1/21: असहयोग आंदोलन वापस लेने के साथ ही गाँधीजी ने 200 लोगों को अंग्रेजों के हाथों क्रूर मौत के लिए छोड़ दिया था। फिर उन्हें बचाने के लिए एक ऐसा व्यक्ति सामने आया, जिसने वकालत कब की छोड़ दी थी। चौरी चौरा कांड के बारे में सभी को पढ़ाया जाता है। गोरखपुर में देवरिया हाइवे की तरफ…
…स्थित है। फरवरी 1922 में यहाँ थाने में 22 पुलिसकर्मियों को जिंदा जला दिया गया था, जिसके बाद बिना कुछ देखे-सुने गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया और कहा कि भारत के लोग अभी स्वतंत्रता के लिए तैयार ही नहीं हैं। लेकिन, क्या सब कुछ वैसा ही था जैसा बताया गया?
असल मे चौरी चौरा की पुलिस जालियाँवाला बाग की राह पर निकल पड़ी थी और वहाँ अहिंसक आंदोलनकारियों के साथ क्रूरता की थी। पुलिस ने उन पर गोलीबारी की और उनकी पिटाई की। बच्चों और महिलाओं तक को नहीं बख्शा गया था। परिणाम ये हुआ कि लोगों ने जवाब दिया और पुलिस स्टेशन को ही आग के हवाले कर…
…दिया। बाजार में धड़ल्ले से शराब बिक रही थी और खाने-पीने की चीजें महँगी हो गई थी, इसीलिए ये आंदोलन बुलाया गया था। लेकिन, पुलिस ने आंदोलनकारियों को थाने के लॉकअप में बंद कर दिया। भगवान अहीर उनका नेतृत्व कर रहे थे।
पुलिस ने अहिंसक आंदोलनकारियों पर गोलीबारी की, जो गाँधीजी के आह्वान के बाद सड़कों पर निकल आए थे। लेकिन उन्हें क्या पता था कि जब उन पर विपत्ति आएगी तो उनका नेता ही उन्हें छोड़ कर न सिर्फ भाग निकलेगा, बल्कि उनकी निंदा भी करेगा। क्रिया की प्रतिक्रिया में थाने को जलाया गया था। करीब…
…200 लोगों की धर-पकड़ हुई। अंग्रेजों ने 172 के लिए फाँसी की सजा सुनाई। उन सबकी मौत निश्चित थी, जैसा अगले 9 वर्षों बाद भगत सिंह सहित 3 क्रांतिकारियों के साथ हुआ था। लेकिन, ऐसे समय में बाबा विश्वनाथ के एक महान भक्त ने उन्हें बचा लिया।
#MadanMohanMalaviya ने वकालत छोड़ दी थी। लेकिन, गाँधीजी का ये अन्याय उनसे देखा नहीं गया। अपने न्यायिक करियर में उन्होंने न तो कभी गलत का पक्ष लिया था, न ही सच्चाई का साथ देना हो तो घुटने टेके थे। वकालत से संन्यास के बावजूद उन्होंने अपनी काली कोट को एक बार फिर से पहना और चौरी…
…चौरा कांड में फँसे भारतीयों के लिए न्याय की लड़ाई लड़ने की ठानी। देश में अधिवक्ता और भी थे, लेकिन कोई गाँधीजी के विरुद्ध जाने की हिमाकत नहीं कर सकता था। नेहरू और पटेल तक भी इस मामले में गाँधीजी के साथ ही थे।
#महामना ने जब अदालत में इस मामले में भारतीयों की पैरवी शुरू की तो ये सुनवाई ब्रिटिश इंडिया के सबसे रोचक मामलों में आ गई। उन्होंने अपनी दलीलों से अंग्रेजों को चित किया और 150 से भी अधिक लोगों को मौत के फंदे से बचाया। यहाँ तक कि फैसला सुनाने वाला जज भी अंत में बोल उठा कि अगर कोई…
…और वकील होता तो न सिर्फ इस केस को डिफेंड करना मुश्किल था, बल्कि लोग इसके कई पहलुओं से अनजान ही रह जाते। इसी तरह भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के समय भी बाकी वकीलों को साँप सूँघ गया था। तब भी महामना ही आगे आए।
10/21
देश मे तमाम बड़े वकीलों के बीच 70 वर्ष की अवस्था पर कर चुके महामना ने वायसराय के पास अपील की। उनकी अपील स्वीकृत ही नहीं की गई, वरना इतिहास में एक अलग ही मोड़ आ जाता। 4 बार कांग्रेस अध्यक्ष बनने, बड़े-बड़े केस जीतने और BHU जैसे विशाल शैक्षिक संस्थान की स्थापना के बावजूद मोदी…
…सरकार के आने से पहले तक उन्हें 'भारत रत्न' नहीं दिया गया। इसका कारण सिर्फ ये था कि वो हिंदुत्व में विश्वास रखते थे, हिंदुओं को एक करने के लिए दलितों को साथ लिया और उन्होंने आधुनिकता के नाम पर आने वाले सुधार कानूनों का विरोध किया था।
