क्या कोई जानता है ? ऑस्ट्रेलियायी तथाकथित किसान नवनीत को जॉर्ज फ्लाईड क्यू बनने नही दिया गया।
वे सब तडप रहे " सरकार ने गोली क्यों नहीं चलाई?
25 मई 2020, जॉर्ज फ्लायड, नशीली दवाएं रखने के कारण, मिनियापोलिस में अरेस्ट होते वक्त पुलिस के हाथों मर जाता है
याद है ? फिर अमेरिका में दंगे शुरू हो गये। पुलिस और प्रशासन अचानक गोरे, व्हाइट हो गये, और प्रशासन की एक गलती गोरों का
काले लोगों के ऊपर ऐतिहासिक अत्याचार बन गई। एक प्रशासनिक दुर्घटना को, नस्ली हिंसा बना दिया गया।
कोरोना से जूझ रहे ट्रंप के ताबूत में ये मजबूत आखरी कील साबित हुई।
जॉर्ज को मरने के बाद 15 दिन यानी 9 जून को दफनाया गया।तबतक जम के लाश की राजनीती की गयी।
राकेश टिकैत फ्रस्ट्रेशन में क्या कह गया, गौर करने की बात है। " सरकार ने गोली क्यों नहीं चलाई? " ये शायद दुनिया का पहला आंदोलनकारी नेता है, जो एकदम खुलेआम अपने साथियों को मारने की वकालत कर रहा है।
किसी की मौत हो इसकी हड़बड़ी कितनी थी, ये राजदीप सरदेसाई के उस नौकरी खाऊ ट्वीट ने
दर्शा दिया, जिसमें अपने ही ट्रॅक्टर-नाच से दुर्घटनाग्रस्त होकर मरे बिचौलिए को पुलिस की गोली से मरा किसान बता दिया गया। एक वरिष्ठ पत्रकार, इतना बड़ा झूठ बोलने का रिस्क क्यों ले रहा था?
और फिर आ गई "रिहाना", जिसके ट्वीट पर नाचे अपने मैगसैसे खबिसकुमार और कई लिब्रांडू कुत्रकार
वो तो भला हो ग्रेटा थुकबर्गर का। 18 साल की ये लड़की, जो 15 बरस की उम्र से वामपंथियो के "झंड" हुए चेहरे का मुखौटा बनी है, थोड़ी मंदबुद्धि है, क्योंकि भारत के 18 साल के बच्चे इससे ज्यादा टेक्नोसेवी जरुर होते हैं। ग्रेटा धर्नबर्ग के ट्वीट ने गलती से ये उजागर कर दिया कि ये
वामी ईस्लामी खालिस्तानी गिरोह का आंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र था, जो साल भर पहले ही डिजाइन कर लिया गया था।
वे यहाँ भारत में भी एक जॉर्ज फ्लाईड ढूंढ रहे हैं, 2019 से ही, चाहे वो CAA हो या कृषि बिल का विरोध।
अब ये भी समझ में आ रहा है कि एकदम फ्रंट फुट पर खेल रहे अमित शाह, अचानक बैकफुट
पर क्यों खेलने लगे?
क्योंकि खुफिया एजेंसियों को इस षडयंत्र की खबर शुरू से ही होगी, और उन्हें इन वामीस्लामियों तथा खालिस्तानियों को कोई जॉर्ज फ्लाईड नहीं देना है।
पर एक सवाल फिर भी रह जाता है। अभी भारत में कोई चुनाव तो है नहीं कि वे ट्रंप की तरह मोदीजी की गद्दी कुतर जाएंगे।
फिर ये आंतरराष्ट्रीय नौटंकी क्यों चल रही है?
