थ्रेड: #राम_नाम_की_लूट

पिछले 3-4 सालों से एक चीज लगातार देखने को मिल रही है और वो ये कि सरकार की पैसे की डिमांड बहुत बढ़ गई है। साम-दाम-दंड-भेद सरकार ने राजस्व बटोरने का कोई रास्ता नहीं छोड़ा है।

#CorporatePuppetGOVT
1. सर्विस टैक्स को GST में शामिल करके 18% की स्लैब में डाल दिया।
2. कार्बन टैक्स बोल के पेट्रोलियम पदार्थों पर बेतहाशा टैक्स लगा दिया।
3. केरोसिन, LPG वगैरह पर से सब्सिडी बिलकुल ख़त्म कर दी।
4. शराब और सिगरेट पर भी लगातार टैक्स बढ़ाये हैं।
#CorporatePuppetGOVT
5. PSUs से लगातार डिविडेंड वसूला है।
6. सरकारी उपक्रमों की बिक्री पूरे जोश में चालू है।
7. RBI से भी पौने दो लाख करोड़ वसूला है।
8. इन्फ्लेशन की रेट 4% है मगर आयकर की स्लैब में उस हिसाब से बदलाव नहीं आये हैं।
#CorporatePuppetGOVT
9. सरकारी कामकाज में भी काफी कॉस्ट कटिंग की गयी है।
10. ट्रैफिक इत्यादि जुर्माना राशि में काफी ज्यादा बढ़ोतरी कर दी है।
11. बीच में मंदिरों का सोना भी सरकारी खजाने में जमा करने की भी काफी कोशिश की गई थी।
#CorporatePuppetGOVT
12. जब से कोरोना आया है स्पेशल ट्रेनों के नाम पर ट्रेनों में मिलने वाली सुविधाएँ भी कम कर दी गयी है। साथ ही छात्रों, सैनिकों वगैरह को रेल यात्रा में मिलने वाली छूट भी ख़तम कर दी गयी है।
#CorporatePuppetGOVT
13. लगातार बांड्स इशू करके मार्केट से पैसा उठाने की कोशिश की जा रही है। अभी सरकार ने RBI से लो इंटेरसेट बांड्स जारी करके बाजार से 12 लाख करोड़ उठाने के लिए कहा है।
14. PM केयर ज़रिये भी कोरोना के नाम पे हजारों करोड़ रुपया पब्लिक से इकठ्ठा किया है।
#CorporatePuppetGOVT
मुझे ये समझ नहीं आ रहा है कि सरकार इतने पैसे का करने क्या जा रही है? क्योंकि इंफ़्रा का सारा काम तो प्राइवेट कंपनियों को पकड़ा दिया है जो हर पांच किलोमीटर पे टोल खड़ा करके टैक्स वसूल रहे हैं।
#CorporatePuppetGOVT
पब्लिक को लूट रहे हो वो तो समझ आ रहा है मगर लूट के दे किसको रहे हो? और कैसे दे रहे हो? किसी को कोई आईडिया है तो प्लीज बताओ।
#CorporatePuppetGOVT

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More from @BankerDihaadi

25 Feb
थ्रेड: सरकारी_बिज़नेस

कल ही सरकार ने घोषणा की कि गवर्नमेंट बिज़नेस अब प्राइवेट बैंक भी कर सकेंगे। जी नहीं, गवर्नमेंट बिज़नेस मतलब सरकारी स्कीम्स लागू करना नहीं होता। गवर्नमेंट बिज़नेस मतलब ट्रेज़री बिज़नेस।
सरकार की तरफ से टैक्स और अन्य सरकारी चालान जमा करना, रेवेन्यू रिसीप्ट जमा करना, पेंशन पेमेंट्स, ट्रेज़री की तरफ से पेमेंट करना। चेक टाइप नंबर 20 यानी स्टेट गवर्नमेंट ट्रेज़री चेक जारी करना इसी गवर्नमेंट बिज़नेस का एक भाग है।
ट्रेज़री एकाउंट्स अनलिमिटेड डेबिट अकाउंट होते हैं जिनके हर साल के अंत में क्रेडिट अकाउंट से रिकन्साइल किया जाता है और उसी के हिसाब से सरकार का आमदनी-खर्चा डिसाइड होता है। आज तक ये सारा काम सिर्फ SBI ही करती थी (दूसरी कोई और भी बैंक करती हो तो मेरी जानकारी में नहीं है)।
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20 Feb
थ्रेड : #कॉर्पोरेट_गवर्नेंस

1990 के दशक के शुरुआत में लंदन में कुछ कंपनियों में बड़े घपले हुए। इनके नेपथ्य में था 1979 में मार्गरेट थेचर के नेतृत्व में शुरू हुआ निजीकरण का दौर (ब्रिटेन के निजीकरण के बारे में किसी और दिन बात करेंगे)।
दरअसल 1980 के दशक में निजी कंपनियों में दूसरी कंपनियों के अधिग्रहण की जबरदस्त होड़ मची। पैरेंट कंपनियां खूब उधार लेकर दूसरी कंपनियों को खरीद रही थी। इससे कंपनियों के ऊपर बहुत कर्ज बढ़ गया था। ऐसी ही एक कंपनी थी मैक्सवेल कम्युनिकेशन्स।
इस कंपनी ने अपने कर्मचारियों के पेंशन फंड्स में सेंध लगा कर अधिग्रहण के लिए फंड्स जुटाए थे। कुछ ही सालों में कंपनी पर कर्ज इतना बढ़ गया कि 1992 में कंपनी ने बैंकरप्सी फाइल कर दी। उसी साल इंग्लैंड की ही Bank of Credit and Commerce International (BCCI) भी डूब गई।
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19 Feb
थ्रेड: #एफ्फिसिएंट_सरकार

एक बात तो माननी पड़ेगी। ये सरकार एफिशिएंट तो बहुत है। और ये बात मैं साबित कर सकता हूँ। पिछली सरकारें बेवकूफ थीं। कभी गरीबी मिटाओ, कभी घर बनाओ, कभी रोजगार दिलाओ, कभी भुखमरी हटाओ, ये सब छोटी छोटी योजनाओं पे काम करती थी।
और फिर हर पांच साल बाद अपना काम लेकर पब्लिक के पास जाती थी "भाई हमारा काम देखो और हमें वोट दो"। बीच बीच में जाति और धर्म का तड़का भी लगता था मगर वो भी छोटे लेवल पर। नयी सरकार को समझ आ गया कि ये तरीका एफ्फिसिएंट नहीं है।
पहले तो योजनाएं बनाओं, फिर लागू करवाओ। अब इतना काम करो, फिर उसे लेकर पब्लिक के पास जाओ। और उसके बाद भी कोई गारंटी नहीं है कि आपको वोट मिल ही जाएगा। और वैसे भी योजनाएं छोटी हैं तो करप्शन भी छोटा ही होगा। इतनी मेहनत करो और न सत्ता मिले और पैसा भी कोई ज्यादा नहीं।
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18 Feb
थ्रेड: #हमारे_सरकारी_बैंक

पार्ट 2: सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया

आज एक ऐसे बैंक के बारे में बात करते हैं जो शायद शीघ्र ही इतिहास के हवाले कर दिया जाएगा।

कहा जाता है गुलाम भारत ब्रिटिश साम्राज्य के ताज का हीरा था।
इस हीरे को पकडे रखने के लिए अंग्रेजों के लिए ये ज़रूरी था कि भारत को अविकसित ही रखा जाए। इसके लिए उन्होंने हर संभव कोशिश की कि भारत में उद्योगों पर पूरी तरह से अंग्रेजों का ही कब्ज़ा रहे। इसके लिए भारतीय उद्योगों के प्रति भेदभावपूर्ण नीति अपनाई गई, और उसी का भाग था बैंकिंग।
प्रथम विश्वयुद्ध से पहले सारे बैंक अंग्रेजों के ही अधिकार में थे। ये सिर्फ सरकार के इशारे पे ही चलते थे। भारतीय इस बात को बखूबी समझते थे कि बिना सम्पूर्ण भारतीय बैंक के स्वदेशी और स्वराज्य का सपना पूरा नहीं हो सकता। मगर भारतीयों को आधुनिक बैंकिंग का अधिक अनुभव नहीं था।
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18 Feb
UPSC हो या Banking सरकारी नौकरियों में ऐसे बहुत हैं जो 22 साल की उम्र में एक ही अटेम्प्ट में कॉलेज से निकलते ही नौकरी पा गए और उस नौकरी के दम पर अपने को फन्ने खां समझने लगे। इनमें से कइयों ने बाहर की दुनिया देखी ही नहीं। न इन्होनें कभी बाहरी जिंदगी का संघर्ष झेला।
ये लोग एक कूप मंडूक का जीवन जी रहे हैं। मेरी पिछली ब्रांच का ब्रांच मैनेजर स्केल 3 था। जबकि मैं सिर्फ PO। मजे की बात ये है वो उम्र में मुझसे छोटा था। शायद ये बात उसको पता थी। इसलिए अक्सर अपने इस 'अचीवमेंट' के बारे में मुझे केबिन में बुला कर बताया करता था।
मैंने उसे अपने बारे में कभी नहीं बताया लेकिन मेरी सर्विस फाइल से उसे ये पता लग गया कि मैंने UPSC के लिए ट्राई किया था। ये बात उसके लिए काफी ईगो सेटिस्फाइंग थी कि उससे अधिक ऐज का बंदा, जो कि IITian भी है न केवल एग्जाम में फेल हुआ है बल्कि आज उसके नीचे काम कर रहा है।
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17 Feb
थ्रेड: #नाच_मेरी_बुलबुल

बैंक नीलाम हो रहे हैं। साथ में नीलाम हो रहा है बैंक कर्मचारियों का भविष्य और ग्राहकों का विश्वास। जनता तो अभी रिंकू और दिशा में व्यस्त है। उनको ज्यादा पता नहीं। जिस मीडिया पर जनता को सच्चाई बताने का जिम्मा है वो तो खुद पासबुक लेके प्रिंट कराने घूम रहा है।
बैंकरों को लग रहा है कि सरकार ने तानाशाही रवैया अपनाते हुए ये एकतरफा फैसला लिया है। मैं इस बात से पूरी तरह सहमत नहीं हूँ। रवैया तो तानाशाही है मगर फैसला एक तरफ़ा नहीं है। इस फैसले में सब मिले हुए हैं।
लोकतंत्र में संतुलन बनाये रखने वाला विपक्ष भी और स्वयं को बैंकरों का मसीहा मानने वाले बैंक यूनियन भी। विपक्ष इसलिए क्यूंकि चुनाव लड़ने के लिए इनको भी तो पैसा चाहिए। और चार राज्यों में चुनाव आ ही रहे हैं। और अभी पुदुच्चेरी में भी इनकी सरकार डांवाडोल है।
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