थ्रेड: #एफ्फिसिएंट_सरकार

एक बात तो माननी पड़ेगी। ये सरकार एफिशिएंट तो बहुत है। और ये बात मैं साबित कर सकता हूँ। पिछली सरकारें बेवकूफ थीं। कभी गरीबी मिटाओ, कभी घर बनाओ, कभी रोजगार दिलाओ, कभी भुखमरी हटाओ, ये सब छोटी छोटी योजनाओं पे काम करती थी।
और फिर हर पांच साल बाद अपना काम लेकर पब्लिक के पास जाती थी "भाई हमारा काम देखो और हमें वोट दो"। बीच बीच में जाति और धर्म का तड़का भी लगता था मगर वो भी छोटे लेवल पर। नयी सरकार को समझ आ गया कि ये तरीका एफ्फिसिएंट नहीं है।
पहले तो योजनाएं बनाओं, फिर लागू करवाओ। अब इतना काम करो, फिर उसे लेकर पब्लिक के पास जाओ। और उसके बाद भी कोई गारंटी नहीं है कि आपको वोट मिल ही जाएगा। और वैसे भी योजनाएं छोटी हैं तो करप्शन भी छोटा ही होगा। इतनी मेहनत करो और न सत्ता मिले और पैसा भी कोई ज्यादा नहीं।
नयी सरकार ने कह दिया "ई ना चोलबे"। जब सारी कहानी वोट की ही है तो सीधे वोट पे ही कंसन्ट्रेट करना चाहिए न। बस एक बार किसी तरह सत्ता मिल जाए फिर सब कुछ डायरेक्ट कर देंगे। लोग भी पिछली सरकार से बोर हो गए थे तो सत्ता मिलने में ज्यादा परेशानी नहीं आई।
आते ही नयी सरकार ने पहले तो जनता को राष्ट्रवाद की अफीम खिलाई, ताकि सवाल लोग सवाल पूछने बंद करें। फिर शुरू हुई वोट की कहानी। नई सरकार को पता था कि वोट सीधे नोट से मिलता है, विकास-फिकास सब बेकार की बातें हैं। आते ही नोट बांटने वाला काम शुरू कर दिया।
गर्भवती महिलाओं को छह हजार, किसानों को दो हजार, कोरोना के पंद्रह सौ सब डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के नाम पर सीधे खाते में। लोग कुछ नहीं बोल सकते, भई गरीबों को पैसा बँट रहा है। पहले गरीब को सरकार से चावल मिलता था, उसको पका के खाता था, अब सीधे पैसा मिलता है, उसकी दारू पी जाता है।
सरकारी खजाने पर जोर पड़ा तो और नोट ढूंढें जाने लगे।
-और नोट कहाँ मिलते हैं?
-बैंकों में।
तो सीधा हमला हुआ बैंकों पर। बिना कोलैटरल के बिज़नेस लोन, नाम दिया मुद्रा। कोरोना का लोन, स्ट्रीट वेंडर्स को लोन। लोगों को पकड़ पकड़ के लोन दिया।
बैंकों की बैलेंस शीट जाए भाड़ में। कुलमिला कर जो बड़ा वोट बैंक है वो मस्त है। लेकिन सिर्फ इससे ही सारा काम हो जाए ऐसा तो है नहीं।
-कुछ जरूरत से ज्यादा जागरूक लोग भी होते हैं, उनको नोट से नहीं खरीद सकते।
-तो उनको खरीदने की जरूरत ही क्या है? सीधे MLA खरीदो। दस करोड़, बीस करोड़, पचास करोड़, जो जितने में बिके उतने में खरीदो।
-पर ये तो सरासर गलत है। अगर जनता को पता चल गया तो?
-जनता को बताएगा कौन?
-मीडिया
-हाँ तो एक काम करो, मीडिया को भी खरीद लो।
-लेकिन इतना पैसा आएगा कहाँ से? पब्लिक के टैक्स के पैसे से तो MLA और मीडिया को खरीद नहीं सकते।
-एक काम करो ये धन्ना सेठों के पास बहुत पैसा पड़ा है। इनको पकड़ो, इनसे पैसा मांगो।
-ये ऐसे थोड़े ही पैसा देंगे।
इनको चाहिए टैक्स में छूट, लोन का पैसा डकार कर विदेश भागने की छूट, सस्ती जमीन खरीदने की छूट, जंगल काटने की छूट, आदिवासियों को बेघर करने की छूट, धुंआ फ़ैलाने की छूट, नदियों में ज़हर घोलने की छूट, पच्चीस तरह की सब्सिडियां, राज्य सभा में सीट, और सबसे बड़ी बात, पब्लिक को लूटने कि छूट।
-बस इतना ही?
-इतना कहाँ? कह रहे हैं कि सरकारी कंपनियां इनको अच्छे से धंधा नहीं करने देती। ये पब्लिक को ठीक से लूट नहीं पा रहे हैं।
-फिर?
-कह रहे हैं कि सरकारी कंपनियां इनको चाहिए।
-पब्लिक बवाल करेगी तो?
-उसको आपका IT Cell और मीडिया संभल लेगा।
-और PSU के कर्मचारी? इनकी भी तो यूनियन हैं?
-वो? वो तो बिकने को कब से तैयार बैठे हैं।
-फिर ठीक है।
-हाँ, लेकिन ये सेठ पैसा अगर खुल्ले में देंगे तो पब्लिक बवाल करेगी। बोलेगी कि सरकार तो बिक गई है। हो सकता है कोर्ट भी सरकार को हड़का दे।
इसलिए आया इलेक्टोरल बांड। सरकार की जेबें खाली हो गयी लेकिन पार्टी की जेब भर गयी।पिछली सरकारों में करप्शन छोटे लेवल पर होता था।इस सरकार में छोटे लेवल पर करप्शन ख़तम करके सीधे बड़े लेवल का करप्शन चल रहा है वो भी खुल्ला। पंचायत इलेक्शन में भी प्रचार करने अब केंद्रीय मंत्री जाते हैं।
वहां भी खूब पैसा बांटा जा रहा है। गाँधी के पंचायती राज का सपना ऐसे ही तो पूरा होगा। जो भी हो ये सरकार एफ्फिसिएंट बहुत है। सब काम डायरेक्ट करती है। नोट देने का और वोट लेने का। बाकी विकास-फिकास तो सब इनएफ़्फीसिएंट लोगों के चोंचले हैं।

