📍तीन कृषी कानुनो का स्वागत लेकीन...
#आवश्यक_वस्तू_कानून से कुछ कृषी उपज को निकाल देना, मार्केट कमिटी के बहर भी कृषी उपज की खरीद और बिक्री की छूट देना, या कंपनियो को किसानो से करार (#कॉन्ट्रॅक्ट) करने की पाबंदी हटाना, इन तिनो कानुनो मे आपत्तीजनक क्या है? मुझे आपत्ती नजर नही आती।
हां, कुछ कमजोरीया जरूर हैं। जैसे आवश्यक वस्तू कानून से मात्र खेतीमाल हटाना काफी नही है। यह कानून जड से उखाड फेंकना चाहीये। बाजार खुला करने की बात दुरुस्त है। करार करणे की कानून में प्रशासकीय न्याय व्यवस्था के साथ किसान ट्रिब्युनल की बात जोडी जा सकती है।
अर्थात निर्धारित दिनो मे फैसला सुनाने के निर्बंध के साथ इस ट्रिब्युनल को काम करना होगा।
जो हुवा उसे विरोध करने की जरुरत नही है। इन कानुनो से जो माहोल बनेगा उसका इस्तेमाल कर के #सिलिंग, #आवश्यक_वस्तू तथा #जमीन_अधिग्रहण जैसे #किसान_विरोधी_कानून रद्द कराने की मोहीम
और तेज करने की जरूरत है।
आओ, हम सभी इस आवाज को और बुलंद करें।
●किसानो के गले का फंदा बने
◆खेत जमीन अधिकतम मर्यादा कानून अर्थात सिलिंग कानून
◆आवश्यक वस्तू अधिनियम
◆जमीन अधिग्रहण कानून, जैसे सभी किसान विरोधी कानून रद्द करो
●अमर हबीब
#antifarmerlaws @threadreaderapp unroll

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29 Sep
हुरळली मेंढी लागली लांडग्याच्या पाठीमागे, असा एक वाक्प्रचार प्रचलित आहे. शेतीविषयी मंजूर केलेल्या कायद्या नंतर उद्भवलेली परीस्थिती आणि उडवला जाणारा कोलाहल पहाता हा वक्प्रचार आठवल्या शिवाय रहात नाही.
सत्ताधारी पक्ष भाजपा, विरोधी पक्ष कॉंग्रेस आणि त्यांनी पोसलेली पिलावळ, आणि
बनावट शेतकरी संघटनांच्या नावाने काही अनभ्यस्त शेतकरी नेते मंडळी यांची अवस्था त्या हुरळलेल्या मेंढीसारखी झाली आहे.
शेतकऱ्यांना स्वातंत्र्य देण्याच्या नावाने सरकारने जी बिले मंजूर केली आहेत ती खरेच सत्ताधारी म्हणतो त्याप्रमाणे शेतकऱ्यांना स्वतंत्र्य देणारी आहेत का ?
की विरोधी पक्ष म्हणतो त्याप्रमाणे शेतकरी आणि त्यांच्या जमीनी भांडवलदाराच्या घशात घालण्याचा हा डाव आहे ?
बनावट शेतकरी संघटनांच्या नावाखाली काही नेते मंडळी ज्याकडे इशारा करतात त्या हमीभावाचा मंजूर झालेल्या बिलाशी काही संबंध आहे का ?
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22 Sep
१. नए अध्यादेश में एमएसपी का कहीं जिक्र नहीं है.
यह प्रश्न उठाने वाले यह शंका जाहिर कर रहे हैं कि व्यापारी किसानों से मनमाने कीमत पर उनके घर जाकर उनका माल खरीद लेंगे. ऐसा कहते हुए वे मानो यह आभास दे रहे हैं कि कृषि उत्पन्न बाजार समिति में होने वाले सौदों में पहले #Farmersbill2020 Image
एमएसपी की कोई गारंटी हुआ करती थी. सच्चाई यह है के देश के किसी भी राज्य का कोई भी कृषि उत्पन्न बाजार समिति कानून किसी व्यापारी को एमएसपी से नीचे माल खरीदने के आरोप में कोई सजा नहीं देता है और ना ही किसानों को ऐसी कोई गारंटी पहले उपलब्ध थी. #APMCAct
केंद्र की सरकार एमएसपी पर अपनी एजेंसी के मार्फत कृषि उपज की खरीदी करती रही है. केन्द्र सरकार पहले ही जाहिर कर चुकी है कि उसकी खरीदी पहले की ही तरह शुरू रहनेवाली है.

#antifarmerlaws #FarmerBill #NoMSP
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21 Sep
"बाजार समिती नियमन मुक्ती विधेयक"
1960-70 च्या काळामध्ये शेतकऱ्यांना शेतमाल विकण्यासाठी एपीएमसी मार्केट तयार करण्यात आली. या नवीन विधेयकाने शेतकऱ्याला कृषिमाल विक्री एपीएमसी मध्ये करण्याची बंधन राहणार नाही. याने त्याच्या पुढील नवीन पर्याय उपलब्ध झाला आहे.
तो एपीएमसी मार्केटमध्ये ही विकू शकतो किंवा त्याला वाटत असेल तर तो मार्केटच्या बाहेरही विकू शकतो म्हणजे या कायद्याने एपीएमसी मार्केट संपवले नाहीत तर शेतकऱ्यांपुढे एक नवा पर्याय खुला केला आहे. याने शेतकऱ्याचा काय फायदा होईल तर शेतमाल विकत घेण्यामध्ये जी एक मक्तेदारी निर्माण झालेली
आहे त्याला आळा बसेल. कोणतीही पॅन कार्ड धारक व्यक्ती किंवा संस्था शेतकऱ्यांचा शेतमाल विकत घेऊ शकते म्हणजे यामध्ये असणारे अडते मध्यस्थ यांना बाजूला सारून पारदर्शकपणे शेतकऱ्याला आपला शेतमाल विक्री करण्याचे स्वातंत्र्य हे विधेयक देते. यावर आक्षेप असे आहेत की हे एपीएमसी मार्केट कमिटी
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10 Aug
bit.ly/33HmHS9
@AmaHabib विस्तार से बता रहें है किसान विरोधी कानून

हां, हमे चाहिए आजादी का सूरज

नब्बे के दशक में जब मुक्तिकरण की नीति अपनाई गई थी, कम से कम तब तो कृषि पर लगे सरकारी प्रतिबंध हटा दिए जाने चाहिए थे, दुर्भाग्य से पिछले तीस वर्षों में किसी भी पार्टी की
सरकार ने ऐसा नहीं किया। इस दौर में लाखों किसानों ने आत्महत्या की। मोदी सरकार को सत्ता में आए छह साल हो चुके हैं। कभी किसान विरोधी कानून याद नहीं आये। अब, जब कोरोना संकट आया है, सरकार की तिजोरी संकट में हैं,
तब जा कर सरकार को मजबुरी में कुछ कदम उठाने पडे है। सरकार ने अनिच्छा से, अनमने भाव से मजबुरी में, कुछ कानूनों को हात लगाया हैं।
दरवाजा कुछ खुलने को हैं। (अभी तक पूरी तरह से नहीं खोला गया) कि तुरंत तथाकथित वामपंथी दंगा करने लगे। डर का माहौल बनाया जा रहा है कि 'गब्बरसिंह आ जायेगा'।
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