43 साल पुराना खूनी राजनीति का वही खेल आज फिर दोहराया जा रहा है...
1977 में देश की जनता कांग्रेस को सत्ता से बुरी तरह बेदखल कर दो तिहाई बहुमत के साथ जनता पार्टी को सत्ता सौंप चुकी थी। पंजाब में भी जनता पार्टी और अकाली दल के गठबंधन ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर
दिया था और कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री रहे ग्यानी झैलसिंह द्वारा किये गए भयंकर भ्रष्टाचार की जांच के लिए गुरदयाल सिंह जांच आयोग बनाया था। इस आयोग की जांच की शुरूआत के साथ ही झैलसिंह का जेल जाना तय होने लगा था। इन परिस्थितियों से निजाद पाने के लिए
कांग्रेस ने एक योजना तैयार की थी। इस योजना के तहत संजय गांधी और झैलसिंह ने पंजाब से सिक्ख समुदाय के दो धार्मिक नेताओं को दिल्ली बुलाकर बात की थी। संजय गांधी और झैलसिंह की जोड़ी को उन दोनों में से 1 काम का नहीं लगा था क्योंकि वो उतना उग्र आक्रमक नहीं था
जिसकी अपेक्षा संजय गांधी और झैलसिंह की जोड़ी कर रही थी। लेकिन दूसरा धार्मिक नेता उनकी उम्मीद से भी बहुत ज्यादा उग्र आक्रामक और निकला था। अंततः संजय गांधी और झैलसिंह की जोड़ी ने उस उग्र आक्रमक को अपने प्लान की कमान सौंप दी थी। अब यह भी जान लीजिए कि पंजाब से आए
उस उग्र आक्रामक का नाम था जरनैलसिंह भिंडरावाले। उसने कांग्रेस की धुन पर पंजाब में धार्मिक आधार पर खून खराबे का नंगा नाच शुरू कर दिया था। संजय गांधी झैलसिंह की जोड़ी के साथ हुई भिंडरावाले की उस मुलाकात में जिस भयानक हिँसक खूनी राजनीतिक षड़यंत्र की जो चिंगारी
सुलगाई गई थी उसे जरनैल सिंह भिंडरावाले-कांग्रेस गठबंधन ने अगले 3-4 वर्षों में बड़े जतन से देशव्यापी भयानक आतंकवाद की आग का रूप दे दिया था। कांग्रेसी फौज शायद यह सोचती है कि लोग सम्भवतः भूल गए होंगे कि उस दौर में भिंडरावाले को धन देने की बात संजय गांधी ने स्वयं स्वीकारी थी।
भिंडरावाले के आतंक के दम पर 1980 हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को पंजाब में भारी जीत मिली थी। लोकसभा के लिए हुए उस चुनाव में भिंडरावाले पंजाब में कांग्रेस के चुनावी प्रचार के लिए तूफानी दौरे कर के कांग्रेस के लिए वोट मांग रहा था। केन्द्र मे सरकार बनते ही कांग्रेस ने पंजाब में
अकाली व जनता पार्टी की सरकार भंग कर के राष्ट्रपति शासन लगा दिया था और बाद में चुनाव करा के वहां जीत हासिल की थी। पंजाब में कांग्रेस की उस चुनावी जीत में भी जरनैल सिंह भिंडरावाले ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके परिणामस्वरूप पुरस्कार के रूप में उसे तत्कालीन कांग्रेसी सरकार
का बेलगाम बेशर्म संरक्षण समर्थन किस प्रकार मिला था इसे इन दो तथ्यों से समझ लीजिए। अकाली दल को राजनीतिक धार्मिक चुनौती देने के लिए भिंडरावाले ने 'दल खालसा' नाम के अपने आतंकी गुट की जब स्थापना की थी उस समय चंडीगढ़ के पंचतारांकित होटल एरोमा में हुई उसकी प्रेस कॉन्फ्रेंस के खर्च
का भुगतान तत्कालीन कांग्रेसी सरकार के गृहमंत्री झैलसिंह ने बाकायदा अपने चेक से किया था।
दूसरा तथ्य यह है कि 9 सितम्बर 1981 को जनरैल सिंह भिंडरावाले ने पंजाब नहीं बल्कि देश के प्रख्यात पत्रकार और पंजाब केसरी अखबार के संस्थापक सम्पादक लाला जगत नारायण की निर्मम हत्या
दिन दहाड़े कर दी थी। लेकिन इस हत्याकांड में हुई उसकी गिरफ्तारी के बाद केन्द्र और पंजाब की तत्कालीन कांग्रेसी सरकार के हस्तक्षेप के कारण उसको थाने से ही जमानत पर छोड़ दिया गया था। अपनी रिहाई पर वो अपने सैकड़ों हथियारबंद गुर्गों के जुलूस के साथ किसी विजेता की तरह थाने से
बाहर निकला था और सड़कों पर हवाई फायर करती राइफलों और बन्दूकों के आतंकी धमाकों की दहशत फैलाते हुए अपने डेरे पर चला गया था। भिंडरावाले को तत्कालीन कांग्रेस सरकार के संरक्षण समर्थन का एक अन्य उदाहरण मार्च 1982 में तब सामने आया था जब बाळासाहेब ठाकरे की चुनौती के
जवाब में अपने हथियारबंद गुर्गों का 500 कारों मोटरसाइकिलों का काफिला लेकर भिंडरावाले मुंबई पहुंच गया था। मुंबई में वो उस दादर इलाके के गुरुद्वारे में 5 दिनों तक डेरा डाले रहा था जिस दादर इलाखा बाळासाहेब ठाकरे का गढ था। उन 5 दिनों के दौरान महाराष्ट्र पुलिस का भारी भरकम सुरक्षा
