#BlackBill

पिछले कुछ समय से लगातार व्यस्तता के चलते पर्याप्त समय नही निकाल पा रहा हूँ... पेशेवर जीवन के साथ साथ व्यक्तिगत जीवन मे भी लगातर चल रही उठापटक की वजह से संतुलित होकर कुछ सोच पाना और कुछ कर पाना बहुत मुश्किल लगने लगा है...

लेकिन चूंकि अब सवाल अस्तित्व का है...
तो अब चुप बैठना कायरता होगी... हालांकि मानसिक उठापटक के इस दौर में भी में भी मैं चुप तो नही बैठा....
जंहा भी मौका मिला, जैसा भी मौका मिला बैंकर्स को संगठित करने का, उनका स्वर समवेत बनाने का प्रयास किया...
मेरी सबसे बड़ी समस्या ये है कि मेरे आस पास बैठ कर काम करने वाले लोग इस दिवास्वप्न में है कि निजीकरण हमे तो चिमटी से भी नही छू सकता, तो हम क्यों परेशान हो...?
और मुझे उनके ये विचार सुन कर आश्चर्य होता है, की हम इतने स्वार्थी क्यों हो गए?
हमारे पास के काउंटर पर हमारा साथी पिट जाता है और तब भी हम अपनी दुनियां में मस्त रहते है... इस सोच के साथ कि "हमे क्या"??

हमारी यह प्रवृत्ति ही हमारे पतन का कारण है...

हम जब तक दुसरो का भला सोचकर सबके हित के लिए निस्वार्थ भाव से आगे नही आएंगे, कोई लड़ाई नही जीत पाएंगे...
"प्राइवेट तो 2 ही बैंक हो रहे है, हमारे बैंक का नाम तो उसमें है नही, तो हम क्यों परेशानी उठाये" वाली सोच रखने वाले लोगो को में एक बात याद दिलाना चाहूंगा जो बचपन मे बुजुर्गों के मुंह से सुना था -

"बिल्ली दूध पी गई इस बात से ज्यादा इस बात की चिंता है कि बिल्ली रास्ता जान गई"
जो लोग ये सोचकर रजाई में दुबके है कि मेरा बैंक तो "सेफ" है... वो एक मशहूर शायरी अपने जेहन में बिठा ले...

"उसके कत्ल पर मैं चुप था,
अब मेरा नम्बर आया है...

मेरे कत्ल पर तु चुप है,
अब अगला नम्बर तेरा है..."

इसलिए ये जान लीजिए कि किसी का बैंक भी सेफ नही है...
और मान लीजिये 0.00001% ये संभावना भी हो कि आपका बैंक निजी नही होगा तो भी किस कीमत पर??
कितना बोझ होगा सरकारी योजनाओं का कभी सोचा है??
BSNL की जिस तरह कमर तोड़ी गई वैसे नही तोड़ी जाएगी इस बात की क्या गारंटी है...?
और अगर मान लीजिये 0.000000000000001% ये संभावना हो कि आपकी working condition में भी कोई बदलाव नही आएगा तो भी आपके साथ आपकी ही तरह गलाकाट प्रतिस्पर्धा में सफल होकर आए आपके साथियों की जॉब सिक्युरिटी छीनी जा रही है और आप चुप बैठे रहोगे??
इसलिए हमारा किसी भी परिस्थिति में चुप बैठे रहना अक्षम्य अपराध है...

आइए साथ मिलकर इस अन्याय का प्रतिरोध करे... हमारा संगठित होना हमारे अस्तित्व के लिए अत्यावश्यक है...

अगर अब भी हम चुप रहे तो जीवन भर ये ग्लानि नही मिटा पाएंगे कि इतिहास ने हमे अवसर दिया था, और हमने खो दिया

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20 Aug
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27 Apr
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हर मनुष्य के साथ ऐसा होता है कि जब वो शवयात्रा को देखता है तो कुछ क्षणों के लिए संसार से अरुचि या विरक्ति हो जाती है... जीवन की वास्तविकता का हमे अंदाजा उन कुछ क्षणों के लिए लग जाता है कि जीवन क्षणभंगुर है... लेकिन कुछ ही समय मे हम सब भूलकर सामान्य हो जाते है..
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चाय वाले को अपने लिए चाय भरते हुए देखना चाय प्रेमियों के लिए दुनिया का सबसे सुंदर दृश्य होता है...
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27 Oct 20
#justice4Nikita

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किसी भी आंदोलन की शुरुआत एक असंतोष से होती है... उस असंतोष को धीरे धीरे बाकी लोगो तक पहुंचाना और फिर एक कारवां बनता जाना आंदोलन के उदय का चरण है...
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14 Oct 20
तनिष्क और हमारा समाज

सच कहूं तो तनिष्क का यह विज्ञापन देखने से पहले मैं तनिष्क को नहीं जानता था... क्योंकि मैं एक ऐसे साधारण परिवार से आता हूं जहां घड़ी पहनना भी लग्जरी माना जाता है...
लेकिन जब मैंने यह देखा तो विचारों के कई आयाम खुले और सोचा मुझे इस बारे में लिखना चाहिए...
दरअसल जिस समय मैं यह विज्ञापन देख रहा था, उसके तुरंत बाद मैंने एक खबर पढ़ी जिसमें दिल्ली में रोहित नाम के एक 19 वर्ष के लड़के को सिर्फ इसलिए मार दिया गया क्योंकि वह एक मुस्लिम लड़की से फोन पर बात करता था... यह "महत्वहीन" खबर बहुत कम अखबारों के कोने में छपी...
इसलिए यह खबर बहुत कम लोगों ने पढ़ी होगी लेकिन अगर इसका उल्टा हो जाता तो लोकतंत्र खतरे में आ जाता....
इस खबर और इस विज्ञापन ने मुझे अपने देश की सामाजिक समरसता की कहानी बहुत अच्छे से समझा दी...
दरअसल हमारे देश के विज्ञापनों, धारावाहिकों और फिल्मों में एक प्रोपेगेंडा चल रहा है...
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