महिला दिवस के मौके पर #इति_श्री_इतिहास उस महिला की अदम्य कूटनीति पर।जिसने दिमाग की धार से दुनिया के मानचित्र को बदल कर रख दिया।कहानी बड़ी है मगर1971 के असल राष्ट्रवाद को बताते हुए रोंगटे खड़े कर देगी। एक पल भी बोझिल नहीं होने दूंगा।इंदिरा गांधी क्या हस्ती थीं,आज जान ही लीजिए1/22
अप्रैल 1971 में पाकिस्तानी सितम के मारे 5 लाख बांग्लादेशी शरणार्थी हिंदुस्तान में शरण ले चुके थे।युद्ध साफ नजर आ रहा था। मगर यहां सिर्फ भारतीय सेना को पाकिस्तान से नहीं लड़ना था बल्कि लड़ाई अमेरिका-चीन जैसी दो महाशक्तियों से भी होनी थी। दोनों खुलकर पाकिस्तान के साथ खड़े थे...
मगर इंदिरा जी भी अडिग थीं। इस बीच अप्रैल 1971 में चीनी प्रधानमंत्री ने पाकिस्तानी राष्ट्रपति याह्या खान को चिट्ठी लिखी और साफ शब्दों में कहा-"हिंदुस्तान अगर पाकिस्तान पर हमला करने का दुस्साहस करता है तो पाकिस्तान की संप्रभुता और स्वतंत्रता के लिए हर मुमकिन मदद चीन करेगा"
संदेश साफ था कि भारत-पाक यु्द्ध हुआ तो चीन पाक की तरफ से भारत पर हमला करेगा।उधर अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन तो हिंदुस्तान और हमारी प्रधानमंत्री इंदिरा जी से नफरत करते थे।वो कहते-'हिंदुस्तानी अच्छे लोग नहीं होते'जबकि पाक राष्ट्रपति याह्या खान को खूब पंसद करते।तो क्या इंदिरा डर गईं?
जी नहीं।इंदिरा जी को यूं ही आयरन लेडी नहीं कहते।वो चीन-अमेरिका-पाकिस्तान से एक साथ भिड़ी।पाक से संघर्ष होने को था तो अमेरिका-चीन से माइंड गेम चल रहा था।निक्सन यहां तक कह गए कि 'अमेरिका किसी भी सूरत में पाकिस्तान का विखंडन नहीं होने देगा',शायद वो इंदिरा को ठीक से जान नहीं पाए थे
यहां से शुरू होता है असली खेल। Dec1971 में हुआ युद्ध कायदे से जुलाई में हो जाना था,मगर बड़ी ही चालाकी से चीन को रोकने के लिए हिमालय पर बर्फ गिरने का इंतजार किया गया।और अमेरिका की काट के सोवियत संघ को नजदीकी बढ़ाई जाने लगी।सोवियत ही वो शक्ति थी जो दोनों के खिलाफ हमारा साथ देती
सोवियत संघ यानि रूस को साथ लाने में इंदिरा का साथ दे रहे थे उनके मुख्य सचिव पीएन हक्सर और सोवियत राजदूत पीडी धर। रणनीति बनाई गई और विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह को जून 1971 में मॉस्को भेजा गया। फिर तब होती है वो संधि जो आज तक हिंदुस्तान की मजबूत सामरिक ढाल बनी हुई है...
संधि ये हुई कि ''दोनों देशों पर किसी बाहरी आक्रमण की सूरत में दोनों ही देश शांति बहाली के लिए उचित कदम उठाएंगे'' यहां से ये तय हो गया कि अगर अमेरिका-चीन कोई भी भारत-पाक युद्ध के बीच आया तो उसे सोवियत संघ के भीषण वज्रपात को झेलना पड़ेगा।
इंदिरा जी की रणनीति काम करने लग गई...
वो खुद सितंबर 1971 को मॉस्को गईं।इधर हिमालय पर बर्फबारी का बेसब्री से इंतजार हो रहा था तो उधर इंदिरा अपनी कूटनीति की धार से पाकिस्तान के धागे खोलने में लग गईं।बैक टू बैक कई यूरोपीय देशों का दौरा किया,फ्रांस के एक चैनल में शुद्ध फ्रेंच भाषा में इंटरव्यू दिया।फ्रांसीसी अचंभित थे..
