अमेरिका ने #काबुल_विस्फोटों की जिम्मेदार #ISIS के मुख्य साजिशकर्ता को ड्रोन अटैक में मार डालने का दावा किया है। बताया जा रहा है कि अमेरिका को उसकी पिन पॉइंट लोकेशन #तालिबान ने दी थी।

मतलब अमेरिका पिछले बीस साल से जिससे लड़ रहा था, अचानक ही उसके साथ काम करने लगा।
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गजब हो गया पेंटागन और तालिबान साथ साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं। तालिबान ने पिछले बीस वर्ष में भले ही हजारों अमेरिकी सैनिक मारे हों, लेकिन काबुल हमले में मारे गये 13 अमेरिकी सैनिकों का बदला लेने के लिए तालिबान ने अमेरिका का एक सच्चे मित्र की तरह सहयोग किया है।
बिल्कुल " तेरा यार हूँ मैं..." की तर्ज पर।

तालिबान तो पहले से ही अमेरिका के साथ बातचीत में था। वह उन्हें बाहर जाने का सेफ पैसेज दे रहा था। फिर उसने #ISIS के उस आतंकी को मारने में भी अमेरिका का फूल उफ्फ सॉरी सॉरी फुल सपोर्ट किया। तालिबान के ऐसे हृदय परिवर्तन पर तो मेरी
आँखों से इतने आँसू निकल गए कि शरीर में पानी की कमी हो गयी। लगता है ओआरएस का घोल पीना पड़ेगा अब।

आप लोगों को कुछ समझ में आ रहा है??

मुझे तो सीधा सीधा दिख रहा है कि यह तालिबान को स्थापित करने की कवायत है। उसे पूरे विश्व से मान्यता दिलाने के लिए यह सब नूरा कुश्ती हो रही है।
नूरा कुश्ती तो समझते हैं ना??

पहले अमेरिका ने उसे हथियार दिए (जिन हथियारों को नष्ट कर दिया जाना चाहिए था, ये साले उसे छोड़ कर चले गए)। तालिबान को बिना लड़े ही अफगानिस्तान दे दिया। तालिबान के बदल जाने और बातचीत करने की खबरों को फैलाया गया।
फिर भी पूरे विश्व में उसे मान्यता देने वाले नही मिले। बताओ पूरी मेहनत पर पानी फिर गया।

तो अब अमेरिका ने अपने नागरिकों को मरवा दिया और उसका बदला लेने की कवायद में तालिबान की मुख्य भूमिका दिखा दी। इस घटना के कई मतलब हैं:-
पहला, तालिबान बदल गया है। उसने आतंक का रास्ता छोड़ दिया है और वह बातचीत पर विश्वास करने लगा है।
दूसरा, अमेरिका आज भी अपने नागरिकों की जान का बदला लेने में सक्षम है और उसने लिया। इस काम में तालिबान ने उसकी मदद की। इसका एक मतलब यह भी है कि तालिबान अमेरिका के कहने पर
काम कर रहा है। मतलब अमेरिका के नीचे हैं।

तीसरा, अब तालिबान को मान्यता दी जा सकती है। बहुत संभावना है कि अमेरिका ही दे देगा। अब जब अमेरिका दे देगा तो फिर बाकीं तो दे ही देंगे।

अगर आपको यह नही दिख रहा है तो भाई आप लोग बहुत भोले हो।
अब बात आती है कि अमेरिका ऐसा क्यों कर रहा है?

पहला पॉइंट कि तालिबान के कारण पूरा का पूरा एशिया तनाव में रहेगा। अपनी सिक्योरिटी मजबूत करता रहेगा। नतीजा अमेरिकन कंपनियों के हथियार खूब बिकेंगे। इसके अलावा तालिबान की मजबूती से मोटीवेट होकर बाकीं आतंकी/ अलगाववादी ग्रुप्स भी
जिहाद को आगे बढ़ाएंगे। नतीजा अमेरिकी हथियाओं की भयंकर बिक्री।

दूसरा पॉइंट चीन, जो कि अमेरिका को लगातार आँखें दिखाता रहता है, उसका #CPEC प्रोजेक्ट खराब किया जा सकता है। सिल्क रुट में अड़ंगे डाले जा सकते हैं। और उइगर मुस्लिमों के मुद्दे पर चीन में अन्स्टेबिलिटी फैलाई जा सकती है।
झिंझियांग प्रान्त में आतंक को बढ़ावा दिया जा सकता है।
तीसरा पॉइंट #अफगानिस्तान में लीथियम का भयंकर भंडार है और आने वाला समय इलेक्ट्रिक व्हीकल्स का है। इन व्हीकल्स में लीथियम आयन बैटरी लगती है। अब न तो एक डिस्टर्ब एरिया में अमेरिका 'लीथियम ओर' निकाल सकता है और ना ही
एक आतंकी देश में। अगर उसे अफगानिस्तान में लीथियम खनन की कंपनियां लगानी हैं तो उसे तालिबान को मान्यता देनी ही पड़ेगी।
चौथा पॉइंट, #अमेरिकी_सैनिक वापस गए तो एक पोलिटिकल सेंटीमेंट भी बनता है अमेरिका में, जिसका फायदा बिडेन और कमला तथा उनकी वामपंथी पार्टी को होगा।
और भी पॉइंट हैं/ होंगे, लेकिन लेख लंबा होता जा रहा है तो बस।

बाकीं वामपंथी तो रक्त पिपासु होते ही हैं। देशों को कमजोर करना और उनपर शासन करना इनका प्रिय शगल है l

साभार
✍️ Shashi Todani (facebook)

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