#CorporatePuppetGOVT
#PSBsNot4Sale

• • •

Missing some Tweet in this thread? You can try to force a refresh
 

Keep Current with WhiteCollarMazdoor

WhiteCollarMazdoor Profile picture

Stay in touch and get notified when new unrolls are available from this author!

Read all threads

This Thread may be Removed Anytime!

PDF

Twitter may remove this content at anytime! Save it as PDF for later use!

Try unrolling a thread yourself!

how to unroll video
  1. Follow @ThreadReaderApp to mention us!

  2. From a Twitter thread mention us with a keyword "unroll"
@threadreaderapp unroll

Practice here first or read more on our help page!

More from @BankerDihaadi

20 Feb
थ्रेड : #कॉर्पोरेट_गवर्नेंस

1990 के दशक के शुरुआत में लंदन में कुछ कंपनियों में बड़े घपले हुए। इनके नेपथ्य में था 1979 में मार्गरेट थेचर के नेतृत्व में शुरू हुआ निजीकरण का दौर (ब्रिटेन के निजीकरण के बारे में किसी और दिन बात करेंगे)।
दरअसल 1980 के दशक में निजी कंपनियों में दूसरी कंपनियों के अधिग्रहण की जबरदस्त होड़ मची। पैरेंट कंपनियां खूब उधार लेकर दूसरी कंपनियों को खरीद रही थी। इससे कंपनियों के ऊपर बहुत कर्ज बढ़ गया था। ऐसी ही एक कंपनी थी मैक्सवेल कम्युनिकेशन्स।
इस कंपनी ने अपने कर्मचारियों के पेंशन फंड्स में सेंध लगा कर अधिग्रहण के लिए फंड्स जुटाए थे। कुछ ही सालों में कंपनी पर कर्ज इतना बढ़ गया कि 1992 में कंपनी ने बैंकरप्सी फाइल कर दी। उसी साल इंग्लैंड की ही Bank of Credit and Commerce International (BCCI) भी डूब गई।
Read 15 tweets
18 Feb
थ्रेड: #हमारे_सरकारी_बैंक

पार्ट 2: सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया

आज एक ऐसे बैंक के बारे में बात करते हैं जो शायद शीघ्र ही इतिहास के हवाले कर दिया जाएगा।

कहा जाता है गुलाम भारत ब्रिटिश साम्राज्य के ताज का हीरा था।
इस हीरे को पकडे रखने के लिए अंग्रेजों के लिए ये ज़रूरी था कि भारत को अविकसित ही रखा जाए। इसके लिए उन्होंने हर संभव कोशिश की कि भारत में उद्योगों पर पूरी तरह से अंग्रेजों का ही कब्ज़ा रहे। इसके लिए भारतीय उद्योगों के प्रति भेदभावपूर्ण नीति अपनाई गई, और उसी का भाग था बैंकिंग।
प्रथम विश्वयुद्ध से पहले सारे बैंक अंग्रेजों के ही अधिकार में थे। ये सिर्फ सरकार के इशारे पे ही चलते थे। भारतीय इस बात को बखूबी समझते थे कि बिना सम्पूर्ण भारतीय बैंक के स्वदेशी और स्वराज्य का सपना पूरा नहीं हो सकता। मगर भारतीयों को आधुनिक बैंकिंग का अधिक अनुभव नहीं था।
Read 15 tweets
18 Feb
UPSC हो या Banking सरकारी नौकरियों में ऐसे बहुत हैं जो 22 साल की उम्र में एक ही अटेम्प्ट में कॉलेज से निकलते ही नौकरी पा गए और उस नौकरी के दम पर अपने को फन्ने खां समझने लगे। इनमें से कइयों ने बाहर की दुनिया देखी ही नहीं। न इन्होनें कभी बाहरी जिंदगी का संघर्ष झेला।
ये लोग एक कूप मंडूक का जीवन जी रहे हैं। मेरी पिछली ब्रांच का ब्रांच मैनेजर स्केल 3 था। जबकि मैं सिर्फ PO। मजे की बात ये है वो उम्र में मुझसे छोटा था। शायद ये बात उसको पता थी। इसलिए अक्सर अपने इस 'अचीवमेंट' के बारे में मुझे केबिन में बुला कर बताया करता था।
मैंने उसे अपने बारे में कभी नहीं बताया लेकिन मेरी सर्विस फाइल से उसे ये पता लग गया कि मैंने UPSC के लिए ट्राई किया था। ये बात उसके लिए काफी ईगो सेटिस्फाइंग थी कि उससे अधिक ऐज का बंदा, जो कि IITian भी है न केवल एग्जाम में फेल हुआ है बल्कि आज उसके नीचे काम कर रहा है।
Read 5 tweets
17 Feb
थ्रेड: #नाच_मेरी_बुलबुल

बैंक नीलाम हो रहे हैं। साथ में नीलाम हो रहा है बैंक कर्मचारियों का भविष्य और ग्राहकों का विश्वास। जनता तो अभी रिंकू और दिशा में व्यस्त है। उनको ज्यादा पता नहीं। जिस मीडिया पर जनता को सच्चाई बताने का जिम्मा है वो तो खुद पासबुक लेके प्रिंट कराने घूम रहा है।
बैंकरों को लग रहा है कि सरकार ने तानाशाही रवैया अपनाते हुए ये एकतरफा फैसला लिया है। मैं इस बात से पूरी तरह सहमत नहीं हूँ। रवैया तो तानाशाही है मगर फैसला एक तरफ़ा नहीं है। इस फैसले में सब मिले हुए हैं।
लोकतंत्र में संतुलन बनाये रखने वाला विपक्ष भी और स्वयं को बैंकरों का मसीहा मानने वाले बैंक यूनियन भी। विपक्ष इसलिए क्यूंकि चुनाव लड़ने के लिए इनको भी तो पैसा चाहिए। और चार राज्यों में चुनाव आ ही रहे हैं। और अभी पुदुच्चेरी में भी इनकी सरकार डांवाडोल है।
Read 9 tweets
12 Feb
1. Japan's external security was taken care by America for 70 years. Japan grew fast when they had no govt sponsored army. Better efficiency. So as per your logic external security can be privatized. You just need to find a suitable candidate.
#WealthLooters
2 &3. Internal Security and law and order: Police and judiciary are one the most corrupt and inefficient institutions. There are many private security agencies. Why not privatise police and judiciary?

#WealthLooters
4. Civil amenities: US has negligible public health, transport, education. All is run by private sector. Anyway you know the condition of Indian govt schools and hospitals. Isn't it better to privatise them too? Banking is also a civil amenity, civil aviation, hotels too.
Read 4 tweets
12 Feb
थ्रेड: #सबका_नंबर_आएगा

पहले सरकार बैंकरों के पीछे पड़ी। नोटबंदी करवाई, बिना कोलैटरल की लोन स्कीम्स लांच करवाई, बैंकों पर आधार और बीमे का बोझ डाला, स्टाफ में कटौती की। नोटबंदी के बाद साहब ने कहा कि बैंक वालों ने जितना काम नोटबंदी में किया उतना पूरी जिंदगी में कभी नहीं किया।
जो समझदार थे वो इस बेइज़्ज़ती को समझ गए। साहब ने एक झटके में बैंकरों सर्कस का निकम्मा जानवर और खुद को कुशल रिंगमास्टर घोषित कर दिया। कोरोना में बैंक खुलवाए जबरदस्ती के लोन बंटवाए लेकिन कोरोना वारियर्स मानने से मना कर दिया।
फिर बैंकों के निजीकरण का प्रस्ताव लेकर आयी। लोग खुश हो गए। अब मजा आएगा इन सरकारी बैंक वालों को। साले निकम्मे कहीं के। आटे दाल का भाव पता चलेगा जब प्राइवेट बैंक में आधी सैलरी पर काम करना पड़ेगा। लोन देने में नखरे करते थे, पासबुक प्रिंट करने में नखरे करते थे, दस नियम समझाते थे।
Read 8 tweets

Did Thread Reader help you today?

Support us! We are indie developers!


This site is made by just two indie developers on a laptop doing marketing, support and development! Read more about the story.

Become a Premium Member ($3/month or $30/year) and get exclusive features!

Become Premium

Too expensive? Make a small donation by buying us coffee ($5) or help with server cost ($10)

Donate via Paypal Become our Patreon

Thank you for your support!

Follow Us on Twitter!