कैसे हटे? क्योंकि पीछे एक बड़ा गड्ढा जो है, जिसमें अर्थव्यवस्था लुड़की हुई, औंधे मुँह पड़ी है।
ज़रा देखें:
1. GST का कलेक्शन ₹1.2 लाख करोड़ कम रहने का अनुमान है।
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3. ये कमी इस तथ्य के बावजूद है कि सरकार के पास पिछले दो सालों का जमा ₹47,229 करोड़ surplus compensation cess था।
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(Source: Businesstoday.in)
6. आय की कमी को पूरा करने के लिए सरकार ने रिज़र्व बैंक से ₹1.76 लाख करोड़ का डिवीडेंड लिया था।
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तेल कम्पनियों का कहना है कि इतनी रक़म जुटाने के लिए उन्हें उधार लेना पड़ सकता है।
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सरकार ने उनका तिमाही ब्याज 31 मार्च से खिसका कर 1 अप्रैल कर दिया है। इससे ये अब अगले वित्त वर्ष में जुड़ेगा। यानि इस वर्ष का वित्तीय भार अगले वित्त वर्ष पर डाल कर बचने की कोशिश है।
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बढ़ती महंगाई, घटती ब्याज दर और बढ़ते घरेलू क़र्ज़ का एक मकड़जाल तैयार ही रहा है, जो retired लोगों के लिए और सरकार के लिए चिंता का विषय होना चाहिए।
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लेकिन अब कुल ₹42,000 करोड़ यानि 40% ही रहने की उम्मीद है। आर्थिक हालात इतने ख़राब हैं कि जो सरकारी सम्पत्ति आज तक जुटाई गयी है, उसे बेचना भी सम्भव नहीं हो रहा है।
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कुल लक्ष्य ₹1.05 लाख करोड़ था, लेकिन दिसम्बर तक ₹ 17,364 करोड़ ही आये। मंडी है, ख़रीदार कहाँ हैं?
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सरकारी सिस्टम में deferred payment को खर्च में नहीं जोड़ा जाता है।
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इतना पैसा अब सरकार इस वित्त वर्ष में खर्च नहीं करेगी। इसका इकॉनमी पर क्या असर होगा? क्या इस खर्च का भार भी अगले साल में खिसकेगा?
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- इंडिया गेट-संसद भवन के इलाक़े को तोड़ कर पुनर्निर्माण के लिए ₹13,000 करोड़ रुपए
- NPR के लिए ₹ 4000 करोड़
- NRC यदि हुआ तो ₹ 50000 करोड़
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FCI की liability ₹200,000 Crore होने की आशंका है।