NYT: कितने आदमी थे?
LCH: यही कुल मिला कर कोई 73,000 रहे होंगे..
NYT: फिर भी आप 32 करोड़ की जनसंख्या वाले देश पर राज कर रहे हैं!
LCH: ये तो कुछ भी नहीं है। एक समय तो हम मात्र 10-15 हज़ार थे और हमें शासन करने में कोई दिक्कत नहीं आई।
NYT: ये सब कैसे संभव हुआ?
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LCH: हमारे इम्पीरियल काउंसिल में अधिकतर भारतीय ही तो हैं। सारे के सारे हर बिल पर ब्रिटिश सरकार का समर्थन करते हैं। भारत के राजा और जमींदार लोग हमारी सेवा में कोई कमी नहीं छोड़ते। हमारे लिए तमाम बलिदान करते हैं। प्रथम विश्व युद्ध शुरू हुआ तो हमने वहाँ के नेताओं के साथ बैठक की।…
…उन्होंने हमें आश्वासन दिया कि आप युद्ध लड़ो, यहाँ कोई गड़बड़ नहीं होगी। भारत की अधिकतर जनता अंग्रेजों की वफादार है। उनमें गजब की वफादारी है।
NYT: कोई उदाहरण दीजिए।
LCH: आपको पता नहीं है क्या?
बंगाल में अधिकतर क्रांतिकारियों को आम जनता ने ही तो पकड़वाया। वहाँ के जिन भी किसानों से संपर्क करते थे क्रांतिकारी, वो ग्रामीण हमें उनके बारे में गुप्त सूचना दे देते थे। उदाहरण लीजिए। कनाडा और अमेरिका से 7000 सिख ये सोच कर यहाँ लड़ने आए थे कि भारत के लोगों में स्वतंत्रता के…
…प्रति काफी जोश आया है। उन्होंने हमेशा परेशान करने के लिए सारी हदें पार की। फिर पंजाब के ही सिख किसानों ने एक-एक कार के उन्हें पकड़वाया। सबके बारे में हमें सूचना दी। अरे, अनगिनत सिख किसान हैं। सारे के सारे हमारे वफादार।
NYT: लेकिन भारत में स्वतंत्रता संग्राम तो चल रहा है न?
LCH: अरे काहे का स्वतंत्रता संग्राम! मुट्ठी भर लोग हैं। अगर भारतीय हमारे खिलाफ होते तो हमारे लिए लड़ते क्या? प्रथम विश्व युद्ध में हमने 3 लाख भारतीयों को हमारे लिए लड़ने भेजा है। इजिप्ट, फ्रांस, चीन, मेसोपोटामिया, पूर्वी अफ्रीका, गैलिपोली.. अरे कहाँ नहीं भेजा हमने उन्हें?
यहाँ तक कि मध्य अफ्रीका के जंगलों में स्थित कैमरून में भी भेज रखा है।
NYT: आश्चर्य है! आप 6 वर्षों तक भारत के गवर्नर जनरल रहे हैं। इस दौरान आप पर जानलेवा हमला हुआ। फिर भी आप भारतीयों को अपना वफादार कह रहे हैं?
LCH: बिल्कुल!
पूर्ववर्ती वायसरायों की तरह मैं भी अराजक तत्वों की करतूतों का भुक्तभोगी रहा। मैं हाथी से जा रहा था तो मुझ पर बम फेंके गए। मेरे सिर, पीठ और पाँव जख्मी हो गए। कंधा तो फट ही गया। हाँ, एक भारतीय नौकर ही मारा गया बेचारा। मेरी बीवी बच गई। अब तो घाव भी ठीक है मेरा। मेरे पर हमला करने…
…वालों को गजब का मजा चखाया हमने। 4 को तो फाँसी पर झूला दिया। एक को कालापानी भेज दिया।
NYT: और वहाँ के नेता, जो स्वदेशी राज की माँग करते हैं?
