पिछली श्रृंखला में हमने कुछ विचित्र विद्याओं का वर्णन जो पुराणों में है उस पर एक विवेचना लिखी और आपने इसे सराहा. इसी श्रंखला में आगे कुछ और ऐसी ही विद्या,मंत्र,सिद्धि अथवा प्रयोग का वर्णन
-परोक्षसत्तादर्शन- ह्रदय में स्तिथित देव को देखने की हृदय संयम शक्ति। परम भक्तों को उपलब्ध इसे देवदर्शन सिद्धि भी इसे कहा जाता है.
-अभिचार सिद्धि- प्रतिद्वंदी को शास्त्रार्थ में पराजित करने की शक्ति. याज्ञवल्क्य, मंडनमिश्र,शंकराचार्य, गार्गी विद्वानों को प्राप्त,मेघनाथ-यज्ञ
-अभिनिष्क्रमण सिद्धि- ह्रदय के संयम से आत्मा का दर्शन.
-प्रतिकृति सिद्धि- मृत पुरुषों के भी प्रतिकृति छाया रूप का दर्शन और वार्तालाप की क्षमता
-दिव्यदृष्टि सिद्धि- अकल्पनीय दर्शन की शक्ति।संजय का धृतराष्ट्र को महाभारत का वर्णन व्यक्तियों का पुण्यतमा होना आवश्यक है
-मायाव्यामोहन विद्या- ऐसे दर्शनों जो यथार्थ में मिथ्या है लेकिन दर्शक सत्य घटित समझता है. नारद का मायापुरी में स्वयंवर की घटना या मेघनाथ का माया प्रयोग से करके सीता समक्ष राम लक्ष्मण वध
-उपस्थिति अथवा रात्रि विद्या- अत्यंत गुप्त रहस्य,छिपाए गए धन, पूर्व गोपनीय वार्तालाप का ज्ञान
-संस्कार धाम विद्या-विद्वान स्पर्श मात्रा से शिष्य को विलक्षण विधता प्रदीप करता है. सुकदेव,गुरु शंकराचार्य, नचिकेता ने अपनी प्रज्ञा यही विद्या से प्राप्त की थी
-परकाया प्रवेश- प्राणो के संयम से मनुष्य शरीर धारण करके भिन्न स्थानों में भिन्न कार्य संपादन कर सकता है.सिद्ध पुरुष शक्ति से शरीर सुरक्षित रखकर अन्य पुरुष शरीर में प्रवेश करके अभीष्ट कार्य पूर्ण करता है। शंकराचार्य का कामकलावश्यक प्रश्नों का उत्तर देने हेतु एक राजा के शरीर प्रवेश
-प्राणधारिणी विद्या- किसी भी भूत के प्राणों का संहरण. राजा वेन के अत्याचारों से त्रस्त ऋषियों ने कुशा के अग्रभाग स्पर्श से कराकर प्राणों का हरण किया
-मृत संजीवनी विद्या- मृत शरीर में भी प्राणों का संचार। गुरु शुक्राचार्य का चरित्र प्रसिद्ध है.
-छाया ग्रहणी विद्या- प्राणी की छाया को ग्रहण कर वश में करना हनुमान-सिंहिका दृष्टान्त
-भूतपरिवर्तन विद्या-मंत्र के बल से भी भिन्न भिन्न योनियों में जाकर उनके जीवन का अनुभव
-सर्पाकर्षण सिद्धि- मंत्रप्रभाव से सर्पों को आकर्षित और विषहीन बनाया जाता है. जन्मेजय-नागयज्ञ
-अग्निस्तम्भन विद्या-अग्नि को शीतल करना।सत्य,मंत्र और मणि से. सत्य परिक्षणउदाहरण
-अक्षयकरणी विद्या- गृहपत्र खाली न होना.महाभारत में युधिष्ठिर के पास पात्र का वर्णन
-निग्रहधार विद्या-सृष्टिनियमो के विपरीत कार्य करने की क्षमता- अगस्त्य मुनि का समुद्र पान,भगवान कृष्ण-जयद्रथ वध
-अनुग्रह सिद्धि- पूर्व जन्म से शाप मुक्ति। भगवन राम का अहिल्या उद्धार
-पुत्रेष्टि विद्या- निश्चित संतान प्राप्ति। दशरथ पुत्र यज्ञ,परशुराम,विश्वामित्र,राजा द्रुपद का धृष्टध्युम्न और द्रौपदी प्राप्ति
-अकालशृष्टि मंत्र - मंत्र शक्ति से अकाल में भी वर्षा
-मधु विद्या- मधुमक्खियों के छत्ते में सूर्य मंडल ध्यान से रश्मियों के तत्त्व को मधु-रूप में ग्रहण और अतुलनीय शक्ति संचार
-बलातिबला मंत्र-मंत्रयुक्त पुरुष को कभी थकावट,,बीमार या व्याधि नहीं होती। असावधानी में भी उनका प्रतिद्वंदी कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
-डिंभप्रसिविनि विद्या- गर्भ को कई भागो में विभाजित करने की क्षमता.जैसे राजा सागर के साठ हजार पुत्रों, १०० कौरवो,कद्रू के हज़ारो सर्पो का जन्म।
आज विज्ञानं से हमें क्लोनिंग, इनविट्रोफर्टिलिज़शन और परखनली शिशु सामान्य बात है तो अवश्य ही पुराणों में उल्लेखित वर्णन विज्ञानं आधरित था
इसी प्रकार विशल्यकरणी,संधानकरणी,आदि मंत्र,औषधियों और विद्या का ज्ञान पुराणों में इसका उल्लेख मिलता है.
