प्रश्न = विदुर नीती किसे कहते हैं और कुछ विदुर नीतियां जो आज के परिवेश में लागू हो सकतीं हैं वो कौन सी हैं ?
महाभारत में विदुर को एक अच्छे व सुलझे हुए पात्र के रूप में देखा जाता है। इनकी तेज बुद्धि और ज्ञान का मुकाबला करना मुश्किल था।
इसलिये वे धृतराष्ट्र के भी सलाहकार बने। ये अलग बात थी कि जिसकी बुद्धि को मोह और लालच ने हर लिया हुआ, उसको कितना भी समझा लो कोई असर नहीं होता।
महाभारत युद्ध से पूर्व धृतराष्ट्र और विदुर के बीच में जो संवाद हुआ था उसे ही विदुर नीति कहते हैं।
विदुर नीति जीवन में बहुत बड़ी नसीहत देती है जैसे व्यक्ति का आचरण कैसा होना चाहिए और एक मनुष्य के तौर पर व्यक्ति की जिम्मेदारी क्या होती है इत्यादि।
उनकी कुछ नीतियां जो आज भी उपयोगी हैं
विदुर नीति के मुताबिक ऐसे लोग जो पद यानी अपने ओहदे के नशे में चूर होकर घंमड में डूब जाते हैं, ऐसे व्यक्ति बहुत जल्द पतन की ओर अग्रसर हो जाते हैं।
जो व्यक्ति दूसरों का अहित करता है उसे जीवन में एक न एक दिन संकटों से गुजरना पड़ता है।
जो ईष्र्या और लालच के चलते दूसरों को नुकसान पहुंचाने लगता है, दूसरों को नुकसान पहुंचाने के चलते वह स्वयं की नजरों में कितना गिर जाता है। इसी से दूसरे लोग उससे किनारा करने लगते हैं क्योंकि समाज में ऐसे व्यक्ति की विश्वसनीयता समाप्त हो जाती है।
विदुर नीति के अुनसार जो व्यक्ति दूसरों का मजाक उड़ाता है एक दिन उसे भी मजाक का पात्र बनना पड़ता है, ऐसे लोग समाज में सम्मान नहीं पाते हैं। ऐसे लोगों के कई शुत्र होते हैं जो समय आने पर नुकसान पहुंचाते हैं।
महात्मा विदुर कहते हैं कि जिस धन को अर्जित करने में मन तथा शरीर को क्लेश होता हो धर्म का उल्लंघन होता हो, शत्रु के सामने सिर झुकाना पड़ता हो, ऐसे धन को प्राप्त करने का विचार त्याग देना ही अच्छा है।
जो विश्वास पात्र नहीं है उस पर कभी भी विश्वास नहीं करना चाहिए और जो विश्वास के योग्य भी है उस पर भी अधिक विश्वास नहीं करना चाहिए। विश्वास करने से जो भय उत्पन्न होता है वह मूल उद्देश्य का विनाश कर देता है
क्षमा को दोष नहीं मानना चाहिए, निश्चय ही क्षमा परम बल है। क्षमा निर्बल मनुष्यों का गुण है और बलवान का क्षमा भूषण है।
ईर्ष्या, दूसरों से घृणा करने वाला, असंतुष्ट, क्रोध करने वाला, शंकालु, और दूसरों पर आश्रित रहने वाला— यह 6 प्रकार के व्यक्ति सदा दुखी रहते हैं।
जो अपना आदर सम्मान होने पर खुशी से फूल नहीं उठता और अनादर होने पर क्रोधित नहीं होता तथा गंगा जी के कुंड के समान जिसका मन अशांत नहीं होता, वह ज्ञानी कहलाता है।
मूढ़ चित वाला नीच व्यक्ति, बिना बुलाए अंदर चला आता है, बिना पूछे ही बोलने लगता है, तथा जो विश्वास करने योग्य नहीं है उन पर विश्वास कर लेता है।
जो बहुत धन, विद्या तथा ऐश्वर्य को पाकर भी इठलाता नहीं है वह पंडित कहलाता है।
मनुष्य अकेला पाप करता है, बहुत से लोग उस का आनंद उठाते हैं, आनंद उठाने वाले तो बच जाते हैं पर पाप करने वाला दोष का भागी होता है।
किसी धनुर्धर वीर के द्वारा छोड़ा हुआ बाण संभव है किसी एक को भी मारे या ना मारे, मगर बुद्धिमान द्वारा प्रयुक्त की हुई बुद्धि, राजा के साथ-साथ संपूर्ण राष्ट्र का विनाश कर सकती है।
केवल धर्म ही परम कल्याणकारक है एकमात्र क्षमा ही शांति का सर्वश्रेष्ठ उपाय है
एक विद्या ही परम संतोष देने वाली है और एक मात्र अहिंसा ही सुख देने वाली है।
विदुर धृतराष्ट्र से कहते हैं राजन, यह दो प्रकार के पुरुष स्वर्ग के भी ऊपर स्थान पाते हैं, शक्तिशाली होने पर भी क्षमा करने वाला और निर्धन होने पर भी दान देने वाला।
पिता, माता, अग्नि, आत्मा और गुरु-
मनुष्य को इन पांच की बड़े जतन से सेवा करनी चाहिए
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प्रश्न = महाभारत काल में जब दो चचेरे भाइयों में व्यक्तिगत लड़ाई थी, तो उसमें सम्पूर्ण योद्धाओं को समिल्लित होने की क्या जरूरत थी ?