LCH: वो सारे के सारे अब बुद्धिमान और उदार हो गए हैं। हमारी बात मानते हैं। मेरे 6 वर्षों में वहाँ खूब राजनीतिक विकास हुआ है। बस 'गदर पार्टी' अराजक है। वो विदेश से अखबार छापते हैं और मुट्ठी भर लोग हैं। लाला हरदयाल तो जर्मनी का पिट्ठू है। भारत के राजा और जमींदार हमारे लिए…
…मरने-मिटने को तैयार हैं और हमारी सेवा कर रहे हैं, तो वहाँ के नेता अब समझदार हो गए हैं।
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लॉर्ड चार्ल्स हार्डिंग्स (LCH) 1912 में रास बिहारी बोस (जिन्होंने जापान में INA की स्थापना की थी और बाद में उसे नेताजी सुभाष को सौंप दिया) के हमले में बच निकला था। जब वो यहाँ से कार्यकाल पूरा कर ब्रिटेन लौटा तो न्यूयॉर्क टाइम्स (NYT) ने उसके अनुभवों के बारे में एक इंटरव्यू लिया…
…था। हम क्यों मुगलों-अंग्रेजों के गुलाम रहे और फिर वामपंथियों के हाथों में खेलने लगे, उसकी झलक इस इंटरव्यू में मिलती है। ये हमारी गलतियों का कच्चा चिट्ठा है। हममें से अधिकतर हमेशा बाहरियों के लिए वफादार रहे हैं, अर्थात अपनों के लिए गद्दार।
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1/21: असहयोग आंदोलन वापस लेने के साथ ही गाँधीजी ने 200 लोगों को अंग्रेजों के हाथों क्रूर मौत के लिए छोड़ दिया था। फिर उन्हें बचाने के लिए एक ऐसा व्यक्ति सामने आया, जिसने वकालत कब की छोड़ दी थी। चौरी चौरा कांड के बारे में सभी को पढ़ाया जाता है। गोरखपुर में देवरिया हाइवे की तरफ…
…स्थित है। फरवरी 1922 में यहाँ थाने में 22 पुलिसकर्मियों को जिंदा जला दिया गया था, जिसके बाद बिना कुछ देखे-सुने गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया और कहा कि भारत के लोग अभी स्वतंत्रता के लिए तैयार ही नहीं हैं। लेकिन, क्या सब कुछ वैसा ही था जैसा बताया गया?
असल मे चौरी चौरा की पुलिस जालियाँवाला बाग की राह पर निकल पड़ी थी और वहाँ अहिंसक आंदोलनकारियों के साथ क्रूरता की थी। पुलिस ने उन पर गोलीबारी की और उनकी पिटाई की। बच्चों और महिलाओं तक को नहीं बख्शा गया था। परिणाम ये हुआ कि लोगों ने जवाब दिया और पुलिस स्टेशन को ही आग के हवाले कर…
1/ 14: भारत की आज़ादी के बाद कई उद्योगपतियों ने देश की GDP बढ़ाने में योगदान दिया। टाटा-बिरला पहले से ही स्थापित थे, बाद में अंबानी भी आए। लेकिन, इन सबके बीच पाकिस्तान के सियालकोट को छोड़ कर दिल्ली आया एक ऐसा व्यक्ति भी था, जिसे भरण-पोषण को ताँगा चलाने को मजबूर होना...
2/ ...पड़ा, लेकिन उसने अपनी जिजीविषा से भारत में मसालों का इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा किया कि उसकी माँग दुनिया भर में बढ़ी। दिल्ली के करोल बाग और कीर्ति नगर में 1950 के दशक में स्थापित दुकानें 'महाशय दी हट्टी (MDH) के विस्तार का आधार बनीं।
3/ शायद उनके बारे में इसीलिए भी बात नहीं होती थी, क्योंकि वो प्रखर आर्य समाजी थे। अपने जीवन में जो भी कमाया, उसका एक बड़ा हिस्सा आर्य समाज के क्रियाकलापों में लगाने में कभी पीछे न हटे। वो हमेशा कहते थे कि पैसे के पीछे मत भागो, अपना व्यक्तित्व ऐसा बनाओ कि पैसा तुम्हारे...