इसका उत्तर मोदीजी के इस दूसरे कार्यकाल में है। एक तो वामीस्लामियों को ये शायद अंदाजा नहीं था कि मोदी और ताकतवर होकर उभरेंगे, और उभरकर अपना राष्ट्रवादी चेहरा और मजबूती से सामने रखेंगे।
स्ट्रेटजी तो यही लग रही है कि छोटी छोटी चीजों पर भी इतना बवाल मचाओ, कि बड़े परिवर्तन की हिम्मत ही न हो। वामियों का यही एजेंडा है।
और स्लामी ? उन्हें एक कमजोर राष्ट्रवाद तबतक चाहिए, जबतक "हिंद का गजवा" न हो।
चाहे हम जितना चिल्लाएं, मोदी, इन वामीस्लामियों को एक जॉर्ज फ्लाईड नहीं देगा। वो इन देशतोड़ू प्रदर्शनों को उनकी स्वाभाविक मौत ही मारेगा। बचे हम और आप,तो हमें इन बिचौलियों, आतंकियों, देशद्रोहियों को झेलना भी है, और मोदी के पीछे एकजुट खड़े भी रहना है।
*कठिन समय है ये*लेकिन सामने मोदी है।
ये लिब्रांडू लोगोंको लग रहा है ट्रम्प को हटाया
अभि मोदी को कुछ करने देंगे ही नही तो अगले इलेक्शन मे कैसे जितेगा।
वो ये बात भूल रहे है के 1 मोह माया से परे गया और भारतमाता का सच्चा सपूत सामने है
और सत्य से जितना नामुमकिन होता है
सत्य की जीत
का वक्त आ गया है। लेकिन ये भी सच है के हजार साल ये सत्य सनातन परेशान हुआ है।
अब सत्य की जीत का वक्त आया है
जय हिंद
वंदे मातरम
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टॉपिक है वामपंथी हिंदू और वामपंथी इस्लामी विचारधारा और उनकी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता
1 हिंदू वामपंथी और 1 मुस्लिम वामपंथी में क्या फर्क है? देखे
कुछ दिन पहले म जब 1 लेखक उदय शंकर जिन्होंने भारत में अवार्ड वापसी गैंग की शुरुआत की थी उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए ₹5001 का
डोनेशन दिया और डोनेशन की रसीद को अपने फेसबुक वॉल पर लगाकर कहा कि मैंने आज मंदिर निर्माण के लिए अपना डोनेशन दिया है
कमेंट देखा तो तमाम वामपंथी हिंदू उन्हें कोस रहे यहां तक कि कुत्रकार अजीत अंजुम की लेखिका पत्नी भी उन्हें खूब बुरा भला लिख रही है और राम मंदिर को खूनी मंदिर कह
रही है।
अब कुछ मुस्लिम वामपंथियों पर आते हैं
सज्जाद जहीर कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापकों में से एक थे जो बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए और उन्होंने पाकिस्तान में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ पाकिस्तान का गठन किया था
बंटवारे के पहले मुंबई में जब कम्युनिस्ट पार्टी का सम्मेलन हो रहा था
43 साल पुराना खूनी राजनीति का वही खेल आज फिर दोहराया जा रहा है...
1977 में देश की जनता कांग्रेस को सत्ता से बुरी तरह बेदखल कर दो तिहाई बहुमत के साथ जनता पार्टी को सत्ता सौंप चुकी थी। पंजाब में भी जनता पार्टी और अकाली दल के गठबंधन ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर
दिया था और कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री रहे ग्यानी झैलसिंह द्वारा किये गए भयंकर भ्रष्टाचार की जांच के लिए गुरदयाल सिंह जांच आयोग बनाया था। इस आयोग की जांच की शुरूआत के साथ ही झैलसिंह का जेल जाना तय होने लगा था। इन परिस्थितियों से निजाद पाने के लिए
कांग्रेस ने एक योजना तैयार की थी। इस योजना के तहत संजय गांधी और झैलसिंह ने पंजाब से सिक्ख समुदाय के दो धार्मिक नेताओं को दिल्ली बुलाकर बात की थी। संजय गांधी और झैलसिंह की जोड़ी को उन दोनों में से 1 काम का नहीं लगा था क्योंकि वो उतना उग्र आक्रमक नहीं था
अब फिर साबित हुआ - ये किसान आंदोलन नहीं है
इसे कहते हैं राहुल का लड़कियों के पीछे छुपना -
रफाल खरीद पर जब राहुल गाँधी पी एम् मोदी
को चोर कह रहा था, तब लोकसभा में निर्मला
सीतारमण ने 8 जनवरी, 2019 को खरीद के
वित्तीय प्रावधान समझाए थे -
राहुल गाँधी ने तब आरोप लगाया था कि 56 इंच
की छाती होने का दावा करने वाला प्रधान मंत्री
एक महिला के पीछे छुप गया और उसे कहा कि
मुझे बचा लो मगर वो मोदी को बचा नहीं सकी -
आज 26 जनवरी से 10 दिन में दूसरी बार
साबित हुआ कि ये कोई किसान आंदोलन
नहीं चल रहा बल्कि
आंतरराष्ट्रीय स्तर का
षड़यंत्र चल रहा है मोदी के खिलाफ मगर
ये भेद खुलने में देर नहीं लग रही --
26 जनवरी की हिंसा ने साबित किया कि
ये किसान आंदोलन नहीं है -
अब कल एक अंतर्राष्ट्रीय साजिश का
पर्दाफाश हुआ जब पता चला कि राहुल
गाँधी एक नहीं 3 लड़कियों के पीछे छुपा
मला हे अजिबात पटत नाही
मला जे पटते आणि योग्य वाटते ते सर्वथैव सामाजिक दृष्टीने योग्य आहे
कारण ज्या पुरुषाला स्त्री मध्ये फक्त मादी च दिसते
अश्या पुरुषासमोर जर एखादी अर्धनग्न सो कॉल्ड पुढारलेली मुलगी अथवा स्त्री आली
तर त्याच्या भावना चेकाळून जाऊन एखादी असहाय मुलगी शिकार
होते .