फ्रांस के लोगों को यकीन नहीं हो रहा था कि सूती साड़ी पहने एक हिंदुस्तानी महिला इतनी शानदार फ्रेंच कैसे बोल रही है।वो इंटरव्यू आसानी से यूट्यूब पर मिल जाएगा। अपनी विद्वता से इंदिरा पश्चिमी देशों को ये एहसास कराने में कामयाब रहीं कि बांग्ला भाषियों पर पाकिस्तान जुल्म कर रहा है..
मगर सुपर पावर अमेरिका अब भी भारत से दुश्मनी मोल लिए बैठा था। तो उसे समझाने के लिए नवंबर 1971 में इंदिरा सीधे अमेरिका गईं। राष्ट्रपति निक्सन से दो-दो बार मिलीं। निक्सन ने उनके साथ बड़ा दुर्व्यवहार किया।इंदिरा जी के मुंह पर कहा-''भारत ने सैन्य कार्रवाई की थी तो नतीजे खतरनाक होंगे'
इंदिरा से ये बात उस देश का राष्ट्रपति कह रहा था जिसका जापान पर दो परमाणु बम गिराने,अपनी ताकत और क्रूरता दिखाने का इतिहास रहा था। इंदिरा ने जवाब दिया-'भारत नहीं पाक युद्ध की धमकी दे रहा है, हम संयम से हैं।नवंबर में दिया इंदिरा का ये जवाब कुछ भी नहीं था,क्योंकि अब दिसंबर आ चुका था
हिमालय पर बर्फ की मोटी चादर जम चुकी थी। चीन कुछ कर नहीं सकता था और अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन की बोलती बंद करने के लिए पाकिस्तान के दो टुकड़े करने का यही सही वक्त था।
3 दिंसबर 1971 को इंदिरा के एक इशारे पर सैम मानेक्शॉ के शेरों ने पश्चिमी और पूर्वी पाक पर दोतरफा हमला बोल दिया..
उस दिन पहले पाकिस्तान ने हमारी पश्चिमी सीमा की हवाई पट्टियों पर बम बरसाए थे।युद्ध उन्होंने शुरू किया,मगर खत्म तो हमें करना था। भारतीय सेना ढाका की ओर बढ़ी।कश्मीर और पंजाब में हमारे टैंकों की गूंज सुनाई देने लग गई।समंदर में हलचल तब बढ़ी जब भारतीय नौसेना कराची की तरफ कूंच कर गई..
मुक्तिबाहिनी की मदद से एक हफ्ते में ही पाक सेना को कुचलते हुए हमारी सेना ढाका पहुंच गई ढाका चारों तरफ घिर गया। पाकिस्तान सच में कांप रहा था।पूर्वी पाक के गवर्नर ने कांपते हाथों से इस्लामाबाद टेलीग्राम किया। गर्वनर ने जो चिट्ठी लिखी उसे ध्यान से पढ़िएगा सीना गौरव से भर जाएगा...
गवर्नर ने लिखा- '' हमें समर्पण कर, समस्या का राजनीतिक समाधान खोजना चाहिए,अगर ऐसा नहीं हुआ तो पूर्वी मोर्चे से फारिग होने के बाद भारतीय सेना का खतरा पश्चिमी पाकिस्तान पर भी बढ़ जाएगा''
मतलब ये था कि बांग्लादेश तो हाथ से गया, लड़ाई नहीं रोकी तो पाकिस्तान से भी हाथ धोना पड़ेगा...
बात अमेरिका पहुंची।आनन-फानन में अमेरिकी NSA किंसिजर वाशिंगटन में चीनी राजदूत हुआंग से मिले।राजदूत तिलमिलाया था। किंसिजर के शब्द थे ''बड़े दुख के साथ हमें स्वीकार करना पड़ेगा कि बाजी पाक के हाथ से निकल चुकी है''
अब इंदिरा की कूटनीति और सेना के शौर्य के आगे दुनिया नतमस्तक थी..
13 दिंसबर को ढाका में पाक गर्वनर के आवास पर बमबारी कर आखिरी चेतावनी दी गई। अब पाकिस्तान को अपनी हैसियत और अपने आकाओं की कूवत समझ आ चुकी थी।उसी रात याह्या खान ने जनरल नियाजी को समर्पण का संदेश भेजा।मात्र 13 दिन के भीतर 16 दिसंबर 1971 को 90 हजार की पाक फौज ने घुटने टेक दिए और तब..
