@JioCare@reliancejio यह यूजर पैन पॉइंट्स मै जिओ यूजर इक्स्पीरीअन्स टीम के लिए खास तौर पर लिख राहा हूँ। मै चाहता हूँ की जिओ यूजर इक्स्पीरीअन्स के सीनियर मेम्बर और हेड मेरे इस टवीट को पढ़े। जिओ फाइबर के द्वारा जिओ टीवी प्लस उपयोग करने मे मूड खट्टा हो जाता है। पहले हम
टीवी चलाते थे और रीमोट मे चैनल नंबर दबाकर चैनल तक झट से पोहोच जाते थे। चैनल का नाम याद रखने की कोई खास जरूरत नहीं होती थी। एक चैनल मे पोहोचने के बाद, अप और डाउन एरो दबाकर ऊपर नीचे के चैनल ब्राउज़ कर लेते थे। अब चैनल का नाम याद करके रखना पड़ता है। बिस्तर पर लेटे लेटे अगर टीवी ऑन
करके चैनल लगाने का मन करता है तो पहले लाइट ऑन करना परता है जिओ टीवी प्लस बटन को रीमोट मे ढूंढने के लिए, फिर गले को साफ करके, चैनल को याद करके, रीमोट को मुह के सामने लाकर, चैनल का नाम जोर से बोलना परता है ताकि फैन की आवाज़ मे कही हमारी आवाज़ दब ना जाए। मतलब जो काम पहले केवल
काईनेसथेटिक द्वारा हो जाता था अब उसके लिए विज़न, वॉयस और उँगलियो (काईनेसथेटिक) का एक साथ उपयोग करना परता है। अभी अभी मम्मी की शिकायते सुनकर ये टविट लिख राहा हूँ। मम्मी बता रही थी की पहले एक टीवी चैनल लगाकर टीवी देखने के लिए इतना ताम झाम नहीं करना परता था। यह मैंने भी गौर किया की
इतना व्यस्त होम स्क्रीन देखकर, इतने सारे मेनू और मेनू के अंदर मेनू को याद रखने की कश्मकश मे कॉगनीटिव लोड बोहोत बढ़ जाता है। इतने सालों से टीवी को ऑपरैट करने की जो लेगसी आदत बनी हुई है उसको एक झटके मे इतने सारे यूजरो मे बदलने की कोसिस करना अलाभकारी है। आप एक अल्टरनेटिव डिज़ाइन बना
दीजिये ताकि टीवी ऑन करते ही रिमोट पर नंबर दबाकर टीवी चैनल तक आसानी से पोहोचा जा सके। साथ ही साथ टीवी के विभिन्न कैटेगोरी जैसे की न्यूज़, म्यूजिक, स्पोर्ट्स, एंटरटेनमेंट, डिवोशनल अदि को होम स्क्रीन पर एकदम ऊपर रख दिया जाए।
एक चैनल देखते देखते अगर दूसरे चैनल का नंबर दबाए तो
तुरंत दूसरा चैनल लग जाए जो की अभी नहीं होता, उसके लिए पहले जिओ टीवी प्लस के स्क्रीन पर वापस आना परता है और फिर दूसरे चैनल का नंबर लगाना परता है। आपसे ये भी अनुरोध है की घरेलू महिलाओ और वरिष्ठ नागरिको के यूजबीलीटी टेस्ट द्वारा उनके कॉनटेक्स्ट, यूजर जर्नी, यूजर हैबिट्स,
यूज केसेस और यूजर फ़्लोस को ध्यान पूर्वक निरीक्षण करे और उस हिसाब से यूजर इंटरफेस मे महत्वपूर्ण बदलाव करे।
फिलहाल तो मै रीमोट मे जिओ टीवी बटन को बार बार गलती से जिओ टीवी प्लस बटन के जगह दबा देता हूँ। शायद रीमोट को भी बेहतर बनाने की जरूरत है। सीनियर सिटिज़न शायद 'बैक' बटन का अधिक
उपयोग करते है होम बटन की तुलना मे। मम्मी बता रही थी की कभी कभी टीवी अनरीस्पान्सिव भी हो जाता है पर कोई नोटफकैशन नहीं दिखता जिसके कारण अनजाने मे रीमोट दबा दबाकर उँगलिया दर्द हो जाती है। खैर सारे बातों का सार ये है की टीवी पर कोई चैनल देखने के लिए काफी मेहनत करनी परती है डिश या
केबल टीवी की तुलना मे। मै कुछ देर मे वापस आता हूँ, मम्मी और भी शिकायत कर रही है। आपसे पूरी आशा है की आप इस परेशानी का निवारण जल्द ही करोगे। #jiofiber
टीवी चैनल्स को ब्राउज करने का यूजर का बर्ताव ओटीटी प्लेटफार्म के तुलना में अलग है। जब लोग टीवी चैनल्स को ब्राउज करते है तो अनजाने में ही काफी सारे अलग अलग जॉनर और विषयों के प्रोग्राम्स को डिस्कवर करते है। ठीक उसी तरह जब लोग किसी एक ओटीटी प्लेटफार्म को ब्राउज करते है तो
उस प्लेटफार्म के काफी सारे प्रोग्राम्स को डिस्कवर करते है। दुसरे जॉनर के प्रोग्राम्स को डिस्कवर करना पुरे इकोसिस्टम में क्रॉस सेल्लिंग के दृष्टिकोण से लाभदायक है। निरुद्देश्यता से चैनल या कंटेंट ब्राउज करना यूजर को बिभिन्न जॉनर, बदलते विषय और नए आयामों से परिचित करवाता है जिससे
यूजर के रूचि में नए आयामों का संयोजन होता है। अगर लोगो से ये अपेक्षा हो की वो प्रोग्राम का नाम याद रखेंगे और ऑनलाइन आकर बस उसी प्रोग्राम को वोईस द्वारा ढूंढ़कर देखेंगे तो यह विचारधारा पुरे इकोसिस्टम के कलेक्टिव पार्टिसिपेशन के लिए हानिकारक है।
सोशल मीडिया को ब्राउज करते समय नए प्रोग्राम्स का ट्रेलर देखकर उनके बारे में जानकारी हासिल करना और साथ ही साथ, टीवी चैनल और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स में ब्राउज़िंग को प्राथमिकता देना, ताकि टीवी ब्राउज करते समय नए जॉनर व विषयों के प्रोग्राम लोगो द्वारा अंजाने में ही डिस्कवर किये जा सके,
इन दोनों धाराओं को कंटेंट डिस्कवरी और कंटेंट व्यूिंग के आधार पर अनुकूलन करना एक निरंतर प्रक्रिया है।
यूजर रिसर्च के लिए ऐसे वातावरण तैयार करे। एक वरिष्ठ आयु के आराम प्रिय बंगाली को अपने कंपनी में ढूंढिए। उसे मछली कड़ी और भात का दोपहर में भोजन करवाईये। एक डबल बिस्तर, बिस्तर के बाजु में टेबल फैन और
