उनसे कुछ ज़रूरी सवाल पूछिये। बात केवल हिंदू-मुस्लिम के भावनात्मक मुद्दों तक सीमित न रहे, क्योंकि मामला सबसे जुड़ा है।
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1. CAA यानि नागरिकता संशोधन क़ानून जो बनाया है, क्या उससे पहले शरणार्थी ग़ैर मुस्लिम लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान नहीं था?
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4. क्या अब कोई मुस्लिम शरणार्थी भारत में कभी नागरिकता नहीं माँग पायेगा? अगर माँगेगा, तो क्या उसे भारत की नागरिकता मिल सकती है?
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कितने मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता पिछले 70 साल में भारत ने दो है?
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1. NRC को पूरे देश में लागू करने में क्या ख़र्च आएगा?
2. असम में NRC में ₹1600 करोड और दस साल लगे। 52000 लोग इस काम में लगे थे। असम की जनसंख्या 3 करोड़ है। तो 135 करोड़ लोगों के लिए कितना ख़र्च, कितने लोग और कितना वक्त चाहिए?
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जिनकी नागरिकता छिन जाएगी, उनमें से ग़ैर मुस्लिम को वापिस नागरिकता देने में कितना वक़्त और ख़र्च लगेगा?
जो मुस्लिम ग़ैर नागरिक होंगे, उनसे कैसे निपटेंगे? कितना वक़्त और ख़र्च चाहिए?
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5. अगर ये सब सिर्फ़ रेज़िडेन्सी के प्रमाण हैं, नागरिकता के नहीं, तो फिर प्रमाण के लिए कौन से काग़ज़ चाहिए होंगे?
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