उनका मत था कि भारतीय परम्परा में छेड़छाड़ करने से पहले लोगों को आश्वस्त करना और उनकी राय लेना आवश्यक है। जब BHU में इंजीनियरिंग कॉलेज का प्रिंसिपल 1 लाख रुपए माँग रहा था तो उन्होंने बाबा विश्वनाथ से कहा कि वो ही अब कुछ करें। थोड़ी ही देर बाद एक राजा के यहाँ से 5 लाख रुपए का दान…
…आ गया। एक ऐसा भी समय आया जब BHU पर 16 लाख का कर्ज हो गया था और 30,000 तत्काल अंग्रेज सरकार को देने थे। हर जगह अपील की लेकिन हिन्दू नाम वाले संस्थानों को शक की दृष्टि से देखने वाले ब्रिटिश ने उनकी बात न सुनी।
अंत में वो फिर वही पहुँचे - बाबा विश्वनाथ के दरबार में। संस्कृत श्लोकों का उच्चारण करते हुए तब मंदिर के ही एक कोने में तब तक आँसू बहाते रहे, तब तक कपाट बंद होने का समय नहीं आ गया। घर लौटते ही फोन आया कि उन्होंने कर्ज चुकाने के लिए 3 साल के समय की जो अपील की थी, वो मंजूर कर ली…
…गई है। ये सब उन्होंने असहाय होकर नहीं किया, बल्कि ईश्वर में उनकी अटूट श्रद्धा ही ऐसी थी। 'अर्जुनस्य प्रतिज्ञे द्वे न दैन्यं न पलायनम्।' - उनका ध्येवाक्य था। अर्थात, अर्जुन की दो ही प्रतिज्ञा थी - पहली, ना तो दीनता दिखाऊँगा और न ही पलायन करूँगा।
एक और सुखद संयोग देखिए कि महामना के जन्म के 63 वर्षों बाद इसी तारीख को जन्मे एक और युगपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी से जब पूछा गया था कि क्या उनका मन नहीं करता कि अब राजनीति छोड़ कर कहीं दूर चले जाएँ, तो उन्होंने भी इसी श्लोक के माध्यम से जवाब दिया था। इसी से प्रेरित होकर उन्होंने…
…ये पंक्तियाँ भी लिखीं:
हार नहीं मानूँगा,
रार नई ठानूँगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ
गीत नया गाता हूँ
महामना ने हिंदी और अंग्रेजी, दोनों ही भाषाओं के समाचारपत्रों में संपादक का दायित्व संभाला, लेकिन बाद में पूर्णतया हिंदी भाषा पर ही उनका जोर रहा क्योंकि मातृभूमि से उनका प्रेम ही वैसा था। मैंने कहीं ये भी पढ़ा था कि वो उच्चारण को लेकर वो इतने कड़े थे कि 'Student' को 'सटूडेंट' और…
…'Literature' को 'लिटरेटयोर' कहा करते थे - एकदम विशुद्ध उच्चारण। राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में अंग्रेज मानने को तैयार ही नहीं थे कि वो ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से नहीं पढ़े हैं। कांग्रेस के सारे अंग्रेजी ड्राफ्ट उनकी प्रूफरीडिंग के बिना नहीं भेजे जाते थे। लेकिन, उन्होंने सब छोड़ कर…
…सेवा हिंदी की ही की।
21/21
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NYT: कितने आदमी थे?
LCH: यही कुल मिला कर कोई 73,000 रहे होंगे..
NYT: फिर भी आप 32 करोड़ की जनसंख्या वाले देश पर राज कर रहे हैं!
LCH: ये तो कुछ भी नहीं है। एक समय तो हम मात्र 10-15 हज़ार थे और हमें शासन करने में कोई दिक्कत नहीं आई।
NYT: ये सब कैसे संभव हुआ?
1/13
LCH: हमारे इम्पीरियल काउंसिल में अधिकतर भारतीय ही तो हैं। सारे के सारे हर बिल पर ब्रिटिश सरकार का समर्थन करते हैं। भारत के राजा और जमींदार लोग हमारी सेवा में कोई कमी नहीं छोड़ते। हमारे लिए तमाम बलिदान करते हैं। प्रथम विश्व युद्ध शुरू हुआ तो हमने वहाँ के नेताओं के साथ बैठक की।…
…उन्होंने हमें आश्वासन दिया कि आप युद्ध लड़ो, यहाँ कोई गड़बड़ नहीं होगी। भारत की अधिकतर जनता अंग्रेजों की वफादार है। उनमें गजब की वफादारी है।
NYT: कोई उदाहरण दीजिए।
LCH: आपको पता नहीं है क्या?
1/ 14: भारत की आज़ादी के बाद कई उद्योगपतियों ने देश की GDP बढ़ाने में योगदान दिया। टाटा-बिरला पहले से ही स्थापित थे, बाद में अंबानी भी आए। लेकिन, इन सबके बीच पाकिस्तान के सियालकोट को छोड़ कर दिल्ली आया एक ऐसा व्यक्ति भी था, जिसे भरण-पोषण को ताँगा चलाने को मजबूर होना...