पिछले लगभग 100 सालों में दुनिया ने दो विश्व युद्ध देखे। 1945 के आसपास दूसरा विश्व युद्ध खत्म हुआ,
उसके बाद से अब तक अगले विश्व युद्ध की कोई संभावना नही बनी।
युद्ध अपने आप मे कोई लक्ष्य नही होता, पर युद्ध का लक्ष्य है कि बाद में लम्बे समय तक शांति बनी रहनी चाहिए।युद्ध के बाद भी जीतने वाले पक्ष को सदा आशंकित रहना पड़े तो क्या मतलब , इसलिए आखिरी दिन दुर्योधन तालाब में छिप गया
तब भी उसको ढूंढ कर वध किया गया आज हम चाहे जो कहें पर दुर्योधन के पास पाण्डवों से ज्यादा लोगों का समर्थन था,उसकी सेना डेढ़ गुना थी। अधिकतर लोगों को लगता था कि दुर्योधन जीतेगा। राजा अधर्मी और लालची थे इसलिए उन्हें लगता था कि साधु स्वभाव के पांडव जीत भी गए तो अपने सहयोगियों को
प्रश्न = आध्यात्मिकता, क्या एक जन्मजात गुण है? अथवा जीवन में कुछ नहीं पाने के मलाल का परिणाम भी है ?
"भज गोविन्दम भज गोविन्दम गोविन्दम भज मूढ़मते" अरे मेरे मूर्ख मन! गोविंद का भजन कर! गोविंद का भजन कर!
मल मूत्र के छोटे से थैले में पड़ा हुआ असहनीय पीड़ा का दिन-रात अनुभव करता हुआ एक गर्भस्थ शिशु यही तो प्रार्थना करता है उस परब्रह्म परमेश्वर से जिसने उसे फिर से संसार चक्र में अनेको पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, कीट-पतंगों जैसी योनियों में उत्पन्न करते हुए।
अंत मे मनुष्य की योनि दया करके प्रदान की है।
उस गर्भ में जब से पिंड में जीव प्रवेश करता है, तभी से उस जीव को अपने सारे पूर्वजन्मों की स्मृतियाँ होने लगती है।
जाने कितनी बार ही मानव बनाया गया और भोग-विलास, अभिमान-क्रोध और धन के लोभ में अंधा होकर हर जन्म व्यर्थ कर दिया।
प्रश्न - धर्मका नाश हो जानेपर सम्पूर्ण कुलमें पाप भी बहुत फैल जाता है , इस कथनका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर - पाँच हेतु ऐसे हैं , जिनके कारण मनुष्य अधर्मसे बचता है और धर्मको सुरक्षित रखनेमें समर्थ होता है - ईश्वरका भय , शास्त्रका शासन , कुल - मर्यादाओंके टूटनेका डर राज्यका कानून
और शारीरिक तथा आर्थिक अनिष्टकी आशंका । इनमें ईश्वर और शास्त्र सर्वथा सत्य होनेपर भी वे श्रद्धापर निर्भर करते हैं , प्रत्यक्ष हेतु नहीं हैं । राज्यके कानून प्रजाके लिये ही प्रधानतया होते हैं , जिनके हाथों में अधिकार होता है , वे उन्हें प्राय : नहीं मानते ।
शारीरिक तथा आर्थिक अनिष्टकी आशंका अधिकतर व्यक्तिगत रूपमें हुआ करती है । एक कुल- मर्यादा ही ऐसी वस्तु है , जिसका सम्बन्ध सारे कुटुम्बके साथ रहता है । जिस समाज या कुलमें परम्परासे चली आती हुई शुभ और श्रेष्ठ मर्यादाएँ नष्ट हो जाती हैं ,