हमारी प्रधानमंत्री इंदिरा जी ने लोकसभा में ऐलान किया- ''ढाका अब एक आजाद मुल्क की राजधानी है'' पूरा सदन इंदिरा गांधी जिंदाबाद के नारे गूंज उठा। विपक्षी भी मन ही मन खुद नारा लगाने से रोक नहीं पाए। पूरी दुनिया में इंदिरा गांधी के नाम का डंका बज रहा था। इंदिरा सिर्फ नाम नहीं...
बल्कि शक्ति का प्रतीक बन चुकी थीं। पाकिस्तानी अखबार में छपा-'आज हम खून के आंसू रो रहे हैं'
मजे की बात ये कि पाक में जो मातम था सो था,इस हार से सबसे ज्यादा दुखी भारत विरोधी अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन थे।तब निक्सन ने किंसिजर से जो कहा उसे पढ़ इंदिरा जी के प्रति सम्मान बढ़ जाता है..
निक्सन कहते हैं ''पाकिस्तान की हार से मेरा दिल बैठ गया है, उस बूढ़ी औरत को चेतावनी दी थी,फिर भी उसने ऐसा किया?''
एक महिला ने विश्वशक्ति अमेरिका के गुरूर को माटी में मिला दिया। हिंदुस्तान की पुरानी छवि टूट गई,दुनिया में हिंदुस्तान इज्जत का हकदार चुका था।
अंत में यही कहूंगा कि...
महिला दिवस पर इंदिरा जी की इस महान कूटनीति को नमन कीजिए।अपने परिवार,दोस्तों और जानने वालों को भारत के इस गौरवपूर्ण इतिहास को बताइए। युवाओं से कहिए कि इंदिरा जी के पति पारसी थे, मुस्लिम थे या हिंदू...व्हाट्सऐप के इस भ्रमजाल से निकलकर किताबें पढ़ें।राष्ट्रनिर्माण में भागीदार बनें
सोर्स-
'इंडिया आफ्टर नेहरू' को 76 नंबर पेज से आगे पढ़िए, विजय की तैयारी चैप्टर में ये बातें दर्ज है।
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कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है।
वैसे ही किसान हैं,वैसा ही आंदोलन और वही देशद्रोह की धारा।इतिहास को पढ़ते हुए वर्तमान को याद रखिए,सबकुछ आंखों के सामने से गुजरता जाएगा #इति_श्री_इतिहास
बात 17 Mar 1907 की है।शहीद भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह लाहौर के एक मंच पर चढ़े...1/12
और बोलना शुरू किया 'भाइयों !हमें फिरंगियों को आज ही इस प्लेटफॉर्म से चुनौती देना है।इसके लिए माझा और मालवा के ताकतवर सरदारों की मंजूरी हमारे पास है।हमारी मांग है कि किसानों के खिलाफ आए काले कानून न्यू कॉलोनी एक्ट को सरकार रद्द कर दे।दो माह में ऐसा ना हुआ तो कोई टैक्स नहीं देंगे'
तब किसान आंदोलन के चेहरा बने सरदार अजीत सिंह उस कानून का विरोध कर रहे थे जो किसानों की जमीन उनसे छीन रहा था। दरअसल 1906 में न्यू कॉलोनी एक्ट में किसानों का आस्तित्व मिटा देने का उपाय था। कानून कहता था कि किसान की जमीन का वारिस सिर्फ उसका बड़ा बेटा हो सकता है। छोटा बेटा नहीं..
विनायक दामोदर सावरकर का किरदार जितना विवादित रहा है,उतना ही रहस्यमयी भी #इति_श्री_इतिहास
अंग्रेजों से माफी मांगी
गोडसे के साथी रहे
दोनों के परिवार में रिश्तेदारी रही
महात्मा गांधी के हत्या के आरोपी
क्या सावरकर सिर्फ इतने थे या इससे भी ज्यादा?
पहली कहानी कहां से शुरू ?1/6
दिसंबर का सर्द महीना था। तारीख थी 19। साल 1919। नासिक के कलेक्टर जैक्सन के शरीर में 4 गोलियां उतार दी गई, प्राण निकलने में पल भर ना लगा। गोली मारने वाले 18 साल के युवा क्रांतिकारी अनंत लक्ष्मण कान्हरे थे। 1910 में कान्हरे को फांसी हुई। सावरकर भी इसी मामले में लंदन से गिरफ्तार..
