थ्रेड: सरकारी_बिज़नेस

कल ही सरकार ने घोषणा की कि गवर्नमेंट बिज़नेस अब प्राइवेट बैंक भी कर सकेंगे। जी नहीं, गवर्नमेंट बिज़नेस मतलब सरकारी स्कीम्स लागू करना नहीं होता। गवर्नमेंट बिज़नेस मतलब ट्रेज़री बिज़नेस।
सरकार की तरफ से टैक्स और अन्य सरकारी चालान जमा करना, रेवेन्यू रिसीप्ट जमा करना, पेंशन पेमेंट्स, ट्रेज़री की तरफ से पेमेंट करना। चेक टाइप नंबर 20 यानी स्टेट गवर्नमेंट ट्रेज़री चेक जारी करना इसी गवर्नमेंट बिज़नेस का एक भाग है।
ट्रेज़री एकाउंट्स अनलिमिटेड डेबिट अकाउंट होते हैं जिनके हर साल के अंत में क्रेडिट अकाउंट से रिकन्साइल किया जाता है और उसी के हिसाब से सरकार का आमदनी-खर्चा डिसाइड होता है। आज तक ये सारा काम सिर्फ SBI ही करती थी (दूसरी कोई और भी बैंक करती हो तो मेरी जानकारी में नहीं है)।
SBI में भी कुछ ब्रांचों को ही गवर्नमेंट बिज़नेस की परमिशन होती है, ये ब्रांचें सरकारी ऑफिसेस के पास वाली होती हैं, जैसे तहसील ऑफिस के पास वाली ब्रांच, कलेक्टोरेट वाली ब्रांच इत्यादि। गवर्नमेंट बिज़नेस के लिए SBI के CBS में GBSS नाम से अलग सॉफ्टवेयर भी होता है।
अब ये देखते हैं कि सरकारी की गवर्नमेंट बिज़नेस प्राइवेट बैंकों को देने के क्या प्रभाव होंगे या हो सकते हैं।
1 . गवर्नमेंट बिज़नेस पर बैंक को कमीशन मिलता है। पिछले काफी समय से बैंकों के मांग करने के बावजूद इस कमीशन में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई थी।
प्राइवेट बैंकों को इस बिज़नेस में शामिल करने से अब इस बिज़नेस में काफी कम्पटीशन आ जाएगा, जिससे सरकार को कमीशन नहीं बढ़ाना पड़ेगा।

