एक लालाजी की बाजार में छोटी सी मगर बहुत पुरानी दुकान थी।
उनकी दुकान के बगल में एक बिल्ली बैठी एक पुराने गंदे कटोरे में दूध पी रही थी।
एक बहुत बड़ा कला पारखी लालाजी की दुकान के सामने से गुजरा।
लेकिन वह ये नहीं चाहता था कि लाला जी को इस बात का पता लगे कि उनके पास मौजूद वह गंदा सा पुराना कटोरा इतना कीमती है।
क्या आप बिल्ली मुझे देंगे? चाहे जो कीमत ले लीजिए।'
लाला जी ने पहले तो इनकार किया मगर जब कला पारखी कीमत बढ़ाते-बढ़ाते दस हजार रुपयों तक पहुंच गया तो लाला जी
अचानक वह रुका और पलटकर लाला जी से बोला--- लालाजी बिल्ली तो आपने बेच दी। अब इस पुराने कटोरे का आप क्या करेंगे ?
इसे भी मुझे ही दे दीजिए। बिल्ली को दूध पिलाने के काम आएगा।
कहानी में ट्विस्ट:
लाला जी ने जवाब दिया, "नहीं साहब, कटोरा तो मैं किसी कीमत पर नहीं बेचूंगा,
क्योंकि इसी कटोरे की वजह से आज तक मैं 50 बिल्लियां बेच चुका हूं।'