बिस्तर के मुहाने पर एक टीवी की व्यवस्था कीजिये। पाश बालिश मिल जाये तो और भी बेहतर। टेबल फैन जोर से चला दीजिये। ये हुआ यूजर सिनेरियो को तैयार करना। फिर उस इंसान के हात में टीवी का रिमोट पकड़ाकर उसके क्रियाओ पर दूर से गौर कीजिये बिना उसके ज्ञात के। अगर
रिमोट का उपयोग करते समय वह इंसान खिन्न दिख रहा है तो यूजर इंटरफ़ेस में बदलाव कीजिये। अगर वो बिना किसी पढेशानि के चैनल बदल बदलकर टीवी देख रहा है और टीवी देखते देखते सो जाता है तो बधाई हो, आपके यूजर इंटरफ़ेस ने क्वालिटेटिव युसबिलिटी टेस्ट पास कर लिया है।
कुछ टीवी कमर्शियल के निर्देशको को अपने यूजर एक्सपीरियंस टीम में शामिल कर लीजिये। वो बोहोत निपुणता से सेट तैयार करते है और यूजर के सूक्ष्म गतिविधियों को भी अच्छे से अवलोकित करने में सक्षम होते है।
I am in the midst of two world. Education in Visual Communication, Animation, Fine Arts and worked in Information Technology space as User Experience Principal Consultant. The society's temperament toward these two domains
are very different. Although, someone's need is someone else job. The advancement in Information Technology / Visual Technology (camera, media software, comm channels, technical frameworks / processes) will bear fruit only when the people in Visual Communication field will grow &
utilize these technologies alongside. The social outlook and support toward a person taking up Technology as a profession is overwhelming as compared to someone taking up different streams in Visual Communication as a profession in India. m.economictimes.com/tech/trendspot…
How could learning the basics of philosophy help user experience designers to understand the socio-economic world?
Philosophy, Regulation in Society, Jurisprudence in Law, getting the
approval for a new product or service in the market and Ethical Business practices share direct correlation. The hypothetical statements are stated by Philosophers and Sociologist at the Ecosystem level. Then they are further broken down to
objective levels for analysis.
Yesterday, I put on my thinking hat to look for articles and videos that could clarify the correlation. I found few of them.
The industry is obsessed with terms like immersive gaming, pro gamers, longer gameplay sessions, engagement etc. The game dev community is growing at a rapid pace. The game schools, number of game startups, number of games launched in the market are growing alongside. Games are
competing for User’s attention. One game is trying to snatch the “session time” pie of another game.
The high worth individuals were early adopters of the internet and good spender. Similarly the high worth individuals were early adopters of Apple products and they are
The right time has arrived along with the launch of The National #AVGC Policy to conceptualize a dedicated #Animation#Freelancer Website that may house the complete spectrum of 4000 specialist artists in different categories that are required to
create a full fledged animation feature film.
It takes 4000 professionals to complete an animation movie. The freelancer websites at its current state is good to hire a small team that may work on a small animation gig. Although, 4000 specialists work in a
full feature animation film that are distributed in three categories namely pre-production, production and post production. A dedicated freelance animation platform would evolve as the foundation for the full fledged animation feature film ecosystem.
Demand will improve when
Government & Public websites are part of Essential Design & Universal Design. The private websites & apps have decade long visionary goals to achieve the next billion users, the next 200 million users. On the other hand, accessing the government websites is a necessity by
1.3 billion people in India, available at disposal. Jacob's Law of internet user experience, have a prime significance shaping the usability of Essential Universal Design System. Accessibility of technology (hardware & software), collective intelligence of people in a
demography, Average IQ of individuals living in village, town, city & metropolitan demands Jury Usability Evaluation of Essential Universal Designs at regular intervals. The human society have turned technology centric so does the