वो ग़ुलाब बन के खिलेगा क्या, जो चिराग़ बन के जला न हो
#badr
असीरों को ऐसी रिहाई न दे
आग से आग बुझा, फूल खिला, जाम उठा
पी मेरे यार तुझे अपनी क़सम देता हूँ
भूल जा शिकवा-गिला, हाथ मिला, जाम उठा
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये ।
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों ।