फिर नान्देड़ में कुटिया बनाकर रहने लगे।
इसी दौरान गुरु गोविन्दसिंह जी माधोदास की कुटिया में आये।
उनके चारों पुत्र बलिदान हो चुके थे। उन्होंने इस कठिन समय में माधोदास से वैराग्य छोड़कर देश में व्याप्त आतंक से जूझने को कहा।
इस भेंट से माधोदास का जीवन बदल गया। गुरुजी ने उसे बन्दा बहादुर नाम दिया। फिर पाँच तीर, एक निशान साहिब, एक नगाड़ा और एक हुक्मनामा देकर दोनों छोटे पुत्रों
को दीवार में चिनवाने वाले सरहिन्द के नवाब से बदला लेने को कहा।
बन्दा हजारों सिख सैनिकों को साथ लेकर पंजाब की ओर चल दिये। उन्होंने सबसे पहले श्री गुरु तेगबहादुर जी का शीश काटने वाले जल्लाद जलालुद्दीन को उसके किये की सजा दी। फिर सरहिन्द के नवाब वजीरखान का वध किया।
जिन हिन्दू राजाओं ने मुगलों का साथ दिया था, बन्दा बहादुर ने उन्हें भी नहीं छोड़ा। इससे चारों ओर उनके नाम की धूम मच गयी।
उनके पराक्रम से भयभीत मुगलों ने दस लाख फौज लेकर उन पर हमला किया और विश्वासघात से 17 दिसम्बर, 1715 को उन्हें पकड़ लिया।
उन्हें लोहे के एक पिंजड़े में बन्दकर,
हाथी पर लादकर सड़क मार्ग से दिल्ली लाया गया। उनके साथ हजारों सिख भी कैद किये गये थे। इनमें बन्दा के वे 740 साथी भी थे, जो प्रारम्भ से ही उनके साथ थे। युद्ध में वीरगति पाए सिखों के सिर काटकर उन्हें भाले की नोक पर टाँगकर दिल्ली लाया गया। रास्ते भर गर्म चिमटों से बन्दा बैरागी
का माँस नोचा जाता रहा।
काजियों ने बन्दा और उनके साथियों को मुसलमान बनने को कहा; पर सबने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। दिल्ली में आज जहाँ हार्डिंग लाइब्रेरी है,वहाँ 7 मार्च, 1716 से प्रतिदिन सौ वीरों की हत्या की जाने लगी। एक दरबारी मुहम्मद अमीन ने पूछा - तुमने
ऐसे बुरे काम क्यों किये, जिससे तुम्हारी यह दुर्दशा हो रही है ?
बन्दा ने सीना फुलाकर गर्व से उत्तर दिया - मैं तो प्रजा के पीड़ितों को दण्ड देने के लिए परमपिता परमेश्वर के हाथ का शस्त्र था। क्या तुमने सुना नहीं कि जब संसार में दुष्टों की संख्या बढ़ जाती है, तो वह मेरे जैसे
किसी सेवक को धरती पर भेजता है।
बन्दा से पूछा गया कि वे कैसी मौत मरना चाहते हैं ?
बन्दा ने उत्तर दिया, मैं अब मौत से नहीं डरता; क्योंकि यह शरीर ही दुःख का मूल है। यह सुनकर सब ओर सन्नाटा छा गया। भयभीत करने के लिए उनके पाँच वर्षीय पुत्र अजय सिंह को उनकी गोद में लेटाकर
बन्दा के हाथ में छुरा देकर उसको मारने को कहा गया।
बन्दा ने इससे इन्कार कर दिया। इस पर जल्लाद ने उस बच्चे के दो टुकड़ेकर उसके दिल का माँस बन्दा के मुँह में ठूँस दिया; पर वे तो इन सबसे ऊपर उठ चुके थे। गरम चिमटों से माँस नोचे जाने के कारण उनके शरीर में केवल हड्डियाँ शेष थी।
फिर भी आठ जून, 1716 को उस वीर को हाथी से कुचलवा दिया गया। इस प्रकार बन्दा वीर बैरागी अपने नाम के तीनों शब्दों को सार्थक कर बलिपथ पर चल दिये।
बहादुर बन्दा को सादर शत् शत् नमन
🙏🏾जय हिंद🙏🏾
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नेता तो बहुत हैं पर उनके मन में हिंदुओं के साम्राज्य जैसा कोई लक्ष्य नहीं, कोई महत्वाकांक्षा नहीं; इसलिए हिंदु नेताओं को सेकुलरिज्म की चादर ओढ़कर हिंदुओं के रक्त की प्यासी कौम से भाईचारा निभाने में भी कोई लज्जा नहीं आती!
सत्ता का जो तंत्र अंग्रेज स्थापित कर गए,
मात्र वे उसे ढोना चाहते हैं, उसपर बैठकर उसे भोगना चाहते हैं, यही हिंदु नेताओं की महत्वाकांक्षा है!
जबकि कम्युनिस्टों, मुसलमानों और ईसाईयों का स्पष्ट राजनैतिक लक्ष्य है। कम्युनिस्ट साम्यवादी शासन वाला भारत चाहते हैं, मुसलमान शरीयत कानून वाला इस्लामिक भारत चाहते हैं और ईसाई
इंडोनेशिया के पूर्व मुस्लिम राष्ट्रपति सुकर्णो की बेटी ने हिंदू धर्म अपनाया
इंडोनेशिया में चर्चा है कि खत्म हो जाएगा इस्लाम धर्म और क्या 500 साल पुरानी भविष्यवाणी सच हो जाएगी
इंडोनेशिया के पूर्व राष्ट्रपति सुकर्णो की बेटी ने हिंदू धर्म अपना लिया है । इंडोनेशिया के
पहले राष्ट्रपति सुकर्णो को इंडोनेशिया में राष्ट्रपिता के जैसा दर्जा हासिल है । सुकर्णो नाम तो संस्कृत भाषा से मिलता जुलता है लेकिन वो एक मुसलमान थे ।
इंडोनेशिया में इस्लाम ने आक्रमण के माध्यम से... तलवार के जरिए अपनी जड़ें जमा लीं और 99 प्रतिशत आबादी को
इस्लाम में कन्वर्ट करवा लिया लेकिन इसके बाद भी वहां पर अरब कल्चर की जड़ें नहीं जम पाईं यही वजह है कि आज भी वहां लोगों के नाम संस्कृत भाषा से मिलते जुलते हैं
सुकुमावती सुकर्णोपुत्री ने इंडोनेशिया के बाली द्वीप में पूरे धार्मिक रीति रिवाज से घर वापसी कर ली है और इस घटना को
ये सिर्फ पटाखों की आवाज नहीं है... ये देश के अंदर सुलग रहे एक गृहयुद्ध की अभिव्यक्ति (प्रगटीकरण) है !
-हिंदुओं का खून अब पानी हो चुका है... उनके अंदर कभी कोई गुस्सा नहीं आता है... इस देश के अंदर रहकर लोग पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाते हैं... उस
पाकिस्तान के नारे लगाते हैं जो कोई देश नहीं है बल्कि हमारे महान पूर्वजों की जमीन पर मौजूद एक इस्लामिक उपनिवेश है ! उस पाकिस्तान की जिंदाबाद के नारे लगाए जाते हैं जिसके निर्माण के लिए लाखों बेगुनाह हिंदुओं की जान जिन्ना और मुस्लिम लीग के समर्थकों ने ली थी... उस पाकिस्तान की
जिंदाबाद के नारे लगाए जाते हैं जिस पाकिस्तान के समर्थकों ने बंटवारे के वक्त भारत की लाखों हिंदू महिलाओं का बलात्कार किया था... उनको नंगा करके कराची और लाहौर की सड़कों पर घुमाया था... ये उस पाकिस्तान की जिंदाबाद के नारे लगाते हैं... जिसके निर्माण के वक्त
इस देश के अंदर पाकिस्तानियों को हम कब तक ढोते रहेंगे ?