ऐसी कई विद्याओं के भेद और संक्षिप्त में कहे तो और कई यंत्र मंत्र तंत्र का वर्णन और उनको जानने की क्षमा और क्रियान्वित करने का महारथ निश्चित ही था..
जैसे बैक्टीरिया को हम नग्न आँखों से नहीं देख नहीं सकते लेकिन सूक्ष्मदर्शी और उसके उपयोग के ज्ञान से न सिर्फ हम उसे देख सकते है बल्कि उसके साथ और भी कई प्रयोग कर सकते है. तो समस्या बैक्टीरिया की नहीं है की वो सूक्ष्म है, परिसीमन आँखों का है की उसमे इतनी ही क्षमता है.
उसी तरह आज कई प्रकार की विद्या, मंत्र , शक्ति, सिद्धि और कला का ज्ञान पुराणों में है और उसे व्यंग्य समझते है तो समस्या हमारे में है की हमारी सीमाएं है उन्हें न समझने की.
विश्वास है आपको यह श्रंखला भी पसंद आई होगी। आप पढ़े और आगे लेकर जाएं
पुराणों में कई प्रकार की विद्या और शास्त्रों का वर्णन है।ज्योतिष, खगोल, भूगोल,स्थापत्य, शिल्प,अर्थशास्त्र जैसी कई विद्याओं का वर्णन तो हमें ज्ञात ही है, लेकिन आइए कुछ नई विद्याओं में विद्याओं का ज्ञान इस श्रंखला में लेते हैं।
1) अनुलेपन विद्या- मार्कंडेय पुराण में एक विशिष्ट पाद लेप का संकेत है जिसे पैर में लगाने से 1 दिन में 100 योजन की यात्रा करने की शक्ति आ जाती है।
2) स्वेच्छाधारिणी विद्या-मार्कंडेय पुराण के द्वितीय अध्याय में इसका वर्णन है,जैसे ही रामायण में रावण के द्वारा याचक का रूप धारण करना
अथवा मारीच के द्वारा सोने के हिरण का रूप धारण करना,वैसे ही महिषासुर स्वेच्छा से सिंह घोड़े मतंग आदि कई पशु पक्षियों का रूप धारण किया, पद्म पुराण में भी इसका वर्णन किया है।
वेद-पुराण,अन्य धाराओं में परमात्मा-जीवात्मा और उसके संबंध पर कई प्रकार की व्याख्या की है.दोनों एक है,आत्मा परमात्मा काअंश है,आत्मा पूर्व जन्म का ही प्रवाह है आदि
लेकिन वही पांच तत्व है,परमात्मा एक ही है,तो अनुभव-संवेदना अलग अलग क्यों ?
क्यों किसी एक ही परिस्तिथि और पदार्थ को हर जीवन अलग गुण में अनुभव करता है?
सामान्यतःएक शरीर और उसमे एक आत्मा की संज्ञा देते है लेकिन ये एक आत्मा क्या पूर्णभूत है या कई अवयवों का संकलन.
इसी विषय पर संक्षिप्त विवेचन
पुराणों के अनुसार वस्तुतः आत्मा एक ही है परन्तु उपाधि और अवस्था
.की विभिन्नता हेतु से प्रथमतः तीन मुख्य भेद है-
क्षेत्रज्ञ, अंतरात्मा ,भूतात्मा
१) क्षेत्रज्ञ-कर्म और प्रेरणा देने वाला अंश(प्रेरित करने वाला )
२)अंतरात्मा-विभिन्न प्रकार के सुख और दुखो को अनुभव करवाने वाला अंश
३)भूतात्मा-आत्मा का अंश जो कर्म करता है
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द्रौपदी क्या वास्तव में पांच अलग पतियों की पत्नी थी?
द्रौपदी और उसके पांच पांडव पति होने को लेकर कथा और वैसे ही विकृत मानसिकता की टिपण्णी सामान्य हो चुकी है.