2 . गवर्नमेंट बिज़नेस के चलते अब तक ट्रेज़री एकाउंट्स SBI में ही होते थे, लेकिन अब ये मजबूरी नहीं रहेगी।
मतलब अब प्राइवेट बैंक वाले सरकारी अफसरों को पैसा खिला के, गिफ्ट देके ट्रेज़री एकाउंट्स अपनी बैंक में ट्रांसफर करवा सकेंगे। ट्रेज़री एकाउंट्स के साथ बहुत सारा बिज़नेस एक साथ प्राइवेट बैंक के पास चला जाएगा। जैसे कि पेंशन एकाउंट्स।
3 . गवर्नमेंट फीस अक्सर गवर्नमेंट चालान के रूप में जमा होती है। चालान सरकारी ऑफिसेस के बाहर बैठे एजेंट्स के पास मिलते हैं जो थोड़ा बहुत कमीशन लेकर ये काम करवा देते हैं। अब प्राइवेट बैंक जब इस बिज़नेस में घुसेंगे तो सरकारी ऑफिसेस के बाहर अपने एजेंट्स भी बिठाएंगे।
साथ ही हो सकता है कि अंदर बैठे सरकारी अफसरों से साथ भी सेटिंग कर के रखें ताकि ज्यादा बिज़नेस उनके पास आये। ये कुछ कुछ वैसा ही होगा जैसे मेडिकल शॉप्स और कंपनियों और डॉक्टरों के बीच होता है। पिसता है मरीज।
4 . ट्रेज़री बिज़नेस प्राइवेट बैंकों के पास जाने से सरकारी अफसरों और प्राइवेट बैंकों के बीच नजदीकियां बढ़ेंगी जिससे कि छोटे लेवल पर मिलीभगत करके घोटाले करना आसान रहेगा।
5 . चूंकि आजतक ये बिज़नेस SBI ही देखता आ रहा था तो पेंशनर्स और गवर्नमेंट बिज़नेस वाले लोगों के लिए बैंक में एक प्रणाली विकसित हो गई थी जिससे इन लोगों को बैंक में ज्यादा परेशानी नहीं आती थी।
न इन लोगों को कभी बीमा या म्यूच्यूअल फंड्स के लिए परेशान किया जाता था और न ही इस काउंटर से उस काउंटर भटकाया जाता था। प्राइवेट बैंक में क्या होगा ये तो सब जानते हैं। उदहारण के तौर पर एक पेंशनर बैंक में ज्यादा बैलेंस नहीं रखता। महीने के पहले हफ्ते में पेंशन आ जाती है।
पेंशनर महीने में एक ही बार आता है और पेंशन का पैसा निकाल कर ले जाता है। मतलब खाता खाली ही रहता है। लेकिन खाली खाते से प्राइवेट बैंक को क्या फायदा। वो अब इस गरीब पेंशनर से फायदा निकालने की तरकीब ढूंढेंगे।
6 . सरकारी बिज़नेस आने से प्राइवेट बैंकों का कस्टमर बेस भी बढ़ेगा। ज्यादा लोग प्राइवेट बैंकों में आएंगे। जैसे एक कुशल बनिया अपनी दूकान पर आये ग्राहक को खाली हाथ नहीं जाने देता, वैसे ही प्राइवेट बैंक भी अपने कस्टमर को कोई न कोई स्कीम चिपका ही देंगे।
7 . बूढ़े पेंशनर बैंक में पेंशन निकालने, लाइफ सर्टिफिकेट भरने बैंक आया करते हैं, साथ में उनकी निगाहें बैंक में काम करने वाले यंग लड़के/लड़कियों पर भी होती हैं जिनमें वे अपने होने वाले दामाद, बहू वगैरह भी ढूंढते हैं। सरकारी बैंक वालों की शादी का ये रास्ता अब शायद बंद हो जाएगा।
अगर देखा जाए, तो सरकारी बिज़नेस प्राइवेट बैंकों को देना एक साधारण सा फैसला लगता है मगर इसके कितने दूरगामी परिणाम होंगे ये तो समय ही बताएगा।

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27 Feb
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कल ये फोटो देखी। ये कोई साधारण फोटो नहीं है। ये एक रोंगटे खड़े कर देने वाली, आत्मा को झकझोर देने वाली वीभत्स फोटो है। उतनी ही वीभत्स जितनी गाँधी की हत्या वाली फोटो, वियतनाम में अमरीकी नेपाम अटैक से भागती हुई छोटी सी बच्ची की फोटो, ImageImageImage
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26 Feb
अभी सरकार ने कहा कि छोटी दूरी की रेल यात्रा के दाम इसलिए बढ़ाए जा रहे हैं ताकि लोग बेमतलब यात्रा न करें। इससे पहले खानपान पर रोक लगी थी। फिल्में और किताबें तो आये दिन बैन होती ही रहती हैं। Porn देखने पर पहले केंद्र सरकार ने पाबन्दी लगाई और अब UP सरकार पुलिस की धमकी दे रही है।
कोरोना में तो रातों रात लोगों को बिना पूर्व चेतावनी के छह महीनों के लिए घरों में कैद कर दिया था। उससे पहले लोगों को तीन घंटे का नोटिस देकर बैंकों के बाहर लाइन में लगवा दिया था। ऐसे नहीं है कि ये सब अभी शुरू हुआ है। ये माइक्रो मैनेजमेंट तो अंग्रेजों के ज़माने से चला आ रहा है।
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23 Feb
थ्रेड: #राम_नाम_की_लूट

पिछले 3-4 सालों से एक चीज लगातार देखने को मिल रही है और वो ये कि सरकार की पैसे की डिमांड बहुत बढ़ गई है। साम-दाम-दंड-भेद सरकार ने राजस्व बटोरने का कोई रास्ता नहीं छोड़ा है।