-जब पाकिस्तान जीता तो हिंदुस्तान में रहने वाले मुसलमानों ने कल जमकर पटाखे फोड़े और आतिशबाजी की... कल दिल्ली में उन इलाकों से पटाखों की आवाजें आती रहीं जहां शाहीनबाग आंदोलन का सबसे ज्यादा जोर था और ऐसा लगा कि ये कोई पटाखों
की आवाज नहीं है... ये उन अदृश्य जूतों की आवाज थी जो हिंदू को कायदे से बार बार लगाए जाते हैं और हिंदू हर बार ऐसे जूतों को ना सिर्फ सहता है बल्कि सहने का आदी हो चुका है
-वीरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर ने तक दिल्ली के सीलमपुरी और तमाम मुस्लिम बहुल इलाकों में फोड़े गए पटाखों पर ट्वीट
किया और कहा कि पाकिस्तान की जीत पर जो लोग पटाखें फोड़ रहे हैं वो लोग दिवाली पर पटाखे ना जलाने का ज्ञान बिलकुल भी ना दें ।
-पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक ने कल एक बयान जारी करके पाकिस्तान की जीत को समूचे आलमे इस्लाम की जीत बताया है । और कहा है कि पाकिस्तान की
एक गांव में राजपूत, ब्राह्मण, बनिये, तेली, हरिजन आदि जातिके लोग रहते थे, सभी मिलजुल कर शान्ति से रहते थे।
एक दिन गांव के मुखिया के पास एक मुस्लिम अपनी पत्नी और आठ बच्चों के साथ आया और गांव मे रहने की भीख मांगने लगा।
रातों को जागकर गाँव की देखभाल करने वाले
एक चौकीदार ने इसका विरोध किया लेकिन किसीने उसकी बात को नहीं माना और मुस्लिम परिवार को गांव में रहने की अनुमति दे दी।
दिन गुजरते गये और मुस्लिम के आठों बच्चे बड़े हो गए जब उनकी शादी की बारी आई तो मुस्लिम सरपंच के पास गया और बोला कि हुजूर बच्चों की शादी होनेवाली है और
मेरे पास एक ही घर हैं तो गावँवालों ने उसको एक बंजर जमीन दे दी और कहा कि तुम उस पर घर बना कर रहो ।
इसके बाद मुस्लिम बनिये के पास गया और उससे पैसे उधार लिए । कुछ समय बाद उन आठों बच्चों के ७४ बच्चे हुए और देखते ही देखते लगभग ३० सालों मे उस गांव में मुस्लिमों की जनसंख्या ४०% हो गई।
पितृ पक्ष में किसको अधिकार है श्राद्ध करने
का और क्या है 16 तिथियों का महत्व?
श्राद्ध पक्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक कुल 16 दिनों तक चलता है। उक्त 16 दिनों में हर दिन अलग अलग लोगों के लिए श्राद्ध होता है।
वैसे अक्सर यह होता है कि जिस तिथि को व्यक्ति की मृत्यु हुई है, श्राद्ध में पड़ने वाली उस तिथि को उसका श्राद्ध किया जाता है, लेकिन इसके अलावा भी यह ध्यान देना चाहिए कि नियम अनुसार किस दिन किसके लिए और कौन सा श्राद्ध करना चाहिए?
किसको करना चाहिए श्राद्ध?
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*पिता के श्राद्ध का अधिकार उसके बड़े पुत्र को है लेकिन यदि जिसके पुत्र न हो तो उसके सगे भाई या उनके पुत्र श्राद्ध कर सकते हैं। यह कोई नहीं हो तो उसकी पत्नी कर सकती है। हालांकि जो कुंआरा मरा हो तो उसका श्राद्ध उसके सगे भाई कर सकते हैं और जिसके सगे भाई न हो, उसका श्राद्ध