Let us look at this Mantra about a परिव्राजक in proper context.1/11
जीवन्मुक्ततया स्वस्थो लोके विहर विज्वरः ॥ ६६॥
प्रथम दृष्टि (आत्मदृष्टि) को लक्ष्य करके विलास की कामना का त्याग करके सांसारिक ताप से रहित होकर तथा अन्तरात्मा में प्रतिष्ठित होकर इस संसार में जीवन्मुक्त की तरह से भ्रमण करो।
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बहिःसर्वसमाचारो लोके विहर विज्वरः ॥ ६७॥
सभी प्रकार की आशाओं को हृदय से निकाल कर, वीतराग तथा वासना-रहित होकर बाह्य-मन से सभी सांसारिक रीतिरिवाजों का सम्यक् रूप से पालन करते हुए जगत् में तापविहीन होकर निरन्तर प्रवहमान रहो॥
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कर्ता बहिरकर्तान्तर्लोके विहर शुद्धधीः ॥ ६८॥
बाह्य वृत्ति से बनावटी क्रोध का अभिनय करते हुए एवं हृदय से क्रोधरहित, बाहर से कर्ता एवं अन्दर से अकर्ता बने रहकर शुद्धभाव से जगत् में सर्वत्र रमण करो।
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अगृहीतकलङ्काङ्को लोके विहर शुद्धधीः ॥ ६९॥
अहं को त्यागकर शान्त चित्त हो, कलङ्क रूपी कालिमा से सदैव के लिए मुक्त हो जाओ। आकाश के सदृश शुद्ध-परिष्कृत जीवन प्राप्त करके पवित्र सद्बुद्धि को धारण करके लोक में विचरण करो॥
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अन्तःसङ्गपरित्यागी बहिःसंभारवानिव ।
अन्तर्वैराग्यमादाय बहिराशोन्मुखेहितः ॥ ७०॥
उदार एवं उत्तम आचरण से सम्पन्न, सभी श्रेष्ठ आचार-विचारों का अनुगमन करते हुए अन्दर से आसक्ति-रहित होते हुए भी बाहर से सतत प्रयत्न करता रहे।
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Now comes the actual quotation by Shampoo Boy @ShashiTharoor.
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उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥ ७१॥
यह मेरा अपना (मित्र) है और वह नहीं है, ऐसे निकृष्ट विचार क्षुद्र मनुष्यों के होते हैं। उदार चरित वालों के लिए तो समस्त वसुधा ही अपना परिवार है।
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प्रशान्तकलनारभ्यं नीरागं पदमाश्रय ॥ ७२॥
जो व्यक्ति भाव-अभाव से मुक्ति प्राप्त कर सका है, जन्म-मृत्यु से परे है, जहाँ पर सभी संकल्प सम्यक् रूप से शान्ति को प्राप्त हो जाते हैं, ऐसे रागविहीन तथा रमणीक पद का अवलम्बन ग्रहण करो।
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आदाय विहरन्नेवं संकटेषु न मुह्यति ॥ ७३॥
यह पवित्र, निष्काम, दोषरहित ब्राह्मी स्थिति है, इसको स्वीकार करके विहार करता हुआ मनुष्य विपत्तिकाल में भी मोहग्रस्त नहीं होता।
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sanskritdocuments.org/doc_upanishhat…
So one can see the greatness of Gandhi Ji and his योनिलम्पट Chelas like Shampoo boy who have interpreted Upanishad in support of their Tamas of Dhimmidtude and surrender to Aatatayin Aachar like I-Slam.
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