1/ 23: दिल्ली में जिस तरह की अराजकता चल रही है, उससे साफ़ है कि बात मुद्दे की न होकर मुद्दे को भटकाने की है। अभी तक सरकार ने एकदम इज्जत से पंजाब के 'किसानों' के साथ व्यवहार किया है क्योंकि अगर भाजपा अपने पर आ जाती तो ये लोग हरियाणा ही न पार कर पाते। यहाँ हिन्दुओं को...
2/ ...गाली दी जा रही है, 'जय हिंद' और 'भारत माता' को छोड़ कर 'अस्सलाम वालेकुम' की पैरवी हो रही है और जब उन्हें बातचीत के लिए बुलाया जा रहा है तो कह रहे हैं कि 32 संगठनों को क्यों बुलाया, 500 को बुलाओ।
3/ वामपंथियों के कुचक्र में न फँसें। वो चाहते हैं कि हम इन पंजाबियों की वजह से देश भर के किसानों को गाली दें। वो चाहते हैं कि इन हिंसक पंजाबियों की वजह से यूपी-बिहार के वो मेहनती किसान भी गाली खाएँ, जो अभी गेहूँ-सरसो और आलू-प्याज की बुआई में व्यस्त हैं। वो चाहते हैं...
1/ 23: जब से ये 'किसान आंदोलन' शुरू हुआ है, तभी से देख रहा हूँ कि कुछ लोग खुद के करदाता होने का बखान करते हुए सभी किसानों पर एक समान रूप से गालियाँ बरसा रहे हैं। कोई कह रहा है कि वो मुफ्त का थोड़े न खाता है, रुपए देकर अनाज खरीदता है। कोई कह रहा है कि उनके दिए टैक्स के...
2/ ...रुपयों से किसानों के लिए फलाँ योजनाएँ बनती हैं। कोई कह रहा है कि उसने अपने फार्म में सब्जी उगाई है तो वो भी किसान है। कोई कहीं मुंबई में बैठ कर खुद के किसान परिवार से होने की दुहाई देकर कृषि पर राय दे रहा।
3/ अरे मूर्खों, चंद खालिस्तानियों की वजह से पूरे देश के किसानों को गाली दोगे? करदाता हो तो क्या किसानों के परिवार में करदाता नहीं हैं? इस देश को सबसे ज्यादा करदाता तो किसानों ने ही दिए हैं, अपना पेट काट कर, अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर इस लायक बनाया कि वो कर दे सकें।...
1/ जब सारा देश ही वैदिक रीति-रिवाजों को भूल गया है, सूर्य षष्ठी हम बिहारियों का सबसे बड़ा महापर्व है। एक पूर्णरूपेण वैदिक त्यौहार। वैदिक देवता, प्राकृतिक ईश्वर की आराधना का #ChhathPuja. वेदों को ज़िंदा रखना है, इसीलिए छठ ज़रूरी है। कोई मूर्तिपूजा नहीं। किसी पंडित की...
2/ ...ज़रूरत नहीं। पुरुषों की ज्यादा आवश्यकता नहीं। महिलाएँ ही प्रभार में होती हैं, अधिकांश वही इस पर्व को करती हैं। महिलाओं की प्रधानता का प्रतीक है छठ। सामाजिक एकता को पुनर्जीवन देने का मौका है छठ। मूर्तिपूजा और पंडितों के बिना भी कोई बड़ी पूजा हो सकती है, इसका सबसे...
1/ 25: कहते हैं कि नेता जो अच्छा होता है, उसके किए कार्यों को जनता तक पार्टी के अन्य रणनीतिकार और नेतागण कैसे पहुँचाते हैं, ये मायने रखता है। वाजपेयी काल में तमाम ताम-झाम के बावजूद BJP ऐसा नहीं कर पाई थी। बिहार में जब भूपेंद्र यादव को प्रभारी बना कर भेजा गया था, तब...
2/ ...सभी को लगा था कि पता नहीं राजस्थान से आया ये व्यक्ति कितनी जल्दी राजनीतिक रूप से जटिल इस राज्य को समझ पाएगा। लेकिन, उन्होंने 2019 लोकसभा चुनाव और 2020 विधानसभा चुनाव में दिखा दिया कि वो राम माधव, धर्मेंद्र प्रधान और कैलाश विजयवर्गीय के साथ BJP के रणनीतिकारों की...