पुराणों में कई प्रकार की विद्या और शास्त्रों का वर्णन है।ज्योतिष, खगोल, भूगोल,स्थापत्य, शिल्प,अर्थशास्त्र जैसी कई विद्याओं का वर्णन तो हमें ज्ञात ही है, लेकिन आइए कुछ नई विद्याओं में विद्याओं का ज्ञान इस श्रंखला में लेते हैं।
1) अनुलेपन विद्या- मार्कंडेय पुराण में एक विशिष्ट पाद लेप का संकेत है जिसे पैर में लगाने से 1 दिन में 100 योजन की यात्रा करने की शक्ति आ जाती है।
2) स्वेच्छाधारिणी विद्या-मार्कंडेय पुराण के द्वितीय अध्याय में इसका वर्णन है,जैसे ही रामायण में रावण के द्वारा याचक का रूप धारण करना
अथवा मारीच के द्वारा सोने के हिरण का रूप धारण करना,वैसे ही महिषासुर स्वेच्छा से सिंह घोड़े मतंग आदि कई पशु पक्षियों का रूप धारण किया, पद्म पुराण में भी इसका वर्णन किया है।
3) अस्त्रग्राम ह्रदय विद्या- मार्कंडेय पुराण में वर्णित वर्णित इस विद्या में व्यक्ति को शत्रु के शस्त्रों और अन्य युद्ध संबंधी राशियों का पता चल जाता है, और वह विजयी बन जाता है। रूद्र, स्वयंभू मनु, वशिष्ठ, चित्र,आयुध इसी विद्या के जनक माने जाते हैं।
4) सर्वभूत विद्या- इस विद्या के प्रभाव से मनुष्य सभी प्रकार के अमानवीय जीव जंतुओं की ध्वनि का अर्थ समझ लेता है। मत्स्य पुराण में इसका वर्णन है,।आज भी कई व्यक्ति बंदरों की या सियार की या अन्य जीव-जंतुओं की बोली समझ लेते हैं, पद्म पुराण में सृष्टि खंड में वर्णन है।
5) पद्मिनी- इस विद्या के प्रभाव से निधियों को वश में किया जाता है।इस के ज्ञाता को कभी धन की कमी नहीं आती, मार्कंडेय पुराण के 64वें अध्याय में राजा स्वरचित को कलावती से इस विद्या का ज्ञान मिला था।
6)जालंधर विद्या-वाल्मीकि ने लव को विद्या थी।पद्मपुराण में उल्लेख है संभवत अंतर्ध्यान होने से इसका संबंध है।
7)विद्यागोपाल मंत्र-भगवान शंकर ने कश्यप मुनि के पुत्र को मंत्र दिया था।पाताल खंड में इसका वर्णन है इसके प्रभाव में 21 अक्षर होते हैं, साधक को वाचक सिद्धि प्राप्त होती है।
8)उल्लाविधान विद्या- इस विद्या के प्रभाव से टेढ़ी वस्तु सीधी की जा सकती है। श्री कृष्ण ने इसे विद्या के बल से मथुरा की कुबरी को सरल सीधी और स्वस्थ बना दिया था, विष्णु पुराण में इसका उल्लेख है।
9)देवहूति विद्या -दुर्वासा ऋषि द्वारा कुंती को दी गई इस विद्या से देवता को बुलाने पर प्रत्यक्ष प्रकट होना पड़ता था। पांडवों के जन्म का इसी विद्या से संबंध है।
10)युवकरण विद्या-स्पर्श मात्र से ही वस्तुओं का युवक बनाने की विद्या, राजा शांतनु स्पर्श मात्र से ही बूढ़ों को नवयुवक
बना देते थे भागवत पुराण में इसका उल्लेख है।
11) भद्रवाहनिका विद्या- युद्ध में शत्रुओं को परास्त करने के लिए यह विद्या अचूक मानी जाती थी, लिंग पुराण में इसका उल्लेख है।
इसी प्रकार से सिंहविद्या, नरसिंह विद्या,गांधारी विद्या, मोहनी तथा अंतर्ध्यान विद्या, वैष्णवी विद्या, नारायण कवच, त्रैलोक्य विजय विद्या आदि कई विद्याओं का उल्लेख पुराणों में अलग-अलग दिया गया है। गंभीर अध्ययन से यथासंभव ऐसी कई विचित्र विद्याओं का अध्ययन और अनुसंधान किया जा सकता है।
वेद-पुराण,अन्य धाराओं में परमात्मा-जीवात्मा और उसके संबंध पर कई प्रकार की व्याख्या की है.दोनों एक है,आत्मा परमात्मा काअंश है,आत्मा पूर्व जन्म का ही प्रवाह है आदि
लेकिन वही पांच तत्व है,परमात्मा एक ही है,तो अनुभव-संवेदना अलग अलग क्यों ?
क्यों किसी एक ही परिस्तिथि और पदार्थ को हर जीवन अलग गुण में अनुभव करता है?
सामान्यतःएक शरीर और उसमे एक आत्मा की संज्ञा देते है लेकिन ये एक आत्मा क्या पूर्णभूत है या कई अवयवों का संकलन.
इसी विषय पर संक्षिप्त विवेचन
पुराणों के अनुसार वस्तुतः आत्मा एक ही है परन्तु उपाधि और अवस्था
.की विभिन्नता हेतु से प्रथमतः तीन मुख्य भेद है-
क्षेत्रज्ञ, अंतरात्मा ,भूतात्मा
१) क्षेत्रज्ञ-कर्म और प्रेरणा देने वाला अंश(प्रेरित करने वाला )
२)अंतरात्मा-विभिन्न प्रकार के सुख और दुखो को अनुभव करवाने वाला अंश
३)भूतात्मा-आत्मा का अंश जो कर्म करता है
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द्रौपदी क्या वास्तव में पांच अलग पतियों की पत्नी थी?