#CorporatePuppetGOVT
1. सर्विस टैक्स को GST में शामिल करके 18% की स्लैब में डाल दिया।
2. कार्बन टैक्स बोल के पेट्रोलियम पदार्थों पर बेतहाशा टैक्स लगा दिया।
3. केरोसिन, LPG वगैरह पर से सब्सिडी बिलकुल ख़त्म कर दी।
4. शराब और सिगरेट पर भी लगातार टैक्स बढ़ाये हैं।
#CorporatePuppetGOVT
5. PSUs से लगातार डिविडेंड वसूला है।
6. सरकारी उपक्रमों की बिक्री पूरे जोश में चालू है।
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8. इन्फ्लेशन की रेट 4% है मगर आयकर की स्लैब में उस हिसाब से बदलाव नहीं आये हैं।
#CorporatePuppetGOVT
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20 Feb
थ्रेड : #कॉर्पोरेट_गवर्नेंस

1990 के दशक के शुरुआत में लंदन में कुछ कंपनियों में बड़े घपले हुए। इनके नेपथ्य में था 1979 में मार्गरेट थेचर के नेतृत्व में शुरू हुआ निजीकरण का दौर (ब्रिटेन के निजीकरण के बारे में किसी और दिन बात करेंगे)।
दरअसल 1980 के दशक में निजी कंपनियों में दूसरी कंपनियों के अधिग्रहण की जबरदस्त होड़ मची। पैरेंट कंपनियां खूब उधार लेकर दूसरी कंपनियों को खरीद रही थी। इससे कंपनियों के ऊपर बहुत कर्ज बढ़ गया था। ऐसी ही एक कंपनी थी मैक्सवेल कम्युनिकेशन्स।
इस कंपनी ने अपने कर्मचारियों के पेंशन फंड्स में सेंध लगा कर अधिग्रहण के लिए फंड्स जुटाए थे। कुछ ही सालों में कंपनी पर कर्ज इतना बढ़ गया कि 1992 में कंपनी ने बैंकरप्सी फाइल कर दी। उसी साल इंग्लैंड की ही Bank of Credit and Commerce International (BCCI) भी डूब गई।
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19 Feb
थ्रेड: #एफ्फिसिएंट_सरकार

एक बात तो माननी पड़ेगी। ये सरकार एफिशिएंट तो बहुत है। और ये बात मैं साबित कर सकता हूँ। पिछली सरकारें बेवकूफ थीं। कभी गरीबी मिटाओ, कभी घर बनाओ, कभी रोजगार दिलाओ, कभी भुखमरी हटाओ, ये सब छोटी छोटी योजनाओं पे काम करती थी।
और फिर हर पांच साल बाद अपना काम लेकर पब्लिक के पास जाती थी "भाई हमारा काम देखो और हमें वोट दो"। बीच बीच में जाति और धर्म का तड़का भी लगता था मगर वो भी छोटे लेवल पर। नयी सरकार को समझ आ गया कि ये तरीका एफ्फिसिएंट नहीं है।
पहले तो योजनाएं बनाओं, फिर लागू करवाओ। अब इतना काम करो, फिर उसे लेकर पब्लिक के पास जाओ। और उसके बाद भी कोई गारंटी नहीं है कि आपको वोट मिल ही जाएगा। और वैसे भी योजनाएं छोटी हैं तो करप्शन भी छोटा ही होगा। इतनी मेहनत करो और न सत्ता मिले और पैसा भी कोई ज्यादा नहीं।
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18 Feb
थ्रेड: #हमारे_सरकारी_बैंक

पार्ट 2: सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया

आज एक ऐसे बैंक के बारे में बात करते हैं जो शायद शीघ्र ही इतिहास के हवाले कर दिया जाएगा।

कहा जाता है गुलाम भारत ब्रिटिश साम्राज्य के ताज का हीरा था।
इस हीरे को पकडे रखने के लिए अंग्रेजों के लिए ये ज़रूरी था कि भारत को अविकसित ही रखा जाए। इसके लिए उन्होंने हर संभव कोशिश की कि भारत में उद्योगों पर पूरी तरह से अंग्रेजों का ही कब्ज़ा रहे। इसके लिए भारतीय उद्योगों के प्रति भेदभावपूर्ण नीति अपनाई गई, और उसी का भाग था बैंकिंग।
प्रथम विश्वयुद्ध से पहले सारे बैंक अंग्रेजों के ही अधिकार में थे। ये सिर्फ सरकार के इशारे पे ही चलते थे। भारतीय इस बात को बखूबी समझते थे कि बिना सम्पूर्ण भारतीय बैंक के स्वदेशी और स्वराज्य का सपना पूरा नहीं हो सकता। मगर भारतीयों को आधुनिक बैंकिंग का अधिक अनुभव नहीं था।
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