Description of worship spaces of various deities in Maharishi Agastya's ashrama.
स तत्र ब्रह्मणः स्थानमग्नेः स्थान तथैव च॥३-१२-१७
विष्णोः स्थानं महेन्द्रस्य स्थान चैव विवस्वतः।
सोमस्थानं भगस्थानं स्थानं कौबेरमेव च॥३-१२-१८
धातुर्विधातुः स्थाने च वायोः स्थानं तथैव च।
नागराजस्य च स्थानमनन्तस्य महात्मनः॥३-१२-१९
स्थानम तथैव गायत्र्या वसूनां स्थानमेव च।
स्थानं च पाशहस्तस्य वरुणस्य महात्मनः॥३-१२-२०
कार्तिकेयस्य च स्थानं धर्मस्थानं च पश्यति।३-१२-२१
श्रीराम,माता सीता और श्रीलक्ष्मण जी ने महार्षि अगस्त्य जी के आश्रम में ब्रह्मा,अग्नि,विष्णु,इन्द्र,सूर्य,चन्द्र,भग,कुबेर,धाता,विधाता,वायु,नागरज
शेष,गायत्री,वसु,वरुण,कार्तिकेय,धर्मराज के स्थान व मन्दिर बने हुये देखे॥ ३-१२-१७-२१॥
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स कच्चिद् ब्राह्मणो विद्वान् धर्मनित्यो महाद्युतिः।
इक्ष्वाकूणामुपाध्यायो यथावत् तात पूज्यते॥९॥
तात क्या तुम इक्ष्वाकुकुलके पुरोहित ब्रह्मवेत्ता,विद्वान सदैव धर्म में तत्पर रहनेवाले महातेजस्वी ब्रह्मऋषि वशिष्ठ जी का यथावत पूजन तो करते हो ना।
तात कच्चिद् कौसल्या सुमित्रा च प्रजावती ।
सुखिनी कच्चिदार्या च देवी नन्दति कैकयी॥१०॥
भरत क्या माता कौसल्या और सुमित्रा सुख से हैं,और क्या माता आर्या कैकयी आनन्दित हैं ।
शिवप्रियतमो ज्ञेयो रुद्राक्षः परपावनः।
दर्शनात् स्पर्शनाज्जाप्यात् सर्वपापहरः स्मृतः।।२-५-२।।
रुद्राक्ष शिव को अत्यंत प्रिय है। इसे परम पावन समझना चाहिये। रुद्राक्ष का स्पर्श,दर्शन और जप समस्त पापों का हरण करनेवाला कहा गया है।
वर्णैस्तु तत्फलं धार्यं भुक्तिमुक्तिफलेुसुभिः।
शिवभक्तैर्विशेषेण शिवयोः प्रीतये सदा॥२-५-१३॥
भोग और मोक्ष की इच्छा वाले चारों वर्णों के लोगों और विशेषत शिवभक्तों शिव पार्वती की प्रसन्नताके लिये रुद्राक्ष फलोंको अवश्य धारण करना चाहिये॥
Description of different types of Brahmins.
विभिन्न प्रकार के ब्राह्मणों का वर्णन।
सदाचारयुतो विद्वान् ब्राह्मणो नाम नामत।
वेदाचारयुतो विप्रो ह्येतैरेकैकवान्द्विजः॥ १-१२-२॥
सदाचार का पालन करनेवाला विद्वान ब्राह्मण ही 'ब्राह्मण' नाम धारण करने का अधिकारी है।
वेदोक्त आचार और विद्या से युक्त ब्राह्मण 'विप्र' कहलाता है। सदाचार, वेदाचार और विद्या से युक्त ब्राह्मण 'द्विज' कहलाता है।