क्योंकि आरोप था कि जिस पिस्तौल से गोली चली,वो सावरकर ने लंदन से भेजी थी। सावरकर को गिरफ्तार कर लंदन से भारत लाया जा रहा था, एक बंदरगाह के नजदीक उन्होंने दुबले शरीर का फायदा उठाया और शौचालय के पॉटहोल से समंदर में कूद गए। 15 मिनट तैरकर वो किनारे पर पहुंच गए।मगर किनारे पर ही फिर..
दर्दनाक है।शर्मनाक है।
यूपी के प्रयागराज में 3 साल की खुशी को पेट दर्द के बाद यूनाइटेड मेडीसिटी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया।डॉक्टरों ने ऑपरेशन किया,परिवार ने खेत बेचकर 2लाख दिए।5 लाख की डिमांड हुई।परिवार ना दे सका।निर्दयी अस्पताल ने बिना टांका लगाए फटे पेट के साथ उसे निकाल दिया
मेरा पास पूरा वीडियो,इतना दर्दनाक है कि साझा नहीं कर सकता। बेचारी तड़प रही है, कलथ रही है। पूरे शरीर पर मौत की मक्खियां भिनभिना रही हैं। उसका चीरा हुआ पेट देख दिमाग हिल गया। तस्वीरें देखते ही परिवार को मैंने फोन किया तो पता लगा थोड़ी देर पहले उसकी मौत हो गई।
अब परिवार के पास ठीक से क्रिया-कर्म करने तक के पैसे नहीं हैं।कहने को तो आयुष्मान योजना से लेकर तमाम योजनाएं हैं,मगर वक्त पर इस गरीब के लिए कोई योजना काम ना आई।
जिसको भी लगता है कि ये छोटी-मोटी घटना है, तो बताइएगा तड़पती बच्ची का वीडियो भेज दूंगा, कलेजा ना कांप उठे तो कहिएगा
पं.नेहरू पर सबसे बड़ा आरोप लगाया जाता है कि उन्होंने UN की स्थाई सीट खुद ना लेकर चीन को दे दी।इस पर ऐतिहासिक तथ्य क्या करते हैं,ध्यान से पढ़िएगा।झूठ के गुबार से निकलना आसान होगा #इति_श्री_इतिहास
बात 1949 की है।चीन में कम्यूनिस्टों की जीत हुई, माओ के हाथ चीन की सत्ता आई... 1/6
सोवियत तानाशाह स्टालिन के दिए हथियारों के दम पर माओ ने नेशनलिस्ट चांग काई शेक को हरा दिया।उन्हें भाग कर ताइवान जाना पड़ा।चांग काई शेक ने ताइवान को रिपब्लिक ऑफ चाइना नाम दिया और माओ ने मेनलैंड चाइना का नाम पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना रखा।मतलब 2-2 चीन हो गए।अब सबसे गौर करने वाली बात
चीन 1945 से ही सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य था।मगर जब दो चीन हो गए तो पं.नेहरू ने स्थाई सदस्यों से कम्यूनिस्टों के चीन को मान्यता देने की बात कही,क्योंकि छोटे से द्वीप ताइवान का स्थाई सदस्य होना ठीक नहीं लगा। इस पर अमेरिका ने पं.नेहरू से कहा चीन की जगह आप स्थाई सदस्यता ले लीजिए
#इति_श्री_इतिहास
1952 में प्रचंड बहुमत मत से जीतकर नेहरू अब देश के निर्वाचित प्रधानमंत्री थे। और नेहरू अपने उस फैसले पर ताउम्र कायम रहे जो उन्होंने खुद से वादा किया था। नेहरू ने क्या कहा था, उसे शब्दशः बड़े ध्यान से पढ़िएगा।
' नेहरू तुम्हें जूलियस सीजर नहीं बनना है...1/4
सीजर होने का मतलब है कि गणतांत्रिक तरीके से चुनकर सत्ता में आना और फिर तानाशाह की तरह काम करना। वैसे भी इतिहास बताता है कि लोकतंत्र में तानाशाह नंगी तलवार लिए घोड़े पर चढ़कर नहीं आते, जनता अपने कांधों पर उसकी पालकी उठाती है और तख्त पर बैठाती है।' नेहरू आगे कहते हैं..2/4
जब वो चुना हुआ नेता तानाशाह बनने की प्रक्रिया में होता है तो सबसे पहले संकीर्ण राष्ट्रवाद की बात करता है। जनता इस पर ताली बजाती है। फिर धीरे-धीरे वो संस्थाओं को खत्म करता है और उसकी भक्त जनता कहती है कि संस्थान राष्ट्र की प्रगति में बाधक थे। और अंत में ...