घेरा भिंडरावाले के काफिले के साथ लगातार बना रहा था। बताने की जरूरत नहीं कि उस समय महाराष्ट्र में भी कांग्रेस की सरकार थी। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने देश और महाराष्ट्र की कांग्रेसी सरकारों से बार बार मांग की थी कि भिंडरावाले को मुंबई जाने से रोका जाए।
लेकिन उनकी मांग को अनसुना कर दिया गया था
संजय गांधी झैलसिंह की के साथ हुई भिंडरावाले की मुलाकात ने पंजाब में भयानक हींसक खूनी राजनीतिक षड़यंत्र की जो चिंगारी सुलगाई थी उसके कारण पंजाब के साथ साथ पूरे देश में भड़की आतंकवाद की भयानक आग 1981 से 1995 तक लगातार देश को जलाती रही थी।
इस आग में लगभग 20,000 से अधिक निर्दोष नागरिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।
कांग्रेस की उस आतंकी कठपुतली जरनैल सिंह भिंडरावाले की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं बाद में जाग गई थीं। कांग्रेस के लिए वो भस्मासुर बन गया था।
अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए आवश्यक पैसों और हथियारों की भारी जरूरत पूरी करने के लिए जरनैल सिंह भिंडरावाले ने अपने तार पाकिस्तान से जोड़ लिए थे। परिणाम स्वरूप 1984 में सेना ने उसको उसके 300 हथियारबंद गुर्गों के साथ ढेर कर दिया था। उसके बचे हुए गुर्गों ने इंदिरा गांधी समेत
कई कांग्रेसी नेताओंका वध और तत्कालीन आर्मी चीफ जनरल अरूणकुमार वैद्य की हत्या की थी।
आज कांग्रेस 43 साल पुराना वही हिंसक खूनी राजनीतिक खेल फिर खेलने पर उतारू नजर आ रही है। फर्क बस इतना है कि 43 साल पहले उसने जरनैल सिंह भिंडरावाले को धार्मिक संत कह कर अपना संरक्षण समर्थन दिया था।
आज 43 साल बाद लालकिले पर खालिस्तानी झंडा लहरा कर जिंदाबाद नारा लगाने वाले देशद्रोही गुंडों को किसान कह कर कांग्रेस अपना खुला संरक्षण समर्थन दे रही है।
अतः कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने आज संसद में यह कह कर क्या गलत कह दिया कि कांग्रेस खून से खेती कर रही है.?
टॉपिक है वामपंथी हिंदू और वामपंथी इस्लामी विचारधारा और उनकी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता
1 हिंदू वामपंथी और 1 मुस्लिम वामपंथी में क्या फर्क है? देखे
कुछ दिन पहले म जब 1 लेखक उदय शंकर जिन्होंने भारत में अवार्ड वापसी गैंग की शुरुआत की थी उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए ₹5001 का
डोनेशन दिया और डोनेशन की रसीद को अपने फेसबुक वॉल पर लगाकर कहा कि मैंने आज मंदिर निर्माण के लिए अपना डोनेशन दिया है
कमेंट देखा तो तमाम वामपंथी हिंदू उन्हें कोस रहे यहां तक कि कुत्रकार अजीत अंजुम की लेखिका पत्नी भी उन्हें खूब बुरा भला लिख रही है और राम मंदिर को खूनी मंदिर कह
रही है।
अब कुछ मुस्लिम वामपंथियों पर आते हैं
सज्जाद जहीर कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापकों में से एक थे जो बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए और उन्होंने पाकिस्तान में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ पाकिस्तान का गठन किया था
बंटवारे के पहले मुंबई में जब कम्युनिस्ट पार्टी का सम्मेलन हो रहा था
अब फिर साबित हुआ - ये किसान आंदोलन नहीं है
इसे कहते हैं राहुल का लड़कियों के पीछे छुपना -
रफाल खरीद पर जब राहुल गाँधी पी एम् मोदी
को चोर कह रहा था, तब लोकसभा में निर्मला
सीतारमण ने 8 जनवरी, 2019 को खरीद के
वित्तीय प्रावधान समझाए थे -
राहुल गाँधी ने तब आरोप लगाया था कि 56 इंच
की छाती होने का दावा करने वाला प्रधान मंत्री
एक महिला के पीछे छुप गया और उसे कहा कि
मुझे बचा लो मगर वो मोदी को बचा नहीं सकी -
आज 26 जनवरी से 10 दिन में दूसरी बार
साबित हुआ कि ये कोई किसान आंदोलन
नहीं चल रहा बल्कि
आंतरराष्ट्रीय स्तर का
षड़यंत्र चल रहा है मोदी के खिलाफ मगर
ये भेद खुलने में देर नहीं लग रही --
26 जनवरी की हिंसा ने साबित किया कि
ये किसान आंदोलन नहीं है -
अब कल एक अंतर्राष्ट्रीय साजिश का
पर्दाफाश हुआ जब पता चला कि राहुल
गाँधी एक नहीं 3 लड़कियों के पीछे छुपा
मला हे अजिबात पटत नाही
मला जे पटते आणि योग्य वाटते ते सर्वथैव सामाजिक दृष्टीने योग्य आहे
कारण ज्या पुरुषाला स्त्री मध्ये फक्त मादी च दिसते
अश्या पुरुषासमोर जर एखादी अर्धनग्न सो कॉल्ड पुढारलेली मुलगी अथवा स्त्री आली
तर त्याच्या भावना चेकाळून जाऊन एखादी असहाय मुलगी शिकार
होते .