महाभारत/पुराणों में पूर्व जन्म में पांच बार पति कहकर वरऔर इसी हेतु से पांच पति मिले, ऐसी भी कथा सामान्य मिलेगी
सर्वज्ञात है की कुंती को दुर्वासा ने सेवा से प्रसन्न होकर किसी भी देवता का स्मरण करने पर वरदान दिया था. फिर पाण्डु को श्राप मिलने से कुंती ने क्रमशः धर्मराज,वायु,इंद्र,और माद्री ने अश्विनी कुमारो को स्मरण करके युधिष्ठिर, भीमसेन, अर्जुन और नकुल सहदेव के रूप में पुत्र प्राप्ति की.
इसी विषय पर एक दृष्टान्त मार्कण्डेय पुराण के पंचम अध्याय में मिलता है जो पुनः विषय के एक गूढ़ स्तर पर जाकर इसका वर्णन करता है. जिसके अनुसार पांच पांडव वस्तुतः इंद्र के ही रूप है
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दान
दान के बारे में जानने से पूर्व दान की महिमा
राजा बलि, वामन अवतार से पूर्व की कथा उससे अधिक रोचक और ज्ञानवर्धक है की कैसे दान की महिमा के कारण राजा बलि को हरिकृपा मिली.
कथा और व्याख्या स्कन्द पुराण से
प्रथम : राजा बलि के पूर्व जन्म की कथा
कई बार ये विषय आता है की राजा इंद्र का सिंहासन क्यों डोलता है या वो इन्द्रासन को लेकर काफी भयभीत से रहते है. पूर्व जन्मो में राजा इंद्र ने सौ अश्वमेध यज्ञ करके इन्द्रासन पाया था, लेकिन समय रहते भोग लोलुपता और और कृपणता आ गयी. दान दक्षिणा बंद हो गयी और इसी कारण अन्य विकार आने लगे.
एक जुआरी था,वो नित्य ईश और ब्राह्मण निंदा करता,महापापी, कामासक्त! एक बार जुए में बहुत धन जीता और वैश्या के यहाँ जाने को सोचा. रास्ते में उसने पान का बीड़ा, फूल, गंध आदि लेकर जाने लगा. जोर से ठोकर लगने के कारण नीचे गिर गया और मूर्छा आ गयी.होश आया तो शिवलिंग दिखा कुछ सद्बुद्धि आयी
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पिछली कुछ श्रृंखलाओं को आपने सराहा इसका हृदय से आभार।
इसी विचार में एक और, सामान्य बात लेकिन विस्तृत वर्णन|
श्री हनुमान जी को अष्ट सिद्धि नौ निधि का दाता कहा,
प्रायः सामान्य पूजा या अन्य श्लोक में भी आता है
क्या है ये अष्ट सिद्धि और कैसे श्री हनुमान ने इनका उपयोग किया
१- अणिमा: अणु के समान हो जाना ( यानी बहुत ही छोटे या अदृश्य सामान)
जब हनुमान जी ने लंका में प्रवेश किया तब -
'मसक समान रूप कपि धरी'
यहाँ मसक समान (मछर जैसा) ना की मसक का।
जब अशोकवन में छिप कर प्रतीक्षा करते है -
'तरु पल्लव् महुँ रहा लुकाई'
(पेड़ के पत्ते के पीछे छिपे)
२ - लघिमा- तुरंत बहुत छोटे हो जाना
जब सुरसा को युक्ति से बहुत बड़ा शरीर बनाने के बाद बहुत ही छोटा बनाया -
'अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा'
जब लंका में विचरण किया -
'अति लघु रूप धरों निसि, नगर करो पइसार '
श्री हनुमानजी के द्वारा माँ सीता की खोज के लिए समुद्र लांघने की कथा में तीन विपत्तियां मार्ग में मिलती है- १- सुरसा २-सिंहिका ३- लंकिनी
और तीनों को हनुमान जी अलग युक्ति से व्यवहारित करते है
प्रथम दृष्टि से सामान्य सी कहानी लेकिन रोचक संयोग
प्रथम सुरसा जिन्हें देवता हनुमानजी की परीक्षा हेतु भेजते है - उन्हें माता कहकर संबोधित करते है, नमन करते है और बुद्धि से (शरीर को बढ़ा कर युक्ति से लघु रूप धारण और मुंह मे जाकर पुनः बाहर आना) जीतते है
द्वितीय सिंहिका जो आकाश में उड़ने वाले की परछाई पकड़कर खाती है उसे तुरंत मारकर
और तीसरी लंकिनी - जो लंका की प्रहरी है उसे हल्का सा मुक्का मारकर अपराधबोध करवाते है और फिर आगे लघु रूप में लंका में प्रवेश करते है ।लेकिन ये तीनो राक्षसियाँ क्या दर्शाती है
सुरसा- सतगुण (देवो से भेजी हुई) - बुद्धि से जीती जा सकती है, ज्ञान से, बल से नहीं । विनम्रता से ।