जैसे अंग्रेज़ी पानी और हवा हो अगर नहीं मिली तो तड़प के मर जाएंगे। लेकिन भारत सरकार की नीति ने कुछ ऐसा ही हाल बना रखा है।
जब ये स्पष्ट है कि अंग्रेज़ी की अनिवार्यता भ्रम है और भारत में इसे थोपने से देश के करोड़ों व्यक्तियों को पीछे रखे जा रहा है तब हम एक नई नीति बना सकते हैं।
अंग्रेज़ी भारत के विकास की नहीं भारत के पिछड़ेपन की भाषा है। जब तक इससे मुक्त नहीं हुए तब तक हम पिछड़े ही रहेंगे। सांस्कृतिक दृष्टि से तो है ही आर्थिक दृष्टि से भी।
इसका पोस्टर बनाकर हर जगह चिपका लो। 😌