ह्याला दोषी कोण?
ती मुलगी ?तो पुरुष?की दोघेही?
मी कोणाचेच समर्थन करणार नाही कारण दोघेही चूकच आहेत
तोकडे कपडे घालून बीभत्स दर्शन घडवणे हे कितपत योग्य हे त्या त्या मुलीने ठरवावे
त्या त्या मुलीने ठरवावे की आपल्या ह्या दर्शनाने आपण सैतान जागा करतोय
आता कोणीतरी तकलादू समर्थन
करेल त्याची तर मला कीव येईल
तो किंवा ती व्यक्ती असेही म्हणेल की लहान मुलींवर (4 ते 5 वर्षे वय)जे रेप होतात ते रेप असे कपडे बघितल्याने होतात काय?
प्रश्न साधाच आहे हा पण ह्या प्रश्नातूनच बीभत्सपणाची पाठराखण करतानाच आपल्याला भारतीय संस्कृतीचा अभिमान आहे ह्याची जाणीव करून द्यायचीय
शेतकऱ्यांना कायम सतावणारी बाब म्हणजे शिंपणे
हे जर शिंपणे जर शेतकरी वेळ काढून करू लागला तर शेतात पाणी मिळून चांगले पीक येते
मी स्वतः नोकरीत ही आहे आणि मसाला शेतकरी आहे
मी शेतावर सागवान लागवड करून त्यावर मिरी चढवली आहे आणि बाकी इतरत्र मोकळ्या जागेत व चौफुल्यावर (सावली येते)वेलची,
जायफळ ,लवंग,दालचिनी अशी लागवड केली आहे
व जो काही खराबा होता तिथे वेगवेगळ्या प्रकारचा आंबा व काजू लावला आहे
प्लॉट घेतला तेव्हाच तिथे आपोआप रुजून आलेली कोकमाची झाडे तब्बल 11 होती त्यामुळे कोकमाचा प्रश्न उरलाच नव्हता
राहता राहिला लिंबू व सीताफळ आणि जाम (आम्ही विलायती काजू म्हणतो)
अशी निवडक झाडे कोपरे बघून लावली
सोलर पंप (स्वखर्चाने) बसवला प्लॉट ला लागूनच बारमाही जिवंत ओढा (40 फूट रुंद,3 फूट खोलआणि पावसात रौद्रभीषण) असल्याने विहिरीचा विषय नव्हता
रीतसर सरकारी कागद रंगवून पाणीपट्टी भरून सोलर बसवला
साग थोडा उंचीवर आल्यावर त्यावर मिरी चढवली
आणि नंतर तारांबळ
हर परिवार से 1 आदमी किसान आंदोलन में चलो’ – पंजाब की पंचायतों का तुगल की फरमान, नहीं तो ₹2100 जुर्माना*
दिल्ली और आस-पास के कई राज्यों में चल रहे ‘किसान आंदोलन’ के रविवार (जनवरी 31, 2021) को 4 महीने पूरे हो गए हैं। इसके बावजूद इसमें और ईंधन झोंकने की कवायद जारी है।
पंजाब में अब पंचायतों ने फरमान जारी करना शुरू कर दिया है। कई पंचायतें अपने-अपने गाँव के प्रत्येक परिवारों को कम से कम एक सदस्य आंदोलन में दिल्ली भेजने का फरमान सुना रही है। पंजाब में ऐसी कई पंचायतें हैं।
सबसे बड़ी बात तो ये है कि ऐसे फरमान पंचायतों के आधिकारिक लेटर हेड पर
जारी किए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि जिस परिवार का कोई सदस्य दिल्ली में चल रहे ‘किसान आंदोलन’ में नहीं गया तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। साथ ही जुर्माना भी भरना पड़ेगा। इससे पहले किसान एक्टिविस्ट्स को टास्क सौंपा गया था कि वो भीड़ जुटाएँ और लोगों को दिल्ली लेकर जाएँ। ”