द्रौपदी और उसके पांच पांडव पति होने को लेकर कथा और वैसे ही विकृत मानसिकता की टिपण्णी सामान्य हो चुकी है.
महाभारत/पुराणों में पूर्व जन्म में पांच बार पति कहकर वरऔर इसी हेतु से पांच पति मिले, ऐसी भी कथा सामान्य मिलेगी
सर्वज्ञात है की कुंती को दुर्वासा ने सेवा से प्रसन्न होकर किसी भी देवता का स्मरण करने पर वरदान दिया था. फिर पाण्डु को श्राप मिलने से कुंती ने क्रमशः धर्मराज,वायु,इंद्र,और माद्री ने अश्विनी कुमारो को स्मरण करके युधिष्ठिर, भीमसेन, अर्जुन और नकुल सहदेव के रूप में पुत्र प्राप्ति की.
इसी विषय पर एक दृष्टान्त मार्कण्डेय पुराण के पंचम अध्याय में मिलता है जो पुनः विषय के एक गूढ़ स्तर पर जाकर इसका वर्णन करता है. जिसके अनुसार पांच पांडव वस्तुतः इंद्र के ही रूप है
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दान
दान के बारे में जानने से पूर्व दान की महिमा
राजा बलि, वामन अवतार से पूर्व की कथा उससे अधिक रोचक और ज्ञानवर्धक है की कैसे दान की महिमा के कारण राजा बलि को हरिकृपा मिली.
कथा और व्याख्या स्कन्द पुराण से
प्रथम : राजा बलि के पूर्व जन्म की कथा
कई बार ये विषय आता है की राजा इंद्र का सिंहासन क्यों डोलता है या वो इन्द्रासन को लेकर काफी भयभीत से रहते है. पूर्व जन्मो में राजा इंद्र ने सौ अश्वमेध यज्ञ करके इन्द्रासन पाया था, लेकिन समय रहते भोग लोलुपता और और कृपणता आ गयी. दान दक्षिणा बंद हो गयी और इसी कारण अन्य विकार आने लगे.
एक जुआरी था,वो नित्य ईश और ब्राह्मण निंदा करता,महापापी, कामासक्त! एक बार जुए में बहुत धन जीता और वैश्या के यहाँ जाने को सोचा. रास्ते में उसने पान का बीड़ा, फूल, गंध आदि लेकर जाने लगा. जोर से ठोकर लगने के कारण नीचे गिर गया और मूर्छा आ गयी.होश आया तो शिवलिंग दिखा कुछ सद्बुद्धि आयी
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पिछली कुछ श्रृंखलाओं को आपने सराहा इसका हृदय से आभार।
इसी विचार में एक और, सामान्य बात लेकिन विस्तृत वर्णन|
श्री हनुमान जी को अष्ट सिद्धि नौ निधि का दाता कहा,
प्रायः सामान्य पूजा या अन्य श्लोक में भी आता है
क्या है ये अष्ट सिद्धि और कैसे श्री हनुमान ने इनका उपयोग किया
१- अणिमा: अणु के समान हो जाना ( यानी बहुत ही छोटे या अदृश्य सामान)
जब हनुमान जी ने लंका में प्रवेश किया तब -
'मसक समान रूप कपि धरी'
यहाँ मसक समान (मछर जैसा) ना की मसक का।
जब अशोकवन में छिप कर प्रतीक्षा करते है -
'तरु पल्लव् महुँ रहा लुकाई'
(पेड़ के पत्ते के पीछे छिपे)
२ - लघिमा- तुरंत बहुत छोटे हो जाना
जब सुरसा को युक्ति से बहुत बड़ा शरीर बनाने के बाद बहुत ही छोटा बनाया -
'अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा'
जब लंका में विचरण किया -
'अति लघु रूप धरों निसि, नगर करो पइसार '
श्री हनुमानजी के द्वारा माँ सीता की खोज के लिए समुद्र लांघने की कथा में तीन विपत्तियां मार्ग में मिलती है- १- सुरसा २-सिंहिका ३- लंकिनी
और तीनों को हनुमान जी अलग युक्ति से व्यवहारित करते है
प्रथम दृष्टि से सामान्य सी कहानी लेकिन रोचक संयोग
प्रथम सुरसा जिन्हें देवता हनुमानजी की परीक्षा हेतु भेजते है - उन्हें माता कहकर संबोधित करते है, नमन करते है और बुद्धि से (शरीर को बढ़ा कर युक्ति से लघु रूप धारण और मुंह मे जाकर पुनः बाहर आना) जीतते है
द्वितीय सिंहिका जो आकाश में उड़ने वाले की परछाई पकड़कर खाती है उसे तुरंत मारकर
और तीसरी लंकिनी - जो लंका की प्रहरी है उसे हल्का सा मुक्का मारकर अपराधबोध करवाते है और फिर आगे लघु रूप में लंका में प्रवेश करते है ।लेकिन ये तीनो राक्षसियाँ क्या दर्शाती है
सुरसा- सतगुण (देवो से भेजी हुई) - बुद्धि से जीती जा सकती है, ज्ञान से, बल से नहीं । विनम्रता से ।