2/ ...पड़ा, लेकिन उसने अपनी जिजीविषा से भारत में मसालों का इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा किया कि उसकी माँग दुनिया भर में बढ़ी। दिल्ली के करोल बाग और कीर्ति नगर में 1950 के दशक में स्थापित दुकानें 'महाशय दी हट्टी (MDH) के विस्तार का आधार बनीं।
3/ शायद उनके बारे में इसीलिए भी बात नहीं होती थी, क्योंकि वो प्रखर आर्य समाजी थे। अपने जीवन में जो भी कमाया, उसका एक बड़ा हिस्सा आर्य समाज के क्रियाकलापों में लगाने में कभी पीछे न हटे। वो हमेशा कहते थे कि पैसे के पीछे मत भागो, अपना व्यक्तित्व ऐसा बनाओ कि पैसा तुम्हारे...
1/ 23: दिल्ली में जिस तरह की अराजकता चल रही है, उससे साफ़ है कि बात मुद्दे की न होकर मुद्दे को भटकाने की है। अभी तक सरकार ने एकदम इज्जत से पंजाब के 'किसानों' के साथ व्यवहार किया है क्योंकि अगर भाजपा अपने पर आ जाती तो ये लोग हरियाणा ही न पार कर पाते। यहाँ हिन्दुओं को...
2/ ...गाली दी जा रही है, 'जय हिंद' और 'भारत माता' को छोड़ कर 'अस्सलाम वालेकुम' की पैरवी हो रही है और जब उन्हें बातचीत के लिए बुलाया जा रहा है तो कह रहे हैं कि 32 संगठनों को क्यों बुलाया, 500 को बुलाओ।
3/ वामपंथियों के कुचक्र में न फँसें। वो चाहते हैं कि हम इन पंजाबियों की वजह से देश भर के किसानों को गाली दें। वो चाहते हैं कि इन हिंसक पंजाबियों की वजह से यूपी-बिहार के वो मेहनती किसान भी गाली खाएँ, जो अभी गेहूँ-सरसो और आलू-प्याज की बुआई में व्यस्त हैं। वो चाहते हैं...
1/ 23: जब से ये 'किसान आंदोलन' शुरू हुआ है, तभी से देख रहा हूँ कि कुछ लोग खुद के करदाता होने का बखान करते हुए सभी किसानों पर एक समान रूप से गालियाँ बरसा रहे हैं। कोई कह रहा है कि वो मुफ्त का थोड़े न खाता है, रुपए देकर अनाज खरीदता है। कोई कह रहा है कि उनके दिए टैक्स के...
2/ ...रुपयों से किसानों के लिए फलाँ योजनाएँ बनती हैं। कोई कह रहा है कि उसने अपने फार्म में सब्जी उगाई है तो वो भी किसान है। कोई कहीं मुंबई में बैठ कर खुद के किसान परिवार से होने की दुहाई देकर कृषि पर राय दे रहा।
3/ अरे मूर्खों, चंद खालिस्तानियों की वजह से पूरे देश के किसानों को गाली दोगे? करदाता हो तो क्या किसानों के परिवार में करदाता नहीं हैं? इस देश को सबसे ज्यादा करदाता तो किसानों ने ही दिए हैं, अपना पेट काट कर, अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर इस लायक बनाया कि वो कर दे सकें।...
1/ जब सारा देश ही वैदिक रीति-रिवाजों को भूल गया है, सूर्य षष्ठी हम बिहारियों का सबसे बड़ा महापर्व है। एक पूर्णरूपेण वैदिक त्यौहार। वैदिक देवता, प्राकृतिक ईश्वर की आराधना का #ChhathPuja. वेदों को ज़िंदा रखना है, इसीलिए छठ ज़रूरी है। कोई मूर्तिपूजा नहीं। किसी पंडित की...
2/ ...ज़रूरत नहीं। पुरुषों की ज्यादा आवश्यकता नहीं। महिलाएँ ही प्रभार में होती हैं, अधिकांश वही इस पर्व को करती हैं। महिलाओं की प्रधानता का प्रतीक है छठ। सामाजिक एकता को पुनर्जीवन देने का मौका है छठ। मूर्तिपूजा और पंडितों के बिना भी कोई बड़ी पूजा हो सकती है, इसका सबसे...
1/ 25: कहते हैं कि नेता जो अच्छा होता है, उसके किए कार्यों को जनता तक पार्टी के अन्य रणनीतिकार और नेतागण कैसे पहुँचाते हैं, ये मायने रखता है। वाजपेयी काल में तमाम ताम-झाम के बावजूद BJP ऐसा नहीं कर पाई थी। बिहार में जब भूपेंद्र यादव को प्रभारी बना कर भेजा गया था, तब...
2/ ...सभी को लगा था कि पता नहीं राजस्थान से आया ये व्यक्ति कितनी जल्दी राजनीतिक रूप से जटिल इस राज्य को समझ पाएगा। लेकिन, उन्होंने 2019 लोकसभा चुनाव और 2020 विधानसभा चुनाव में दिखा दिया कि वो राम माधव, धर्मेंद्र प्रधान और कैलाश विजयवर्गीय के साथ BJP के रणनीतिकारों की...