#ब्रह्म और #ब्राह्मण संस्कृत भाषा का शब्द है, और #संस्कृत भाषा का लेखनी नागरी लिपि की #वर्णमाला द्वारा ही सम्भव है| और #नागरी लिपि की वर्णमाला का क्रमिक विकास नौवीं सताब्दी बाद बाह्मी लिपि की वग्गमाला से हुआ है| देखे #चित्र 👉1 और #वैदिक संस्कृत या #क्लासिकल संस्कृत भाषा का मिलना
होता है| जैसे- बंदर एक जातिवाचक नाम है और एक बंदर नाम की प्रवृति या गुण मनुष्य मे पाया जाता है| यानी एक बंदर नाम की जाति और दूसरा बंदर नाम का गुण स्वभाव मनुष्य मे| इसलिए बम्ह और ब्रह्म, बाम्हण और ब्राह्मण के लेखनी का अंतर और अर्थ मे अंतर समझने के लिए, अभिलेखो की दुनिया मे चलना
होगा| #चित्र 👉2 भरहुत स्तूप से मिला अभिलेख है| इस पर #बुम्ह_देवो_मानवको लिखा है और ठीक उसके बगल मे #बोद्धि_वृक्ष बना है| इस बात की जानकारी तो सभी को है कि बोद्धि वृक्ष भगवान बुद्ध का सांकेतिक चिन्ह है| फिर भगवान बुद्ध को ही #बुम्ह_देवो कहा जा रहा है, जो मार्गदाता थे| यानी #बम्ह
का अर्थ #श्रेष्ट होता है| दूसरा #चित्र 👉3 जूनागढ अभिलेख का है| जिस पर #बाम्हणसमणा लिखा है| सम्राट असोक के राजगुरु #मोगलीपुत्त_तिस्स थे| उनके जैसे कई भिक्खु अरिय भिक्खु संघ मे राग द्वेष और मूढता को समण करने वाले थे| #सम्राट असोक अपने अभिलेख द्वारा वैसे सभी वरीय भिक्खु को
#बाम्हनसमण (#विद्वान_भिक्खु) कहकर, जनता से अपील कर रहे है कि उनकी बातो को माने और उनका आदर करे| इन सब पुरातात्विक अभिलेखो से स्पस्ट हो जाता है कि सम्यक काल मे जो #श्रेष्ठ और #विद्वान होते थे, उनको ही #बम्ह और #बाम्हण कहा जाता था|
यह तो सामंती काल का परिणाम है कि लोगो को डराकर
अपने बस मे करने हेतु भ्रमवंशी ने काल्पनिक पात्र ब्रह्मा और लोगो को मूर्ख बनाकर जीवकोपार्जन करने हेतु अपने आपको ब्राह्मण का नामकरण कर लिया था/है|
साथियो, बनारस-उत्तरप्रदेश के ताजुद्दीन नाम के इस शख्स को सउदी अरेबिया मे कॉन्ट्रॅक्ट लेबर के तहत काम करने के लिये ले जाया गया था, वहा पर उनका बिमारी के कारण इंतकाल हो गया था, लेकिन उनकी डेड बॉडी को भारत मे लाने मे उनका गरीब परिवार के
लिए नामुमकीन था, जब यह बात राष्ट्रीयमुस्लिममोर्चा को पता चली तो उन्होने सउदी अरेबिया मे रह रहे #बामसेफ_भारतमुक्तिमोर्चा परिवार के लोगो के साथ फोन पर बातचीत की और उन्होने इस डेड बॉडी को सउदी अरेबिया से भारत लाने का पूरा इंतजाम कर दिया, कल उनकी डेड बॉडी बनारस-उत्तरप्रदेश आ गयी है|
BINबुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क
विरासत/विश्व धरोवर बचाओ आंदोलन
बुद्ध जन्मभूमि लुंबिनी और अजंता गुफाओ को विदेशी ब्राह्मणो द्वारा अतिक्रमण करने तथा उसकी गरिमाओ को खराब करने के विरोध मे देशव्यापी आंदोलन की घोषणा👈
मा.वामन मेश्राम (राष्ट्रीय अध्यक्ष, बामसेफ, राष्ट्रीय संरक्षक)
*किसी भी देश समाज मे मानवता उसकी वैचारिक स्वतंत्रता पर निर्भर करता है|*
*जो समाज जितना ज्यादा वैचारिक रूप से स्वतंत्र होगा, वह उतना ही ज्यादा मानववादी होगा|*
*लेकिन भारतीय समाज शिक्षित और उम्रदराज होने के बाद भी मानसिक गुलाम है, काल्पनिक ईश्वरीय अस्तित्व मे बंधा है, सामंती बाबाओ
के चमत्कार मे फंसा है|*
*अब जिस समाज का बाबा ही सामंतवादी हो, तो उसका चेला मानववादी कैसे बन जायेगा?*
*यही सामंतवाद उसके चेले द्वारा गांव कस्बो मे जायेगा, और पूरे तालाब को गंदा कर देगा|*
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हुल जोहार,जयमूलनिवासी साथियो
मे महेशनाग मैने सोसिअल मीडिया से लोगो को जागरूक करने के काम मे विस्तार किया है, फेसबुक - व्हाट्सएप - इंस्टाग्राम - टेलीग्राम - ट्विटर पर व्यक्तिगत एकाउंट से तो लोगो को जागरूक कर ही रहा था और अब इस कडी मे
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गजानन भास्कर मेहंदले और ब.मो.पुरंदरे का एक ही उद्देश्य है और वह है छत्रपति शिवाजी महाराज को ब्राह्मण अनुकूल दिखाना और मराठाओ का ब्राह्मणीकरण करना|*
*जो शाहू महाराज थे उनकी बराबरी कोई नही कर सकता| शाहू महाराज ब्राह्मणो के सामने कभी झुके नही| शाहू महाराज ने दादू कोंडदेव और रामदास
को गुरु नही माना और मेहंदले-पुरंदरे जैसे लोग रामदास, दादू कोंडदेव को जोर जबरदस्ती से शिवाजी महाराज के गुरु के तौर पर थोपना चाहते है और कुछ लोग उनकी झांसे मे आना चाहते है| पिछली बार संभाजी महाराज ने RSS के धर्मवीर शब्द का समर्थन किया था और अब मेहंदले को जाकर मिलना क्या RSS के
इशारे पर है? भाजपा द्वारा राज्यसभा या लोकसभा की सीट हासिल करने के लिए तो नही है? शाहू छत्रपति महाराज ने खुले आम यह बात कही थी कि, "रामदास या दादोजी कोंडदेव यह छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु थे यह गप ब्राह्मणो की है| उस बाबत इतिहास मे कही पर भी ठोस सबूत नही मिलते" (संदर्भ:- भटमान्य