ह्याला दोषी कोण?
ती मुलगी ?तो पुरुष?की दोघेही?
मी कोणाचेच समर्थन करणार नाही कारण दोघेही चूकच आहेत
तोकडे कपडे घालून बीभत्स दर्शन घडवणे हे कितपत योग्य हे त्या त्या मुलीने ठरवावे
त्या त्या मुलीने ठरवावे की आपल्या ह्या दर्शनाने आपण सैतान जागा करतोय
आता कोणीतरी तकलादू समर्थन
करेल त्याची तर मला कीव येईल
तो किंवा ती व्यक्ती असेही म्हणेल की लहान मुलींवर (4 ते 5 वर्षे वय)जे रेप होतात ते रेप असे कपडे बघितल्याने होतात काय?
प्रश्न साधाच आहे हा पण ह्या प्रश्नातूनच बीभत्सपणाची पाठराखण करतानाच आपल्याला भारतीय संस्कृतीचा अभिमान आहे ह्याची जाणीव करून द्यायचीय
शेतकऱ्यांना कायम सतावणारी बाब म्हणजे शिंपणे
हे जर शिंपणे जर शेतकरी वेळ काढून करू लागला तर शेतात पाणी मिळून चांगले पीक येते
मी स्वतः नोकरीत ही आहे आणि मसाला शेतकरी आहे
मी शेतावर सागवान लागवड करून त्यावर मिरी चढवली आहे आणि बाकी इतरत्र मोकळ्या जागेत व चौफुल्यावर (सावली येते)वेलची,
जायफळ ,लवंग,दालचिनी अशी लागवड केली आहे
व जो काही खराबा होता तिथे वेगवेगळ्या प्रकारचा आंबा व काजू लावला आहे
प्लॉट घेतला तेव्हाच तिथे आपोआप रुजून आलेली कोकमाची झाडे तब्बल 11 होती त्यामुळे कोकमाचा प्रश्न उरलाच नव्हता
राहता राहिला लिंबू व सीताफळ आणि जाम (आम्ही विलायती काजू म्हणतो)
अशी निवडक झाडे कोपरे बघून लावली
सोलर पंप (स्वखर्चाने) बसवला प्लॉट ला लागूनच बारमाही जिवंत ओढा (40 फूट रुंद,3 फूट खोलआणि पावसात रौद्रभीषण) असल्याने विहिरीचा विषय नव्हता
रीतसर सरकारी कागद रंगवून पाणीपट्टी भरून सोलर बसवला
साग थोडा उंचीवर आल्यावर त्यावर मिरी चढवली
आणि नंतर तारांबळ
हर परिवार से 1 आदमी किसान आंदोलन में चलो’ – पंजाब की पंचायतों का तुगल की फरमान, नहीं तो ₹2100 जुर्माना*
दिल्ली और आस-पास के कई राज्यों में चल रहे ‘किसान आंदोलन’ के रविवार (जनवरी 31, 2021) को 4 महीने पूरे हो गए हैं। इसके बावजूद इसमें और ईंधन झोंकने की कवायद जारी है।
पंजाब में अब पंचायतों ने फरमान जारी करना शुरू कर दिया है। कई पंचायतें अपने-अपने गाँव के प्रत्येक परिवारों को कम से कम एक सदस्य आंदोलन में दिल्ली भेजने का फरमान सुना रही है। पंजाब में ऐसी कई पंचायतें हैं।
सबसे बड़ी बात तो ये है कि ऐसे फरमान पंचायतों के आधिकारिक लेटर हेड पर
जारी किए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि जिस परिवार का कोई सदस्य दिल्ली में चल रहे ‘किसान आंदोलन’ में नहीं गया तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। साथ ही जुर्माना भी भरना पड़ेगा। इससे पहले किसान एक्टिविस्ट्स को टास्क सौंपा गया था कि वो भीड़ जुटाएँ और लोगों को दिल्ली लेकर जाएँ। ”